न्यायियों 2: 1-23
1 “और यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जाकर कहने लगा, कि मैं ने तुम को मि से ले आकर इस देश में पहुंचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपथ खाई थी। और मैं ने कहा था, कि जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है, उसे मैं कभी न तोडूंगा;”
2 इसलिये तुम इस देश के निवासियों से वाचा न बान्धना; तुम उनकी वेदियों को ढा देना। परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्यों किया है?
3 “इसलिये मैं कहता हूं, कि मैं उन लोगों को तुम्हारे साम्हने से न निकालूंगा; और वे तुम्हारे पांजर में कांटे, और उनके देवता तुम्हारे लिये फंदे ठहरेंगे।”
4 “जब यहोवा के दूत ने सारे इस्राएलियों से ये बातें कहीं, तब वे लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे।”
5 और उन्हों ने उस स्थान का नाम बोकीम रखा। और वहां उन्हों ने यहोवा के लिये बलि चढ़ाया।।
6 “जब यहोशू ने लोगों को विदा किया था, तब इस्राएली देश को अपने अधिकार में कर लेने के लिये अपने अपने निज भाग पर गए।”
7 “और यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगों के जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे।”
8 निदान यहोवा का दास नून का पुत्रा यहोशू एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया।
9 “और उसको तिम्नथेरेस में जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई।”
10 और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपने अपने पितरों में मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिये किया था।।
11 “इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे;”
12 “वे अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को, जो उन्हें मि देश से निकाल लाया था, त्यागकर पराये देवताओं की उपासना करने लगे, और उन्हें दण्डवत् किया; और यहोवा को रिस दिलाई।”
13 वे यहोवा को त्याग कर के बाल देवताओं और अशतोरेत देवियों की उपासना करने लगे।
14 “इसलिये यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा, और उस ने उनको लुटेरों के हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे; और उस ने उनको चारों ओर के शत्रुओं के आधीन कर दिया; और वे फिर अपने शत्रुओं के साम्हने ठहर न सके।”
15 “जहां कहीं वे बाहर जाते वहां यहोवा का हाथ उनकी बुराई में लगा रहता था, जैसे यहोवा ने उन से कहा था, वरन यहोवा ने शपथ खाई थी; इस प्रकार से बड़े संकट में पड़ गए।”
16 तौभी यहोवा उनके लिये न्यायी ठहराता था जो उन्हें लूटनेवाले के हाथ से छुड़ाते थे।
17 “परन्तु वे अपने न्यायियों की भी नहीं मानते थे; वरन व्यभिचारिन की नाईं पराये देवताओं के पीछे चलते और उन्हें दण्डवत् करते थे; उनके पूर्वज जो यहोवा की आज्ञाएं मानते थे, उनकी उस लीक को उन्हों ने शीघ्र ही छोड़ दिया? और उनके अनुसार न किया।”
18 और जब जब यहोवा उनके लिये न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रहकर उसके जीवन भर उन्हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ाता था; क्योंकि यहोवा उनका कराहना जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालों के कारण होता था सुनकर दु:खी था।
19 “परन्तु जब न्यायी मर जाता, तब वे फिर पराये देवताओं के पीछे चलकर उनकी उपासना करते, और उन्हें दण्डवत् करके अपने पुरखाओं से अधिक बिगड़ जाते थे; और अपने बुरे कामों और हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे।”
