यशायाह 53: 1- 12
1 जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ*? (यूह. 12:38, रोमि 10:16)
2 क्योंकि वह उसके सामने अंकुर के समान, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते। (मत्ती 2:23)
3 वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दुःखी पुरुष था, रोग से उसकी जान-पहचान थी; और लोग उससे मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हमने उसका मूल्य न जाना। (मर. 9:12)
4 निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुःखों को उठा लिया; तो भी हमने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। (मत्ती 8:17, 1 पत 2:24)
5 परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ। (रोम. 4:25, 1 पत. 2:24)
6 हम तो सबके सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना-अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभी के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया। (प्रेरि. 10:43, 1 पत. 2:25)
7 वह सताया गया, तो भी वह सहता रहा और अपना मुँह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला। (यूह. 1:29, मत्ती 27:12,14, मर. 15:4,5, 1 कुरि. 5:7, पत. 2:23, प्रका. 5:6,12)
8 अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगों में से किसने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी। (प्रेरि. 8:32,33)
9 उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था और उसके मुँह से कभी छल की बात नहीं निकली थी। (1 कुरि. 15:3, 1 पत. 2:22, 1 यूह. 3:5, यूह. 19:38-42)
10 तो भी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब वह अपना प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।
11 वह अपने प्राणों का दुःख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा। (रोम. 5:19)
12 इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूँगा, और, वह सामर्थियों के संग लूट बाँट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया, तो भी उसने बहुतों के पाप का बोझ उठा लिया, और, अपराधी के लिये विनती करता है। (मत्ती 27:38, मर. 15:27, लूका 22:37, इब्रा. 9:28)
परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी कि उनकी आशीष राष्ट्रों तक पहुंचेगी, परन्तु अब्राहम के समय से लेकर अब तक के तेरह सौ वर्षों में, बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई थी। परमेश्वर ने अपने लोगों को आशीषित किया था, परन्तु वे दूसरे देवताओं की ओर मुड़ गए थे। और अब वे स्वयं परमेश्वर के न्याय के नीचे आ रहे थे। तो राष्ट्रों पर परमेश्वर की आशीष आने की क्या आशा थी?
पादरी कहते हैं कि वें अपने भारत के ऋषिकेश, के पहले दर्शन को कभी नहीं भूलेंगे। सड़कों पर शेरों, बंदरों और सांपों की मूर्तियों की कतार लगी हुई थी। यहीं पर साठ के दशक में आध्यात्मिक अर्थ की तलाश में बीटल्स आए थे। वह स्थान परमेश्वर की उपस्थिति से विहीन लग रहा था, और जैसे ही वे शहर में गए तो उन्होंने सोचा, यहाँ परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए क्या करना होगा?
यही सवाल मन में आता है जब हम कम अन्य स्थानीय जगहों पर भी रहते है- शहर की बस्तियाँ, कॉलेज परिसर, या समृद्ध उपनगर। यशायाह के दिनों में भी यह अलग नहीं था। परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए क्या करना होगा?
जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है।
परमेश्वर का उत्तर था: “देखो, मेरे दास…” (यशायाह 42:1 )। दास वह व्यक्ति होता है जो अपने स्वामी की इच्छा को पूरा करता है। यदि आप दास हैं, तो आपके काम का विवरण बहुत सरल है: आपका स्वामी आपसे जो कुछ भी करने के लिए कहता है, आप उसे करते हैं!
इसलिए जब परमेश्वर अपने दास का परिचय देते हैं, तो वे कहते हैं, “मैं तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में बताता हूँ जो संसार में मेरी इच्छा पूरी करेगा। “दास के बारे में परमेश्वर के वचन हमें उस प्रकार की सेवकाई के लिए एक स्वरूप देते हैं जो उनकी इच्छा को पूरा करता है और किस प्रकार के व्यक्ति का वह संसार में अपनी आशीष लाने के लिए उपयोग करते हैं।
परमेश्वर के दास के पास उल्लेखनीय विशेषाधिकार हैं: “मेरे दास को देखो जिसे मैं सम्भाले हूँ, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है, मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह जाति जाति के लिये न्याय प्रगट करेगा ” (42:1)।
दास परमेश्वर द्वारा चुना हुआ है, प्रिय है, अभिषिक्त है, और कायम है, और उसकी बुलाहट दुनिया में न्याय लिए है। न्याय कानून की अदालत में सही निर्णय लेने से कहीं अधिक है। दास का काम चीजों को व्यवस्थित करना और उन्हें वैसा ही बनाना है जैसा उन्हें होना चाहिए – बिना किसी भ्रष्टाचार, धोखा या शोषण के।
किसी भी मानक से, राष्ट्रों को न्याय दिलाना एक असाधारण उपलब्धि होगी। इसे कौन ला सकता है? और यह कैसे किया जा सकता है?
