दानिय्येल 1: 1-21
1 यहूदा के राजा यहोयाकीम के राज्य के तीसरे वर्ष में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम पर चढ़ाई करके उसको घेर लिया*।
2 तब परमेश्वर ने यहूदा के राजा यहोयाकीम को परमेश्वर के भवन के कई पात्रों सहित उसके हाथ में कर दिया; और उसने उन पात्रों को शिनार देश में अपने देवता के मन्दिर में ले जाकर, अपने देवता के भण्डार में रख दिया। (2 इति. 36:7)
3 तब उस राजा ने अपने खोजों के प्रधान अश्पनज को आज्ञा दी कि इस्राएली राजपुत्रों और प्रतिष्ठित पुरुषों में से ऐसे कई जवानों को ला,
4 जो निर्दोष, सुन्दर और सब प्रकार की बुद्धि में प्रवीण, और ज्ञान में निपुण और विद्वान और राजभवन में हाज़िर रहने के योग्य हों; और उन्हें कसदियों के शास्त्र और भाषा की शिक्षा दे।
5 और राजा ने आज्ञा दी कि उसके भोजन और पीने के दाखमधु में से उन्हें प्रतिदिन खाने-पीने को दिया जाए। इस प्रकार तीन वर्ष तक उनका पालन-पोषण होता रहे; तब उसके बाद वे राजा के सामने हाज़िर किए जाएँ।
6 उनमें यहूदा की सन्तान से चुने हुए, दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह नामक यहूदी थे।
7 और खोजों के प्रधान ने उनके दूसरे नाम रखें; अर्थात् दानिय्येल का नाम उसने बेलतशस्सर, हनन्याह का शद्रक, मीशाएल का मेशक, और अजर्याह का नाम अबेदनगो रखा।
8 परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर और उसका दाखमधु पीकर स्वयं को अपवित्र न होने देगा*; इसलिए उसने खोजों के प्रधान से विनती की, कि उसे अपवित्र न होने दे।
9 परमेश्वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी।
10 और खोजों के प्रधान ने दानिय्येल से कहा, “मैं अपने स्वामी राजा से डरता हूँ, क्योंकि तुम्हारा खाना-पीना उसी ने ठहराया है, कहीं ऐसा न हो कि वह तेरा मुँह तेरे संगी जवानों से उतरा हुआ और उदास देखे और तुम मेरा सिर राजा के सामने जोखिम में डालो।”
11 तब दानिय्येल ने उस मुखिये से, जिसको खोजों के प्रधान ने दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के ऊपर देख-भाल करने के लिये नियुक्त किया था, कहा,
12 “मैं तुझ से विनती करता हूँ, अपने दासों को दस दिन तक जाँच, हमारे खाने के लिये साग-पात और पीने के लिये पानी ही दिया जाए।
13 फिर दस दिन के बाद हमारे मुँह और जो जवान राजा का भोजन खाते हैं उनके मुँह को देख; और जैसा तुझे देख पड़े, उसी के अनुसार अपने दासों से व्यवहार करना।”
14 उनकी यह विनती उसने मान ली, और दस दिन तक उनको जाँचता रहा।
15 दस दिन के बाद उनके मुँह राजा के भोजन के खानेवाले सब जवानों से अधिक अच्छे और चिकने देख पड़े।
16 तब वह मुखिया उनका भोजन और उनके पीने के लिये ठहराया हुआ दाखमधु दोनों छुड़ाकर, उनको साग-पात देने लगा।
17 और परमेश्वर ने उन चारों जवानों को सब शास्त्रों, और सब प्रकार की विद्याओं में बुद्धिमानी और प्रवीणता दी; और दानिय्येल सब प्रकार के दर्शन और स्वप्न के अर्थ का ज्ञानी हो गया। (याकू. 1:5,17)
18 तब जितने दिन के बाद नबूकदनेस्सर राजा ने जवानों को भीतर ले आने की आज्ञा दी थी, उतने दिनों के बीतने पर खोजों का प्रधान* उन्हें उसके सामने ले गया।