20 “इसलिये यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; और उस ने कहा, इस जाति ने उस वाचा को जो मैं ने उनके पूर्वजों से बान्धी थी तोड़ दिया, और मेरी बात नहीं मानी,”
21 इस कारण जिन जातियों को यहोशू मरते समय छोड़ गया है उन में से मैं अब किसी को उनके साम्हने से न निकालूंगा;
22 “जिस से उनके द्वारा मैं इस्राएलियों की परीक्षा करूं, कि जैसे उनके पूर्वज मेरे मार्ग पर चलते थे वैसे ही ये भी चलेंगे कि नहीं।”
23 “इसलिये यहोवा ने उन जातियों को एकाएक न निकाला, वरन रहने दिया, और उस ने उन्हें यहोशू के हाथ में भी उनको न सौंपा था।।”
रेगिस्तान में चालीस साल भटकने के बाद, मूसा की मृत्यु हो गई और परमेश्वर ने यहोशू को | उसके उत्तराधिकारी के रूप में चुना। यहोशू एक शक्तिशाली और साहसी नेता था, और वह परमेश्वर के लोगों को वादा किए हुए देश में ले गया। न्यायियों की पुस्तक कनान देश पर विजय प्राप्त करने के बाद परमेश्वर के लोगों की कहानी को आगे बढ़ाती है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल में “पुनर्परिभाषित परमेश्वर” शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में, पत्रकार लिसा मिलर ने परमेश्वर की व्यक्तिगत परिभाषाओं की घटना को संबोधित किया:
देश भर में, वफादार लोग परमेश्वर को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। एक अधिनायकवादी या पितृवादी देवता की पारंपरिक छवियों से असंतुष्ट, लोग अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के अनुरूप ईश्वर की विचित्र, व्यक्तिवादी धारणाओं को अपना रहे हैं।
वे विभिन्न धार्मिक प्रभावों से आध्यात्मिक जीवन को एक साथ जोड़ रहे हैं, योगा और मनोचिकित्सा के साथ-साथ या जो कुछ भी उन्हें आगे बढ़ाता है।
“लोग इन नए देवताओं की तलाश उसी तरह करते हैं जैसे वे बाज़ार में नए उत्पादों की तलाश करते हैं, ” न्यूयॉर्क में यूनियन थियोलॉजिकल सेमिनरी के सहायक प्रोफेसर रैंडल स्टाइयर्स कहते हैं। “यह व्यक्तिवाद का अंतिम रूप है।
इसके बाद मिलर ने अमेरिका के केंद्रीय गढ़ से एक उदाहरण दिया ।
अगर केन ज्वीगार्ड की बात करे, जो कंसास के ओस्कालोसा में 43 वर्षीय वकील हैं। एक सख्त, लूथरन परिवार में पले-बढ़े, वह कहते हैं कि वे परमेश्वर की कल्पना
“सांता क्लॉस” के रूप में करते थे, जो एक प्रदान करने वाला और न्यायाधीश है। परन्तु जैसे-जैसे वह समझदार होते गए, मिस्टर ज्वेगार्ड गिरजाघर से निराश हो गए, और गिरजाघर जाने के बजाय उन्होंने मछली पकड़ने जाने के लिए रविवार की सुबह जल्दी उठना शुरू कर दिया।
आज, उसके लिए, परमेश्वर का अर्थ है अकेले “एक झील पर सूर्योदय के समय कोहरे को ऊपर उठते देखना और पानी की घंटी सुनना ।” जब वह अपने बच्चों को, जो अब दो और तीन साल के हैं, परमेश्वर के बारे में सिखाता है, “मैं उन्हें बाहर ले जाने की योजना बनाता हूँ और कहता हूँ, ‘यहाँ है परमेश्वर ।‘” 1
वॉल स्ट्रीट जर्नल का यह लेख न्यायियों की पुस्तक को प्राचीन इतिहास की धुंध से बाहर निकाल कर इक्कीसवीं सदी में लाता है।
एक पीढ़ी जो परमेश्वर को नहीं जानती थी
कनान देश पर विजय प्राप्त करने वाली पीढ़ी के मरने के बाद, जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो “यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उसने इस्राएल के लिये किया था” (न्यायियों 2:10)। यह बाइबल में सबसे दुखद आयतों में से एक है, और यह न्यायियों की पुस्तक के लिए दृश्य तैयार करती है, जो हमें बताती है कि क्या होता है जब एक पीढ़ी परमेश्वर को जाने बिना बड़ी होती है ।
