मत्ती 11: 25- 30
25 उसी समय यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, कि तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है।
26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा।
27 “मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।
28 “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे* लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।
29 मेरा जूआ* अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।
30 क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”
बाइबल में, परमेश्वर ने प्रकट किया है कि वह एक है। परन्तु पुराना नियम कुछ ऐसे प्रश्नों को उठाता है जिनका हल बाद तक नहीं सुलझाए गया। उदाहरण के तौर पर, रचना के समय परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं” (उत्पत्ति 1:26)। जब परमेश्वर हमें इतनी स्पष्टता से बताते कि वे एक हैं तो हम शब्द क्यों? नए नियम में, परमेश्वर ने खुलासा किया कि वह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है। परमेश्वर प्रेम है (1 यूहन्ना 4:8), और जब कुछ और अस्तित्व में नहीं था, तो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच प्रेम बहता था (यूहन्ना 17:24)।
एक बूढ़े पादरी की भौंहें सिकुड़ गईं, जब उन्होंने अपना आधा चाँद के आकार के चश्में को थोड़ा सरका कर ऊपर की ओर बिखरी हुई मंडली को देखा और उस संदेश को शुरू किया जिस पर वे पूरे सप्ताह विचार कर रहे थे। “पहले,” उन्होंने धीरे से कहा, “मैं उस चीज़ की खोज करने जा रहा हूँ जिसे खोजा नहीं जा सकता। फिर,” उन्होंने बढ़ते आत्मविश्वास के साथ कहा, ”मैं ना समझ में आने वाली बात समझाने जा रहा हूँ। और अंततः…” वे थोड़ा रुके, शब्दों को खोजने के लिए। “मैं गूढ़ रहस्य को उजागर करने जा रहा हूँ!”
मैं इतना महत्वाकांक्षी नहीं हूँ, और विस्मय की भावना के साथ मैं पूरे ईसाई धर्म में सबसे विशिष्ट परन्तु सबसे कठिन सिद्धांत के बारे में लिखता हूँ: एक ही परमेश्वर है, और वह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है।
परमेश्वर के स्वभाव को समझने की अपेक्षा न करें। मछली को मानव स्वभाव की बहुत ही सीमित समझ हो सकती है, और उसी तरह, परमेश्वर के स्वभाव को समझना हमारी क्षमता से परे है।
परमेश्वर के जीवन में डूबा हुआ
यदि हमें वास्तव में परमेश्वर को जानना है, तो हमें उन्हें पिता, पुत्र और आत्मा के रूप में अनुभव करना होगा। मत्ती के सुसमाचार के अंत में, यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं कि “तुम जाओ,… सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो” (मत्ती 28:19)।
बपतिस्मा शब्द का शाब्दिक अर्थ है डुबाना या भिगोना। ईसाई जीवन पूरी तरह से पिता में सराबोर होने, पुत्र में डूब जाने और आत्मा में भीगने के बारे में है। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा एक विश्वासी के जीवन के हर हिस्से में व्याप्त हैं। आप पुत्र के बिना पिता को या आत्मा के बिना पुत्र को नहीं जान सकते।
इसलिए यद्यपि हम परमेश्वर के स्वभाव को पूरी तरह से समझने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, यदि हमें परमेश्वर को उनके स्वरूप के रूप में जानना है तो हमें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बारे में जो कुछ भी प्रकट किया गया है उसे अवश्य समझना चाहिए।
आधार बिंदु के स्थान को ठीक करना
हम तीन कथनों में संक्षेपित कर सकते हैं कि परमेश्वर ने अपने स्वभाव के बारे में हमें क्या बताया है।
सबसे पहले, एक ही परमेश्वर है। यह पुराने और नए नियम दोनों में स्पष्ट है। परमेश्वर कहते हैं, “हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है” (व्यवस्थाविवरण 6:4)। “एक ही प्रभु है,…एक ही परमेश्वर और पिता है” (इफिसियों 4:5-6)। ईसाई तीन परमेश्वरों में विश्वास नहीं रखते। परमेश्वर एक है।
