यशायाह 6: 1-8
1 जिस वर्ष उज्जियाह राजा मरा, मैंने प्रभु को बहुत ही ऊँचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया। (प्रका. 4:2,6, मत्ती 25:3, प्रका. 7:10)
2 उससे ऊँचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छः-छः पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुँह को ढाँपे थे* और दो से अपने पाँवों को, और दो से उड़ रहे थे।
3 और वे एक दूसरे से पुकार-पुकारकर कह रहे थे: “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” (प्रका. 4:8, प्रका. 15:8)
4 और पुकारनेवाले के शब्द से डेवढ़ियों की नींवें डोल उठी, और भवन धुएँ से भर गया।
5 तब मैंने कहा, “हाय! हाय*! मैं नाश हुआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूँ, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूँ; क्योंकि मैंने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आँखों से देखा है!”
6 तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, मेरे पास उड़कर आया।
7 सने उससे मेरे मुँह को छूकर कहा, “देख, इसने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिए तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए।”
8 तब मैंने प्रभु का यह वचन सुना, “मैं किस को भेजूँ, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” तब मैंने कहा, “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज।”
हम उस कहानी का अनुसरण कर रहे हैं जो हमें यह बताती है कि कैसे परमेश्वर के लोगों ने उनके खिलाफ विद्रोह किया, उन्हें बंधुआई में ले जाया गया, और फिर प्रतिज्ञा किए हुए देश में वापस लाया गया। इन वर्षों के दौरान, परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा अपने लोगों से बात की। पुराने नियम की अंतिम सत्रह पुस्तकों में इन भविष्यद्वक्ताओं के लेख हैं, जिनमें से पहला भविष्यद्वक्ता यशायाह था।
11 सितंबर, 2001, एक ऐसी तारीख है जो अमेरिकी इतिहास में हमेशा के लिए छप चुकी है। न्यूयॉर्क शहर में एक बादल रहित सुबह, दो अपहरण किये गए विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के द्विन टॉवर से टकराए।
इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर, मीडिया ईसाई नेताओं से पूछने लगा: इसमें ईश्वर कहाँ है? क्या यह अमेरिका पर प्रलय है? क्या यह दुनिया का अंत है?
परमेश्वर ने हमें इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया है, इसलिए देश भर के पादरियों ने शास्त्रों की खोज की क्योंकि हम यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि परमेश्वर का वचन इस असाधारण घटना पर कैसे सर्वोत्तम रूप से लागू किया जा सकता है। भविष्यवक्ताओं के लिए ऐसा नहीं था। वे परमेश्वर की सम्मति में खड़े होते थे और सीधे परमेश्वर का वचन को ग्रहण करते थे। वे जानते थे कि परमेश्वर क्या कर रहे हैं और वे यह कहने में समर्थ थे, “यहोवा यों कहता है।”
परमेश्वर की ओर लापरवाही से बढ़ना
यशायाह, सबसे प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं में से एक, ने साठ से अधिक वर्षों की अवधि में परमेश्वर का वचन बोला। उसकी सेवकाई चार राजाओं तक फैली हुई थी: उज्जिय्याह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह (यशायाह 1:1 ) |