यदि आपको दुनिया को न्याय दिलाने का काम दिया जाए, तो आप कहाँ से शुरुआत करेंगे? क्या आप एक पत्रकार सम्मेलन आयोजित करेंगे, एक शिक्षा कार्यक्रम शुरू करेंगे, या फौजी कानून घोषित करेंगे और सेना को सड़कों पर उतारेंगे? परमेश्वर का दास इनमें से कोई भी काम नहीं करेगा। इसके बजाय, हमें बताया गया है, “न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनाएगा” (42:2)।
परमेश्वर का दास अपना प्रचार नहीं करेगा। वह उस तरह का व्यक्ति नहीं होगा जो हर किसी पर हावी होने का प्रयास करें। वह नहीं चिल्लाएगा। हाला किं, उसकी उत्कृष्ट बात उसकी सेवकाई की शांति होगी। परमेश्वर की इच्छा उन क्रोधित लोगों द्वारा पूरी नहीं की जा सकती है जो अपने स्वयं की योजना को बढ़ावा देते हैं, बल्कि दयालु लोगों द्वारा पूरी की जाती है जो दूसरों का भला चाहते हैं।
करुणा की शक्ति
परमेश्वर की इच्छा इस दुनिया में शानदार कार्यक्रमों की प्रतिभा या मशहूर हस्तियों की चकाचौंध से पूरी नहीं होती है। दास की शैली पूरी तरह से अलग है: “कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा: वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा” ( 42:3)।
जब सरकंडा झुकता है, तो वह आमतौर पर कुचला जाता है। और यदि कोई मोमबत्ती धीमी गति से जल रही हो, तो आप उसे बुझा कर दूसरी मोमबत्ती जलाते हैं। परन्तु परमेश्वर कहते हैं कि उनका दास ऐसा नहीं करेगा। वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा, और न ही हल्की जलती मोमबत्ती को बुझाएगा।
शायद आप चोटिल सरकण्डे की पहचान खुद से कर सकते हैं। आपको कुचला गया है और आप उस कुचले हुए वजन के नीचे खड़े होने में संघर्ष कर रहे हैं जिसे सहन करना बहुत मुश्किल लगता है। या शायद आप सुलगती हुई मोमबत्ती की तस्वीर से खुद को जोड़ सकते हैं। एक समय था जब आपका विश्वास प्रज्वलित था, परन्तु अब आपका ईंधन समाप्त हो रहा है। आपके आंतरिक धैर्य, आशा और प्यार के संसाधन जैसे कि कम हो रहे हैं, और आपके भीतर की रोशनी अस्थिर होती जा रही है।
टूटे, कुचले और जले हुए लोग कभी भी बड़बोले पात्र की ओर आकर्षित नहीं होंगे। वो दास जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है उसके पास एक शांत सेवकाई होती है जो घायल और थके हुए लोगों के जीवन को करुणा से छूती है।
चुनौती का पैमाना
जिन लोगों के पास परमेश्वर अपने दास को भेजते हैं, वे न केवल कुचले और टूटे हुए हैं, बल्कि अन्धे और बन्धे हुए भी हैं। इसलिए दास को भारी चुनौती का सामना करना पड़ता है। “कि तू अंधों की आँखें खोले, बन्दियों को बन्दीगृह से निकाले और जो अन्धियारे में बैठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले” (42:7)।
यदि लोगों में आध्यात्मिक दृष्टि की क्षमता होती, तो दुनिया को सुसमाचार की खुशखबरी से भर देना अपेक्षाकृत आसान होता। लोग तुरन्त अपनी ज़रूरत समझते और मसीह के पास आजाते । परन्तु परमेश्वर के दास के सामने समस्या यह है कि जब वें परमेश्वर की महिमा का वर्णन करते हैं, तब उनके श्रोतागण सत्य के प्रति अंधे होते हैं और उसे प्रतिक्रिया देने की क्षमता से वंचित होते हैं ।।
यदि पाप केवल एक विकल्प होता, तो लोगों को बेहतर विकल्पों के प्रति शिक्षित करना अपेक्षाकृत आसान होता । परन्तु पाप एक ऐसी शक्ति है जो हमें बांधती है। पवित्र आत्मा के इस कार्य के बिना हम सभी एक कला प्रदर्शनी में अंधे लोगों की तरह या एक निचले द्वीप पर कैदी के समान है।
रेखाचित्र में कौन सही बैठता है?