एक पीढ़ी में ऐसा कैसे हो सकता था? शायद यह सिर्फ इतना था कि माता-पिता एक समृद्ध देश मैं व्यस्त थे। इन लोगों ने परमेश्वर को अपने जीवन में अद्भुत कार्य करते हुए देखा था, परन्तु स्पष्ट रूप से उन्होंने अपने बच्चों की व्यवस्थित शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया । और एक पीढ़ी में ही परमेश्वर का ज्ञान खो गया था।
तो यहां न्यायियों में हमारे पास एक ऐसी पीढ़ी है जो समृद्धि में पैदा हुई थी, जो की आध्यात्मिक अर्थ की खोज से मोहित थी, परन्तु परमेश्वर कौन है नहीं जानती थी या उन्होंने क्या किया है।
इस्राएल में यह विपदा हमें हमारी प्राथमिकताओं की याद दिलाता है। हमें अपने बच्चों को सिखाना है कि परमेश्वर कौन है और उन्होंने क्या किया है। यह अनिवार्य हैं, और इस ज्ञान के बिना विश्वास असंभव है।
जैसा कि प्रेरित पौलुस कहते हैं, “वे उस पर कैसे विश्वास करें, जिसके विषय में उन्होंने कभी नहीं सुना? (रोमियों 10:14 ) यह जानना कि परमेश्वर कौन है और उन्होंने क्या किया है, हमारे पाठ्यक्रम का मूल होना चाहिए। जब हमारे बच्चे यह जान लेंगे, तब वे विश्वास और आज्ञाकारिता की सार्थक प्रतिक्रिया करने की स्थिति में होंगे।
ईश्वर के ज्ञान को खोने में केवल एक पीढ़ी लगी। परन्तु जो एक पीढ़ी में खो सकता है उसे दूसरी पीढ़ी में वापस लाया जा सकता है।
चक्र में घूमना
न्यायियों की पुस्तक घटनाओं के एक चक्र को दर्ज करती है जिसे कई सौ वर्षों की अवधि में कई बार दोहराया गया था।
सबसे पहले, लोगों ने यहोवा को छोड़ दिया या त्याग दिया और मूर्तियों की ओर मुड़ गए: “इसलिये इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नामक देवताओं की उपासना करने लगे। और उन्होंने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा को त्यागकर पराये देवताओं, अर्थात् आसपास के लोगों के देवताओं की उपासना करने लगे” (न्यायियों 2:11-12 ) ।
दूसरा, परमेश्वर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने लोगों को उनके शत्रुओं के हाथों में सौंप दिया: “उन्होंने यहोवा के क्रोध को उकसाया… इसलिये यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा, और उसने उनको लुटेरों के हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे” (2:12-14)।
तीसरा, लोगों ने मदद के लिए परमेश्वर को पुकारा, और परमेश्वर ने उन्हें छुड़ाने के लिए एक सैन्य नेता, या “न्यायाधीश” को खड़ा किया: “तौभी यहोवा उनके लिये न्यायी ठहराता था जो उन्हें लूटने वाले के हाथ से छुड़ाते थे” (2:16)।
चौथा, जब न्यायाधीश की मृत्यु हो गई, तो लोग अपने पिछले तरीकों पर लौट आए और पूरा चक्र फिर से शुरू हो गया। परमेश्वर के लोग एक चक्र में घूम रहे थे – मूर्तिपूजा, प्रलय, परमेश्वर को पुकारना, छुटकारा, और फिर मूर्तिपूजा में वापस आना ( 2:18-19)।
मूर्तियों का आकर्षण
जैसा कि आप पुराने नियम में पढ़ते जाएंगे, आप मूर्तिपूजा के विषय पर आते रहेंगे। हालांकि यह बहुत दूर की बात लग सकती है, परन्तु सत्य यह है कि, क्योंकि यह मुद्दा इतनी बार आता है इसलिए यह महत्वपूर्ण विषय है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल का लेख मूर्तिपूजा की एक उपयोगी परिभाषा प्रदान करता है: “[लोग] परमेश्वर को फिर से परिभाषित कर रहे हैं … [वे ] अपनी स्वयं की आध्यात्मिक आवश्यकताओं के अनुरूप ईश्वर की विचित्र, व्यक्तिवादी धारणाओं को अपना रहे हैं।