19 और राजा उनसे बातचीत करने लगा; और दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के तुल्य उन सब में से कोई न ठहरा; इसलिए वे राजा के सम्मुख हाज़िर रहने लगे।
20 और बुद्धि और हर प्रकार की समझ के विषय में जो कुछ राजा उनसे पूछता था उसमें वे राज्य भर के सब ज्योतिषियों और तंत्रियों से दसगुणे निपुण ठहरते थे।
21 और दानिय्येल कुस्रू राजा के पहले वर्ष तक बना रहा।
दानिय्येल की कहानी एक विदेशी भूमि में परमेश्वर के लोगों में से एक व्यक्ति के बारे में है, और यह हमें दिखाती है कि एक धर्मनिरपेक्ष और भौतिकवादी संस्कृति में कैसे रहना है। दानिय्येल प्रतिभाशाली छात्रों के एक छोटे समूह में से एक था, जिन्हें यरूशलेम की पहली घेराबंदी के बाद बेबीलोन ले जाया गया था। जब वो वहाँ पहुँचा तो वह किशोरावस्था में होगा और वह जीवन भर बेबीलोन में ही रहा।
पादरी कहते हैं की जब उनका परिवार पहली बार अमेरिका आया, तो उनकी पत्नी, करेन, एक ईसाई स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाती थी। एक दिन बच्चे गलीचे पर बैठे राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बात कर रहे थे। उनकी पत्नी कैरेन ने बच्चों को बताया कि वह मतदान नहीं करेंगी और उन्होंने बच्चों से पुछा कि उनके मतदान नहीं करने का कारण क्या हो सकता है।
“क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आप बहुत बूढ़ी हैं?”
“क्या इसलिए कि आप हमें पढ़ाती हैं?”
“क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको बाद में किसी बैठक में जाना है?”
आखिरकार एक प्रतिभाशाली बच्चे ने पूछा, “क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आप इंग्लैंड से आई हैं, श्रीमती स्मिथ?”
“हाँ,” करेन ने कहा, “और क्या आप जानते हैं कि वे मुझे क्या बुलाते हैं? एक निवासी विदेशी।”
पादरी कहते हैं कि दो सप्ताह बाद, जब बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए गलीचे पर बैठे थे, तो एक छोटी लड़की उनकी पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगी: “प्यारे परमेश्वर, कृपया लोगों को श्रीमती स्मिथ को निवासी विदेशी कहना बदं करने में मदद करें। यह सचमुच बहुत अच्छा नहीं है!”
स्वर्गीय पासपोर्ट वाले विदेशी
बाइबल परमेश्वर के लोगों का वर्णन करने के लिए विदेशी या प्रवासी शब्द का उपयोग करती है (1 पतरस 2:11)। आप स्थायी रूप से इस दुनिया के निवासी नहीं हैं। आप दूसरे शहर के निवासी हैं “जिसका रचयिता और निर्माता परमेश्वर है” (इब्रानियों 11:10), और आप इस दुनिया में अपने जीवन को तब तक नहीं समझ सकते जब तक आप यह नहीं समझ लेते कि यह वह नहीं है जिसके लिए परमेश्वर ने आपको बनाया है।
यदि आप ईसाई हैं, तो आप उस व्यक्ति की तरह हैं जिसके पास दो पासपोर्ट हैं। उनमें से एक का समय समाप्त हो जाएगा, क्योंकि जब मसीह वापस आएंगे, तो जिन राष्ट्रों से हम जुड़े हैं वे इतिहास में खो जाएंगे। परन्तु स्वर्ग के निवासी के रूप में आपके पासपोर्ट का समय कभी समाप्त नहीं होगा। यह सदैव रहेगा।
ईसाई जीवन की कला इस दुनिया में बिना उपभोग हुए जीना है। हमें अपने छोटे से जीवन का उपयोग आने वाले अनन्त जीवन की तैयारी के लिए करना है।
किशोर का अपहरण!