दूसरा, ईश्वर तीन व्यक्तियों में विद्यमान है। पिता, पुत्र और आत्मा की विशिष्ट पहचान पूरे नए नियम में लिखी गई है। पिता पुत्र को भेजता है (गलातियों 4:4)। पुत्र पिता से प्रार्थना करता है (यूहन्ना 17:1)। आत्मा पुत्र की महिमा करता है (यूहन्ना 16:14), और पुत्र आत्मा भेजता है (प्रेरित 2:33)। परमेश्वर के तीन व्यक्तियों से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए। पिता क्रूस पर नहीं मरे। पुत्र ने स्वयं को संसार में नहीं भेजा। आत्मा मृतकों में से नहीं जी उठा। परमेश्वर एक है और वह तीन व्यक्तियों में विद्यमान है।
तीसरा, प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतः परमेश्वर है। पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है, और आत्मा परमेश्वर है। मसीह ने कहा, “मैं और पिता एक हैं” (यूहन्ना 10:30)। उन्होंने सृष्टि के शुरू होने से पहले पिता की महिमा साझा की (17:5)। पवित्र आत्मा के माध्यम से, यीशु की उपस्थिति उनके शिष्यों के साथ थी, भले ही वे पिता के पास लौट रहे थे (14:16-18)। यदि आत्मा उनके साथ था, तो मसीह उनके साथ थे, और यदि मसीह उनके साथ थे, तो पिता उनके साथ थे (14:23)।
पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है, और आत्मा परमेश्वर है, परन्तु तीन अलग परमेश्वर नहीं हैं। एक शाश्वत परमेश्वर है, और वह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है।
समानताओं के साथ समस्या
सदियों से, लोगों ने परमेश्वर के स्वरूप को समझाने के लिए समानताओं का उपयोग करने का प्रयास किया है। परन्तु यदि प्राकृतिक दुनिया में कोई समानता होती जो हमें परमेश्वर के स्वभाव को समझने में मदद करता, तो निश्चित रूप से परमेश्वर ने इसे बाइबिल में रखा होता।
त्रिएकत्व की समानताएं आमतौर पर हमें सत्य के एक हिस्से को देखने में मदद करती हैं, परन्तु साथ ही वे किसी और चीज़ को विकृत या अस्पष्ट कर देती हैं। कुछ लोग एक व्यक्ति जो तीन विभिन्न भूमिकाएं निभा रहा है उसकी समानताओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, पादरी कहते हैं कि वे एक पति, एक पिता और एक पादरी हैं। परन्तु यह समानता कम पड़ जाती है क्योंकि इन तीन भूमिकाओं को पूरा करने वाला केवल एक ही व्यक्ति है। परमेश्वर तीन व्यक्तियों में विद्यमान है; पिता पुत्र नहीं है, और पुत्र आत्मा नहीं है।
पादरी कहते हैं कि एक बार, जब वे स्कॉटलैंड में एक पहाड़ पर चढ़ रहे थे, तो एक धुंध नीचे घाटी में शहर के ऊपर आ गई और बस गई। वे शहर नहीं देख पा रहे थे, परन्तु वे उसके चारों ओर सब कुछ देख सकते थे।
परमेश्वर के स्वरूप के बारे में सोचते समय उन्हें वह चित्र उपयोगी लगता है। त्रिएकत्व का सत्य धुंध में छिपा हुआ है। हम यह नहीं समझा सकते कि एक परमेश्वर तीन व्यक्तियों में कैसे विद्यमान हो सकता है। परन्तु हम स्पष्ट रूप से पहचान सकते हैं कि सत्य की सीमा से परे क्या है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई कहता है कि मसीह परमेश्वर से कम हैं, या कि कई देवता हैं, तो हम शास्त्रों से तुरन्त देख सकते हैं कि यह सत्य से बाहर है। कोहरा सत्य को ही ढक देता है, परन्तु जो सत्य के बाहर है उसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
किसी रहस्य पर कैसे प्रतिक्रिया दें
परमेश्वर का स्वरूप एक रहस्य है, परन्तु यह कोई विरोधाभास नहीं है। यदि ईसाई लोग इन दोनों बातों को मानते कि एक परमेश्वर है और तीन देवता हैं, तो यह एक विरोधाभास होगा। या यदि हम यह मान लें कि तीन व्यक्ति हैं और एक व्यक्ति है, तो यह विरोधाभास होगा। परन्तु यह कहना कि एक परमेश्वर है जो तीन व्यक्तियों में विद्यमान है, कोई विरोधाभास नहीं है। यह एक रहस्य है।
आपको इस रहस्य पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए?