मूर्तिपूजा शक्तिशाली रूप से आकर्षक है, क्योंकि आप उसको काबू करने की स्थिति में होते हैं। मान लीजिए कि आप एक काल्पनिक चरित्र का आविष्कार करते हैं और उसे “सोनू पिन्टू” कहते हैं, जो सोनू और पिन्टू का एक प्रकार का मिश्रण है। आप तय करते हैं कि सोनू एक प्रथम अगुवा होगा, और आप कंप्यूटर पर बैठकर उसके बारे में लिखना शुरू करते हैं। सोनू हट्टा-कट्टा और बलवान है। उसकी काली मूछें हैं… नहीं रुके ! आप इसे मिटाते हैं। उसकी भूरे रंग की मूंछें हैं।
आप चट्टान वाले पर्वत पर एक भालू के साथ सोनू की मुठभेड़ का वर्णन करते हैं। परन्तु फिर आपको कहानी में थोड़ा रोमांस की आवश्यकता होती है, इसलिए आप सोनू को एक संवेदनशील पक्ष देते हैं। उस कठोर हष्ट-पुष्ट बाहरी हिस्से के भीतर, सोनू अपने पूरे जीवन में सच्चे प्यार की तलाश करता रहा।
जैसा कि आप कहानी को आगे बढ़ाते हैं, आप पूरी तरह से नियंत्रण में हैं। सोनू आपके काबू में है। आप उसे जो चाहें बना सकते हैं, और वह वो सब कुछ करेगा जो आप उससे कराना चाहते हैं। यह मूर्तिपूजा का आकर्षण है। जीवित परमेश्वर की उपासना करने के बजाय, बहुत से लोग एक ऐसा परमेश्वर बनाना पसन्द करते हैं जो उनकी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो।
एक उपन्यास लिखने में एक चरित्र का आविष्कार करना बहुत अच्छा है, लेकिन एक वास्तविक व्यक्ति के साथ ऐसा करने की कोशिश करने पर, आप खुद को, चरित्र के अपमान या मानहानि के लिए अदालत में पाएंगे! मूर्तिपूजा शक्तिशाली रूप से आकर्षक है, परन्तु यह गंभीर रूप से अक्रामक भी है।
परमेश्वर हमारी मूर्तिपूजा का जवाब यह कहकर देते हैं, “मैं जो हूं वह हूं। तुम मुझे फिर से परिभाषित नहीं कर सकते, और यदि तुम ऐसा करने की कोशिश करते हो, तो मैं अपनी सुरक्षा छीन लूंगा और तुम्हें तुम्हारे शत्रुओं के हाथों में सौंप दूँगा।” यदि हम मूर्तियों का अनुसरण करते हैं, तो परमेश्वर हमें अपनी पसंद के चुनाव के परिणामों के साथ जीने की अनुमति देते हैं। परन्तु परमेश्वर का शुक्र है कि यह कहानी का अंत नहीं है।
परमेश्वर जो उद्धार करता है
मूर्तियां आकर्षक हो सकती हैं क्योंकि हम ही उन्हें आकार देते हैं, परन्तु वे शक्तिहीन हैं क्योंकि वे हमारी अपनी कल्पना के अनुमानों से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। इसलिए जब परमेश्वर के लोगों को उनके शत्रुओं ने रौंद डाला, तो वे परमेश्वर की ओर फिरे और सहायता के लिए उन्हें पुकारने लगे। परमेश्वर ने न्यायाधीशों को खड़ा किया। यहोवा की आत्मा ओथनियल, एहूद, शमगर, दबोरा, बराक, गिदोन और शिमशोन पर आयी, जिससे वे परमेश्वर के लोगों को छुड़ाने में समर्थ हुए।
वॉल स्ट्रीट जर्नल में अपने लेख के निष्कर्ष में, लिसा मिलर ने लिखा: “ये अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण और समृद्ध समय है। इसलिए जितने लोग ईश्वर के साथ गहरे संबंधों की खोज करते हैं, वे ऐसे संकटों का सामना नहीं कर रहे हैं जो अक्सर लोगों को ऊपर से सुरक्षा या मुक्ति पाने के लिए प्रेरित करते हैं … कठिन समय या अचानक कठिनाइयाँ यह सब जल्दबाजी में बदल सकती हैं परमेश्वर के बारे में लोगों की धारणाएँ कितनी भी व्यापक या दूर-दराज की क्यों न हों, वे पिता परमेश्वर की ओर लौट आते हैं जब चलना कठिन हो जाता है।”2
यह बहुत ही ज्ञानविषयक है। यह ठीक वैसा ही है जैसा हम न्यायियों की पुस्तक में सीखते हैं। जब चलना कठिन हो जाता है, तो प्रश्न बहुत सरल हो जाता है: “क्या कोई ऐसा परमेश्वर है जो आपकी मदद करने में सक्षम है?” जब सवाल यह हो, तो मूर्तियां आकर्षक नहीं रहती । वे सुविधाजनक हो सकती हैं क्योंकि वे नैतिक मांग नहीं करतीं। परन्तु जब आप किसी संकट में होते हैं, तो यह आपकी अपनी कल्पना की उपज की आवाज़ पर आपकी मदद कैसे करेगा
?