कल्पना कीजिए कि दानिय्येल यरूशलेम में अपने स्कूल की मेज पर बैठा है। दरवाजे पर दस्तक होती है। एक क्षण बाद, नबूकदनेस्सर की सेना के तीन सैनिक अंदर घुस आते है और दानिय्येल को सात सौ मील दूर बेबीलोन ले जाया जाता है। उसके माता-पिता बेहद व्याकुल है, और इसे रोकने के लिए वे कुछ नहीं कर सकते।
परन्तु जब दानिय्येल बेबीलोन पहुँचता है, तो वह यह पाता है कि उसके साथ दुर्व्यवहार और कैद होने के बजाय, उसके साथ राजघराने जैसा व्यवहार किया जाता है और उसे एक शीर्ष स्तर के स्कूल में दाखिला दिलाया जाता है। उसे एक प्रमुख शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेने के लिए चुना जाता है जो उसे राजा की सेवा में तेजी से शामिल करेगा। यदि वह अपने पत्ते सही से खोलेगा, तो उसे बेबीलोन में एक शीर्ष नौकरी मिल जाएगी।
एक समान होने का दबाव
धर्मपरायण लोगों के प्रभाव में बड़े होने के बाद, दानिय्येल को एक नए वातावरण में रखा गया जहाँ वह पूरी तरह से गुमनाम था। जो लोग यात्रा करते हैं वे इस दबाव के बारे में सब जानते हैं। जब आप हवाई जहाज पर चढ़ते हैं या किसी होटल में दाखिल होते हैं, तो कोई नहीं जानता कि आप कौन हैं | आप जो बनना चाहते हैं वह बन सकते हैं और इसके साथ ही दबाव भी आता है।
दानिय्येल को अशपनज नामक एक शिक्षक की देखरेख में रखा गया था, जिसे उसे बेबीलोनियों का साहित्य और भाषा सिखाने के लिए नियुक्त किया गया था (दानिय्येल 1: 4)। यदि दानिय्येल यरूशलेम में होता, तो वह हिब्रू का अध्ययन करता और बाइबल सीखता । परन्तु बेबीलोन में बाइबल पाठ्यक्रम में नहीं थी।
इसके बजाय, दानिय्येल को विस्तार से वो सिखाने के लिए अनावृत किया गया था, जिनमें से अधिकांश चीज़े सीधे – सीधे उससे बिलकुल विपरीत थी जिसे उसने एक बालक के रूप में बाइबिल से सीखा था । दानिय्येल के दिमाग को बेबीलोनियाई शिक्षा भरकर, अशपनज परमेश्वर में दानिय्येल के विशिष्ट विश्वास को नष्ट करने का प्रयास कर रहा था, ताकि विद्यालय के तीन साल के अंत में, वह पूरी तरह से बेबीलोनियाई विश्वदृष्टि के साथ उभर सके। बेशक, वह तब भी यहूदी रहेगा, परन्तु वह बेबीलोनियाई की तरह सोचेगा और कार्य करेगा।
पाठ्यक्रम की चुनौतियों के अलावा, दानिय्येल को अपने शिक्षक और अन्य छात्रों के दबाव का सामना करना पड़ेगा: “तुम सच में कैसे कर सकविश्वास ते हो कि तुम्हारा परमेश्वर ही एकमात्र परमेश्वर है? तुम यह कैसे सोच सकते हो कि तुम ही एकमात्र व्यक्ति हो जिसके पास सत्य है?” आज धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालयों में ईसाई युवाओं को इसी दबाव का सामना करना पड़ता है।
माता-पिता कभी-कभी इस बात से व्यथित होते हैं कि उनके बच्चों को विद्यालय में क्या पढ़ाया जाता है। छात्र अक्सर ऐसे साहित्य का अध्ययन कर रहे होते हैं जो सीधे तौर पर सच्चाई का खंडन करता है । परन्तु ये कोई नई बात नहीं है। यह बिल्कुल वही स्थिति है जिसका सामना दानिय्येल ने किया था, और परमेश्वर ने हमें इस दबाव के खिलाफ खड़े होने का एक आदर्श दिया है। उसे अभिभूत करने की बात तो दूर, दानिय्येल की धर्मनिरपेक्ष शिक्ष ने वास्तव में उसका निर्माण किया। परमेश्वर की भलाई में, यह वह निहाई बन गई जिस पर उसका विश्वास परिपक्वता में बदल गया।