सबसे पहले, इससे मुँह न मोड़ें। यदि आप परमेश्वर के बारे में जो कुछ भी नहीं समझते उससे मुँह मोड़ लेते हैं, तो आप उनके अथाह वैभव की महिमा से चूक जायेंगे।
दूसरा, इसे समझाने की कोशिश ना करें। आप उस स्थान तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे जहाँ आप यह कह सके, “अब यह सब मुझे पूरी तरह से समझ में आ रहा है; मुझे नहीं पता कि मैंने इसे पहले क्यों नहीं देखा”। परमेश्वर आपको वहाँ कभी नहीं पहुँचने देंगे।
तीसरा, इसे आपको आराधना की ओर ले जाने दें। आप पूरे अनंत काल तक परमेश्वर की महिमा पर आश्चर्य करते हुए बिताएंगे, इसलिए जो कुछ उन्होंने पहले ही प्रकट किया है उसके आश्चर्य के जवाब में अपनी आराधना शुरू करें।
पिता परमेश्वर के पास आना
तो हम ऐसे परमेश्वर के पास कैसे आ सकते हैं जो इतना महान है कि हम उनके स्वभाव को समझ नहीं सकते? यीशु ने कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना 14:6)।
यदि आप हिन्दुस्तान के प्रधान मंत्री से मिलने जाना चाहते हैं तो आप कई तरीके अपना सकते हैं। यदि आप उसकी पत्नी को जानते हैं, तो वे आपको उनसे मिलवा सकती हैं। या यदि आप राज्य सचिव या किसी प्रमुख अधिकारी को जानते हैं, तो वे आपको वहाँ प्रवेश दिलवा सकते हैं। हिन्दुस्तान के प्रधान मंत्री के करीब कई लोग हैं, परन्तु पिता परमेश्वर के करीब कौन है?
“और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता” (मत्ती 11:27)। “परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में है, उसी ने उसे प्रगट किया” (यूहन्ना 1:18)। इसका तात्पर्य यह है कि यीशु ही एकमात्र है जो हमें पिता के पास ला सकते हैं(यूहन्ना 14:6)।
पिता परमेश्वर को जानना
यदि हम जानना चाहते हैं कि पिता परमेश्वर के साथ रिश्ता कैसा लगता है, तो हमें यह देखकर शुरुआत करनी चाहिए कि यीशु के लिए इसका क्या अर्थ है।
मसीह हमें एक ऐसे रिश्ते में आमंत्रित करते हैं जिसमें हम पिता के अधिकार के अधीन हैं। आप यीशु के जीवन में इससे चूक नहीं सकते। उनका पूरा जीवन पिता के उद्देश्य के साथ जुड़ा हुआ था, और इस बात को गतसमनी के बगीचे से अधिक स्पष्ट रूप से कभी नहीं देखा गया था, जहाँ यीशु ने कहा था, “हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए, तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो” (मत्ती 26:39)।
यदि हम परमेश्वर को पिता के रूप में मानते हैं, तो पहला प्रश्न यह उठता हैं कि क्या हम उनके अधिकार के अधीन रहने के लिए तैयार हैं, चाहे इसकी कोई भी कीमत हो। ईसाई जीवन की शुरुआत तब होती है जब आप यह कहने के स्थान पर आते हैं, “मेरी नहीं, बल्कि आपकी इच्छा पूरी हो।” यदि आप पिता के प्रेम को जानना चाहते हैं, तो आपको खुद को उनके अधिकार के प्रति समर्पित करना होगा।