जब परमेश्वर ने दास के बारे में पहली बार बात की, तो यशायाह को यह प्रतीत हुआ होगा कि वें इस्राएल के बारे में बात कर रहे थे: “हे मेरे दास इस्राएल, हे मेरे चुने हुए याकूब, हे मेरे मित्र अब्राहम के वंश; तू जिसे मैं ने पृथ्वी के दूर दूर देशों से लिया और पृथ्वी की छोर से बुलाकर यह कही, “तू मेरा दास है, मैं ने तुझे चुना है” (41:8-9)
परमेश्वर के लोग, इस्राएल, को अन्यजातियों के बीच अपने दास की भूमिका को पूरा करने के लिए बुलाया गया था। उन्हें परमेश्वर के सत्य, व्यवस्था और बलिदानों का प्रकाश दिया गया था। परमेश्वर के लोगों को वह माध्यम बनना था जिसके द्वारा परमेश्वर की आशीष संसार में आएगी।
परन्तु परमेश्वर के लोग उनकी बुलाहट पर खरे नहीं उतर सके। अंधों को दृष्टि देने और बन्दियों को छुड़ाने के लिए दास को बुलाया गया था, परन्तु परमेश्वर ने कहा, “मेरे दास के सिवाय कौन अंधा है?… यह वे लोग है… गड़हियों में फँसे हुए और कालकोठरियों में बन्द किए हुए हैं”
(42:19-22)। जिन लोगों को दूसरों को दृष्टि और स्वतंत्रता देनी थी, वे अंधे निकले और वे खुद ही बंधन में बंध गए।
क्या यशायाह दास हो सकता था?
चूँकि इस्राएल स्पष्ट रूप से परमेश्वर के दास की भूमिका को पूरा करने की स्थिति में नहीं था, तो क्या यशायाह परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने का माध्यम हो सकता था? यशायाह से सीधे बात करते हुए, परमेश्वर ने कहा, “तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपनी महिमा प्रगट करूँगा ” ( 49:3)। परमेश्वर ने इस्राएल को राष्ट्रों में प्रकाश लाने के लिए बुलाया था, परन्तु इस्राएल असफल रहा, इसलिए परमेश्वर यशायाह से कह रहे थे, “तू इस्राएल है। तुम मेरे दास हो।” परन्तु यशायाह संभवतः वह माध्यम कैसे हो सकता था जिसके द्वारा परमेश्वर की आशीष संसार में आती?
यशायाह जानता था कि यह काम उससे परे है। जब उसने कहा, “मैं ने तो व्यर्थ परिश्रम किया ” ( 49:4), वह कह रहा था, “किसी भी तरीके से मेरी छोटी सेवकाई परमेश्वर के दास की भूमिका को पूरा नहीं कर सकती!”
परन्तु परमेश्वर इससे भी आगे गए: “यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रों का उद्धार करने और इस्राएल रक्षित लोगों को लौटा ले आने के लिये मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे जाति-जाति के लिये ज्योति ठहराऊँगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए” (49:6)। यह कार्य असंभव था! किसी भी भविष्यवक्ता ने कभी इसे हासिल नहीं किया या यहां तक कि इसके करीब भी नहीं आए। तो कौन सा दास परमेश्वर की बुलाहट पर खरा उतर सकता था और उनकी इच्छा को पूरा कर सकता था?