जिस वर्ष राजा उज्जिय्याह की मृत्यु हुई, यशायाह को परमेश्वर का दर्शन दिया गया जिससे उसके जीवन और सेवकाई को आकार मिला। उज्जिय्याह ने यरूशलेम में बावन वर्षों तक शासन किया, और उस समय के दौरान, राष्ट्र ने समृद्धि की उल्लेखनीय अवधि का आनंद लिया। इससे परमेश्वर के लोगों में साहस की भावना उत्पन्न हुई, और जैसे-जैसे उनका साहस बढ़ता गया, वे परमेश्वर के प्रति और ज्यादा लापरवाह होते गए।
बलि चढ़ाने, उत्सवों और त्योहारों को मनाने के लिये विशाल भीड़ मन्दिर में इकट्ठी होती थी। परन्तु उनके धर्म का उनके जीवन पर बहुत थोड़ा फर्क पड़ा। जो मंदिर कभी परमेश्वर की महिमा से भरा हुआ था, वह पारंपरिक मूल्यों का मात्र प्रतीक बन गया था। इस धार्मिक गतिविधि से प्रसन्न होना तो दूर की बात है, परमेश्वर के लिए ये घृणित था “कौन चाहता है कि तुम मेरे आँगनों को पाँव से रौंदो?” (1:12)। यशायाह के समय में सबसे बड़ी समस्या यह थी कि लोगों ने परमेश्वर की पवित्रता को खो दिया था।
यहोवा का दर्शन
पहले से ही यशायाह कई वर्षों से प्रचार कर रहा था जब परमेश्वर ने उससे एक दर्शन में बात की: “जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊँचे सिंहासन पर विराजमान देखा” (यशायाह 6:1)।
परमेश्वर कैसे दिखते हैं? यशायाह हमें बताते हैं: “मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊँचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया” ( 6:1)। यह ऐसा था मानो वह कह रहा हो, “परमेश्वर ने स्वयं को मुझ पर प्रकट किया, परन्तु मैं उनका मुख नहीं देख सका। मैं आपको बस इतना ही बता सकता हूँ कि वह ऊँचा था और ऊँचे सिंहासन पर था। मैं केवल उनके वस्त्र का छोर देख सका।”
परमेश्वर का तेज अपार है। मूसा उनकी महिमा के तेज को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख सका, वह केवल वर्णन कर पाया कि परमेश्वर के पैरों के नीचे क्या है: “उसके चरणों तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था” (निर्गमन 24:10)।
तब यशायाह ने स्वर्गदूतों को एक दूसरे को पुकारते सुना: “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है” (यशायाह 63)। यदि आप किसी कथन पर जोर देना चाहते हैं, तो आप उस वचन को रेखांकित कर सकते हैं, उसे हाइलाइट कर सकते हैं या अपनी किताब मे निशान बना सकते हैं। आप इसे दोहरा कर भी जोर दे सकते हैं, जैसा कि यीशु ने किया जब उन्होंने कहा, “मैं तुझ से सच सच कहता हूँ…” (यूहन्ना 3:3 )।
बाइबल में केवल एक ही सत्य है जिस पर तीन बार जोर दिया गया है, और वह है परमेश्वर की पवित्रता । बाइबल कभी नहीं कहती कि परमेश्वर “क्रोध, क्रोध, क्रोध” है, या फिर परमेश्वर “प्रेम, प्रेम, प्रेम” है । परन्तु बाइबल यह अवश्य कहती है कि परमेश्वर “पवित्र, पवित्र, पवित्र” है। परमेश्वर की पवित्रता इतनी बुनियादी है कि यदि हम उनकी पवित्रता को नहीं समझ पाते हैं, तो हम उन्हें वैसा नहीं जान सकते जैसे वो हैं ।
देवदूत जो देखना सहन नहीं कर सके
यदि हम पूछते हैं, “पवित्रता क्या है?” यह मानों ये पूछने जैसा है कि “आग क्या है?” अग्नि को समझने का सबसे अच्छा तरीका उसके प्रभाव पर गौर करना है, और परमेश्वर की पवित्रता को समझने का सबसे अच्छा तरीका यह कि हम अनुभव करे कि जब परमेश्वर निकट आते है तो क्या होता है।
आप सोचेंगे कि स्वर्ग में रहने वाले स्वर्गदूत परमेश्वर की तत्काल उपस्थिति में सहज होंगे, परन्तु यशायाह ने देखा कि जब परमेश्वर निकट आए तो स्वर्गदूतों ने भी अपने चेहरे को ढाँक लिया।