जैसा कि आप न्यायियों की पुस्तक में पढ़ते हैं, यह स्पष्ट है कि जहां इन सैन्य नेताओं ने उल्लेखनीय चीजें हासिल की, वहीं उनकी महत्वपूर्ण सीमाएं भी थीं।
उनमें से अधिकांश में गंभीर रूप से चरित्र की कमी थी। एहूद एक कायर हत्यारे की तरह लगता है (न्यायियों 3:12-23)। गिदोन में विश्वास की इतनी कमी थी कि उसे इस बात की कई पुष्टि की आवश्यकता थी कि परमेश्वर उसे क्या करने के लिए कह रहे थे ( 6:36-40 ) । इफ्ताह ने एक विनाशकारी चुनाव किया जिसमें उसकी अपनी बेटी का बलिदान करना शामिल था ( 11:30-40 )।
शिमशोन की नैतिक असफलताएं पौराणिक हैं (न्यायियों 14-16)। इस पुस्तक में कोई भी ऐसा नहीं है जिसकी आप वास्तव में प्रशंसा कर सकें।
न्यायियों की पुस्तक को पढ़ना आपको सोचने पर मजबूर कर देगा, कि “हमें एक बेहतर उद्धारकर्ता की आवश्यकता है, और यीशु वह उद्धारकर्ता है जिसकी हमें आवश्यकता है।” यीशु और न्यायियों के बीच का अंतर आश्चर्यजनक है। न्यायियों ने दूसरों की जान ले कर अपनी छाप छोड़ी; यीशु हमारे लिए अपना जीवन देने के लिए आए थे। न्यायियों ने परमेश्वर के लोगों की बाहरी परिस्थितियों को संबोधित किया; यीशु ने उनके दिल पर ध्यान केंद्रित किया । न्यायाधीशों की उपलब्धियां कुछ समय तक ही थी; यीशु जो छुटकारा लातें हैं वह हमेशा के लिए रहता है।
परमेश्वर को उस रूप में परिभाषित करना जिस रूप में आप उसे चाहते हैं, केवल आपके जीवन को चक्र में घूमने की ओर ले जाएगा, ठीक न्यायियों की पुस्तक की तरह । यीशु उस चक्र को तोड़ने के लिए आये थे। वें महान उद्धारकर्ता हैं। और वह आपको एक व्यर्थ यात्रा से बचाने में सक्षम है जिसमें आप कभी प्रगति नहीं कर सकते हैं, आपको यह बताने के द्वारा कि परमेश्वर कौन है और उसने क्या किया है।
परमेश्वर को फिर से परिभाषित करना मूर्तिपूजा है। सदियों से लोगों ने जीवित ईश्वर के | सामने झुकने के बजाय बार-बार अपने स्वयं के देवताओं का आविष्कार करना चुना है। हमारे द्वारा बनाए गए देवता आकर्षक हैं क्योंकि हम उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं, परन्तु वे केवल हमारे दिमाग में मौजूद हैं और हमें पाप, मृत्यु और नरक से बचाने के लिए शक्तिहीन हैं। | केवल परमेश्वर ही हमें बचा सकते हैं, और इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को संसार में भेजा ।
नोट्स:
1. लिसा मिलर, “रीड़फाइनिंग गॉड, वॉल स्ट्रीट जर्नल, 21 अप्रैल, 2000.
2. मिलर, रीइफाइनिंग गॉड | “
परमेश्वर के वचन के साथ और अधिक जुड़नें के लिए इन प्रश्नों का प्रयोग करें। किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन प्रश्नों पर विचार विमर्श करें या इन प्रश्नों को आत्म विश्लेषण के लिए प्रयोग करें ।
1. मूर्तिपूजा क्या है?
2. मूर्तिपूजा / परमेश्वर को पुनर्परिभाषित करना कुछ लोगों के लिए आकर्षक क्यों है?
3. परमेश्वर मूर्तिपूजा के बारे में क्या प्रतिक्रिया देते हैं?
4. मूर्तियाँ कब अपना आकर्षण खो देती हैं?
5. यीशु किसी भी मूर्ति से बेहतर क्यों है?