कौन विश्वास करेगा?
जब परमेश्वर ने उस व्यक्ति को प्रकट किया जो संसार में प्रेम, न्याय, प्रकाश और उद्धार लाएगा, तो यशायाह इतना लड़खड़ा गया, उसे डर था कि जो कुछ उसने देखा है उस पर कोई विश्वास नहीं करेगा। “जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?” ( 53: 1) | यशायाह कह रहा था, “यदि मैं तुम्हें बताऊँ कि मैंने क्या देखा,” तो तुम विश्वास नहीं करोगे।”
यशायाह इस बात से उबर नहीं पा रहा था कि वह दास जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाला था, वह तिरस्कृत और अस्वीकृत था। उस पर भरी हिंसा की गयी, और दास का रूप इस कदर बिगड़ गया, कि लोगों ने अपना मुँह अपने हाँथों से छुपा लिया। वे मुश्किल से उसकी ओर देख पा रहे थे।
यशायाह अवश्य ही चौक गया होगा जब उसने देखा कि उस दास का क्या होगा जिस पर परमेश्वर के आशीष की आशा निर्भर करती है: “वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ ( 53:5)।
तब परमेश्वर ने यशायाह को कुछ ऐसा बताया जिससे अवश्य ही उसका दम निकल गया होगा । “तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले” ( 53:10)। परमेश्वर के विनम्र, दयालु दास पर थोपी गई पीड़ा परमेश्वर की इच्छा कैसे हो सकती है? क्या इसका मतलब यह था कि परमेश्वर का दास असफल होगा? यशायाह ने यह सोचा होगा। परन्तु परमेश्वर ने कहा: “उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी ” ( 53:10)। परमेश्वर का दास राष्ट्रों के लिए आशीष लाएगा। और यह उसके कष्ट और मृत्यु के माध्यम से आएगा।
नए नियम में यीशु को स्पष्ट रूप से परमेश्वर के विनम्र, दयालु दास के रूप में पहचाना गया है। उनकी सेवकाई ने भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा कही गई बात को पूरा किया: “देखो, यह मेरा दास है, जिसे मैं ने चुना है; मेरा प्रिय, जिससे मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा, और वह अन्य जातियों को न्याय का समाचार देगा । वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा, और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा । वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा, और धूआँ देती हुई बत्ती को न बुझाएगा, जब तक वह न्याय को प्रबल न कराए। और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी” (मत्ती 12:18-21)।
यीशु परमेश्वर को जानने के लिए हमारी अंधी आंखें खोलते हैं, और हमें पाप की शक्ति से मुक्त करते हैं जो हमें बांधती है। आप उनके पास आ सकते हैं, यह जानते हुए कि वह घायल, टूटे, और लड़खड़ाते लोगों पर दया करते हैं।
यीशु मसीह वह दास है जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करता है। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ” (यूहन्ना 20:21 ) । जो लोग यीशु को जानते हैं उन्हें इस टूटे हुए संसार में जाना होगा और मसीह की करुणा दिखानी होगी। परमेश्वर ने यीशु में जो कुछ किया है, हमें उसकी सच्चाई का प्रचार करना होगा, ताकि जो लोग उन्हें नहीं जानते वे उस स्वतंत्रता का आनंद उठा सकें जो वे देते हैं।
मसीह अपने दासों को पृथ्वी के सभी राष्ट्रों में भेजते है। जब हम उनके नाम में सेवकाई करेंगे, तो परमेश्वर की आशीष बहुत से लोगों के पास आएगी, और मसीह की आत्मा ने जो कष्ट उठाया, वे उसका का फल देखेंगे और संतुष्ट होंगे।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1- दास क्या है? क्या आप खुद को परमेश्वर का दास मानते हैं?
2- आपको क्यों लगता है कि परमेश्वर करुणा के माध्यम से अपना कार्य करना पसंद करते हैं?
3- संसार में परमेश्वर के कार्य को विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण क्या बनाता है?
4- यशायाह ने जिस दास का वर्णन किया उसके बारे में आपको क्या आश्चर्यजनक लगता है?
5- वह कौन सा साधन है जिसके द्वारा यह दास संसार में परमेश्वर की आशीष को लाता है?