उन्होंने ऐसा क्यों किया? इन स्वर्गदूतों ने हमारे समान पाप नहीं किया था। उन्हें शर्मिंदा होने की कोई वजह नहीं है। उनका पूरा जीवन परमेश्वर की सेवा में बीतता है। स्वर्गदूत अपने चेहरे को ढाँक लेते हैं क्योंकि वे वो प्राणी हैं, जो अपने रचयिता की उपस्थिति में अति विस्मित थे। भले ही आपने एक सिद्ध जीवन जिया और तब, यदि आप परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करेंगे, तो आप भी अपने रचयिता की महिमा के सामने एक प्राणी के रूप में भय और आश्चर्य में पीछे हट जायेंगे।
पतन के करीब आना
जब परमेश्वर निकट आए, तो मन्दिर डोल उठा और धुएँ से भर गया (यशायाह 6:4)। यशायाह ने कहा, “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ!” (6:5)। नष्ट शब्द का शाब्दिक अर्थ है पतन के करीब आना। यदि कोई बहुत सक्षम या सफल है, तो हम कभी-कभी कहते हैं, “उसको सब कुछ एक साथ मिल गया।” यशायाह ने इसके विपरीत अनुभव किया। जब उसने परमेश्वर को देखा, तो वह टूट गया।
यशायाह अपने समय के सबसे सम्मानित लोगों में से एक था। वह अपनी अद्भुत सेवकाई के लिए जाना जाता था, और इसमें कोई सन्देह नहीं कि उसकी प्रशंसा की जाती थी। अगर वह आज होते, तो हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए सम्मेलनों में उमड़ पड़ते, और लाखों लोग फेसबुक पर उनका अनुसरण कर रहे होते। परन्तु परमेश्वर की उपस्थिति में वह केवल इतना ही कह सकें, “हाय मुझ पर।” परमेश्वर की पवित्रता अच्छे से अच्छे लोगों को भी बर्बाद होने का एहसास करा सकती है।
भविष्यद्वक्ता के रूप में, यशायाह के होंठ उसकी सेवकाई के औजार थे। वाणी उसका आत्मिक वरदान था, परन्तु परमेश्वर की उपस्थिति में, उसने पाया कि उनके सबसे बड़े वरदान को भी शुद्ध किये जाने की आवश्यकता थी: “मैं अशुद्ध होंठ वाला व्यक्ति हूं,” उसने कहा ( 6:5)। जब आप परमेश्वर की पवित्रता को ग्रहण करेंगे, तो आप देखेंगे कि जिसे शुद्ध करने की आवश्यकता है वह केवल आपकी सबसे बुरी चीज़ नहीं है, बल्कि आपकी सबसे अच्छी चीज़ भी है।
परमेश्वर की दया के द्वारा छुए जाना
परमेश्वर की महिमा की एक क्षणिक झलक के बाद, जैसे ही मंदिर में धुंआ भर गया, यशायाह अंधेरे में डूब गया। वह परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति जागरूक था, परन्तु परमेश्वर उसकी दृष्टि से ओझल थे। तब मन्दिर की नींव हिलने लगी। यह बिल्कुल भयानक रहा होगा!
फिर, जब यशायाह ने धुएँ में झाँका, तो उसने एक स्वर्गदूत को जलते हुए अंगारे को वेदी से उठा कर अपने हाथ में लिए हुए उसकी ओर उड़ते देखा। स्वर्गदूत ने यशायाह के मुँह पर गर्म अंगारा छुआ कर कहाः “देख, इसने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिये तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए (यशायाह 6:7) |
वेदी वह स्थान था जहाँ बलिदान चढ़ाए जाते थे। इसलिए जब वेदी से अंगारा यशायाह के पास लाया गया, तो पाप के लिए परमेश्वर का प्रावधान व्यक्तिगत रूप से उस पर लागू हुआ। और ध्यान दें कि यह उस जगह पर लागू किया गया था जहाँ यशायाह को अपनी आवश्यकता के बारे में सबसे अधिक जानकारी थी। यशायाह ने अंगीकार किया था, “मैं अशुद्ध होठों वाला मनुष्य हूँ,” और अब परमेश्वर के दूत ने कहा, “देख, इस अंगारे ने तेरे होठों को छू लिया है; तेरा दोष दूर हो गया है।
इस गहरे और व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के अनुग्रह की खोज करने के बाद, यशायाह के भीतर परमेश्वर की सेवा करने की एक नई तत्परता आयी। जब परमेश्वर ने कहा, “मैं किसको भेजूँ, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” (6:8)। यशायाह ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज (6:8)। इसलिए परमेश्वर ने यशायाह को भेजा।