जिस रिश्ते के लिए यीशु हमें आमंत्रित करते हैं, वह भी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें हम उसी प्रेम का आनंद लेते हैं जो पिता अपने पुत्र के लिए रखते हैं: “जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा” (यूहन्ना 15:9; 17:26 भी देखें)। परमेश्वर के प्रेम की क्षमता क्या है? परमेश्वर अपने अस्तित्व में शाश्वत, अपनी शक्ति में असीमित और अपने ज्ञान में अनंत है। उनका प्रेम पृथ्वी पर हमारी समझ से परे और स्वर्ग में स्वर्गदूतों की समझ से भी अधिक है।
हम आराधना, आश्चर्य, प्रेम और स्तुति में खो जायेंगे जब स्वर्ग में परमेश्वर के प्रेम की पूरी सीमा हमारे सामने प्रकट होगी, और यह पवित्र आत्मा का विशेष कार्य है कि वह हमें बताए कि अभी भी हमें इसी तरह प्रेम किया जाता है (रोमियों 5:5).
जो लोग पिता के प्रेम में भागीदार हैं, वे उनकी महिमा में भी भागीदार होंगे: “वह महिमा जो तू ने मुझे दी मैं ने उन्हें दी है” (यूहन्ना 17:22)। ऐसे समय आएंगे जब पिता के अधिकार के अधीन होना बहुत महंगा होगा, परन्तु पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि यह “उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं” (रोमियों 8:18)।
यीशु के लिए परमेश्वर को अपने पिता के रूप में जानने का अर्थ था उनके अधिकार के प्रति समर्पित होना, उनके प्रेम का आनंद लेना और उनकी महिमा को साझा करना। जब यीशु हमें अपने माध्यम से पिता के पास आने के लिए आमंत्रित करते हैं, तो वे हमें उसी तरह के रिश्ते में आमंत्रित करते हैं।
परमेश्वर एक है, और वह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है। यह एक रहस्य कैसे हो सकता है, परन्तु हमें इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि परमेश्वर हमारी समझ की क्षमता से भी बड़ा है। परमेश्वर को पिता के रूप में जानना हमारे लिए स्वाभाविक नहीं है। हमें उनके साथ रिश्ते में लाने की जरूरत है, और यही कारण है कि यीशु मसीह दुनिया में आए। वह पिता की ओर से उन्हें ज्ञात कराने और हमें पिता के पास लाने के लिए आये थे।
परमेश्वर के वचन के साथ आगे जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. परमेश्वर के स्वभाव के बारे में वे तीन आधार बिंदु क्या हैं जो हमें बाइबल में मिलते हैं? आप इनमें से किससे सर्वाधिक परिचित हैं? सबसे कम परिचित?
2. त्रिएकत्व की समानताओं का उपयोग करने का क्या लाभ (और क्या हानि) है?
3. विरोधाभास और रहस्य में क्या अंतर है? किसी रहस्य के बारे में सुझाई गई तीन प्रतिक्रियाओं (मुँह न मोड़ें, समझाने की कोशिश न करें, इसे आपको आराधना की ओर ले जाने दें) में से किसको आपने नज़रअंदाज कर दिया है? क्यों?
4. कोई व्यक्ति परमपिता परमेश्वर तक कैसे पहुँच प्राप्त करता है?
5. आपको परमपिता परमेश्वर के साथ यीशु के रिश्ते के बारे में सबसे आकर्षक क्या लगता है? सबसे कम आकर्षक? क्यों?