यह ऐसा था मानो परमेश्वर ने कहा, “यशायाह, तुम जाओ, क्योंकि तुम समझ चुके हो कि मैं कौन हूं, और तुम जानते हो कि पाप क्या है, और तुमने मेरे अनुग्रह का अनुभव किया है।” परमेश्वर की सेवा करने के विशेषाधिकार की एक नई भावना से भरकर, यशायाह परमेश्वर का परिचय दूसरों से कराने के लिए निकला।
यशायाह का परमेश्वर के साथ यह सामना हमें यीशु मसीह के आने की ओर इशारा करता है। यूहन्ना हमें बताता है कि “यशायाह ने… [यीशु की] महिमा देखी, और उसने उसके विषय में बातें की” (यूहन्ना 12:41)। पिता और पुत्र एक ही महिमा साझा करते हैं (यूहन्ना 17:5)। उस पवित्र को, जिसकी महिमा यशायाह ने देखी थी, क्रूस की वेदी पर रखा गया और वह हमारे पापों के लिए बलिदान बन गया।
जैसे यशायाह मन्दिर में अन्धकार से घिरा हुआ था, वैसे ही यीशु क्रूस पर अन्धकार में डूबे हुए थे (मत्ती 27:45)। जिस प्रकार परमेश्वर की उपस्थिति के आने से मन्दिर की नींव हिल गई थी, उसी प्रकार जब यीशु ने अपना प्राण त्यागा, तब पृथ्वी हिल गई और चट्टानें फट गई (मत्ती 27:51)। पृथ्वी काँप उठी जब मसीह ने जगत के पापों को अपने ऊपर उठा लिया और पिता ने पुत्र पर अपना न्याय उण्डेल दिया।
यीशु इसलिए मारे गए ताकि हम जैसे लोग जिन पर परमेश्वर की पवित्रता को ज़ाहिर किया गया हैं, वे लोग उनके अनुग्रह के स्पर्श और चंगाई को पा सके। यीशु मसीह में, परमेश्वर निकट आते हैं और कहते हैं, “तेरा अधर्म दूर हो गया, और तेरा पाप का प्रायश्चित हो गया।”
परमेश्वर पवित्र, पवित्र, पवित्र है। उनकी पवित्रता उनके चरित्र का आधार है। यशायाह के दिनों में मंदिर में हज़ारों लोग उमड़ पड़ते थे, परन्तु उन्हें उस परमेश्वर का कोई अनुभव नहीं था जिसकी वे उपासना करने का दावा करते थे। और आखिर में आप इस प्रकार की आराधना से ऊबने लगते है। परन्तु यदि आपको लगता है कि परमेश्वर उबाऊ है, तो आपने कभी बाइबिल के परमेश्वर का सामना नहीं किया है।
पाप एक पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध अपराध है, और उसके लिए प्रायश्चित की आवश्यकता है। इसके बिना, पापी उनकी उपस्थिति में नष्ट हो जाएँगे। सुसमाचार का शुभ सन्देश यह है कि यीशु, परमेश्वर के पुत्र ने, पवित्र परमेश्वर के न्याय को संतुष्ट किया, वह बलिदान बनकर जो हमारे सारे पापों का प्रायश्चित करता है।
जब आप परमेश्वर की विस्मयकारी पवित्रता को खोजेंगे, तब आप यशायाह की तरह, जो कुछ परमेश्वर ने यीशु मसीह में आपके लिए किया है, उसके आश्चर्य की सराहना करना शुरू कर देंगे। और आप महसूस करेंगे कि जीवन में आपका सबसे बड़ा विशेषाधिकार इस विस्मयकारी, महिमामयी, पवित्र परमेश्वर की सेवा करना है।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1- परमेश्वर के प्रति “बेपरवाह ” होने का क्या अर्थ है? क्या आपने अपने जीवन में ऐसा कुछ देखा है ?
2- पवित्रता क्या है? आप किसी और से परमेश्वर की पवित्रता की व्याख्या कैसे करेंगे?
3- आप कैसे जानेंगे कि आपने परमेश्वर की पवित्रता को समझ लिया है या नहीं? क्या आपको लगता है कि यह पवित्रता आपके पास है? क्यों या क्यों नहीं?
4- यशायाह की परमेश्वर के साथ मुलाकात के बारे में आपके लिए सबसे आश्चर्यजनक बात क्या है ?
5- क्या आप अपने जीवन के किसी ऐसे क्षेत्र के बारे में सोच सकते हैं जिसे सबसे ज्यादा शुद्ध करने की जरूरत है? परमेश्वर का आत्मा उस अनुग्रह को लाता है जो यीशु के बलिदान से वहां बहता है जहाँ आप हैं, और आपको छूता है ताकि आपके पाप का प्रायश्चित हो और आपका दोष दूर हो जाए।