उच्च जीवन का स्वाद
अपने पूरे इतिहास में, परमेश्वर के लोग दो बिल्कुल अलग-अलग प्रकार के उत्पीड़न के अधीन रहे । फिरौन की योजना परमेश्वर के लोगों पर अत्याचार करने की थी । वह क्रूर था और परमेश्वर के लोगो से कड़ी मेहनत करवाता था। शैतान आज भी कई स्थानों पर उसी रणनीति का उपयोग करता है जहाँ ईसाइयों को उनके विश्वास के लिए सताया जाता है।
परन्तु नबूकदनेस्सर की योजना अधिक सूक्ष्म थी । उसकी रणनीति परमेश्वर के लोगों को बेबीलोन की संस्कृति में समाहित करने की थी, उनके लिए अवसरों के द्वार खोलने और उन्हें तेजी से सफलता की राह पर ले जाने की थी।
हमारी आत्माओं का दुश्मन अभी भी नबूकदनेस्सर की रणनीति का उपयोग कर रहा है, और वे बहुत प्रभावी साबित हो रहे हैं। रणनीति सरल है: सबसे पहले, परमेश्वर के लोगों को इस दुनिया के आकर्षण और वैभव से मदहोश करो। दूसरा, उनकी विशिष्ट प्रथाओं और मूल्यों को तब तक नष्ट करो जब तक कि वे संस्कृति में इतने समाहित न हो जाएं कि परमेश्वर की महिमा के लिए जीने की उनकी विशिष्ट पुकार खत्म हो जाए।
दानिय्येल को “राजा द्वारा खाए जाने वाले भोजन का दैनिक हिस्सा” दिया जाता था, परन्तु उसने “अपने मन में ठान लिया था कि वह राजा के भोजन से स्वयं को अपवित्र नहीं करेगा” (1:5, 8)। कुछ लोगों का सुझाव है इसका संबंध यहूदी खाद्य कानूनों से है, परन्तु पादरी कहते है उन्हें लगता है कि दानिय्येल ने समझ लिया था कि नबूकदनेस्सर उसे बेबीलोन में जीवन के अवसरों का लालच देना चाहता था। और उसने ठान लिया था कि ऐसा कभी नहीं होगा। वह बेबीलोन में रहेगा, सेवा करेगा और समृद्ध होगा, परन्तु वह कभी भी बेबीलोन को अपने ह्रदय पर कब्ज़ा नहीं करने देगा।
दानिय्येल को इसे अपने मन में स्थिर रखने का एक तरीका चाहिए था। इसलिए उसने अपने लिए एक अनुशासन स्थापित करने का निर्णय लिया। उसने शहर के शीर्ष भोजनालय में प्रतिदिन जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और इसके बजाय दोपहर के भोजन में भूरे रंग के थैले वाली सब्जियां खाईं। उसने ऐसा किसी बाहरी कानून के कारण नहीं, बल्कि आंतरिक इच्छा के कारण किया। यह एक स्वैच्छिक अनुशासन था, जिसे उसने अपनी विशिष्ट बुलाहट की याद दिलाने के लिए बनाया था।
क्या आप इस बारे में यथार्थवादी हैं कि दुनिया आप पर कितना दबाव डाल रही है? हर दिन आप जीवन के उस दृष्टिकोण से प्रभावित होते हैं जो आत्म-केंद्रित है और जिसमें परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं है। आपको प्रतिरोध के लिए एक रणनीति की आवश्यकता है।
ना कहने की क्षमता विकसित करना
दानिय्येल की तरह, हमें अधार्मिकता को ना कहने की क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है ( तीतस 2:11-12), और इसकी शुरुआत छोटी चीजों से होती है।
कुछ ईसाई ऐसे कार्य करते हैं मानो जीवन के व्यावहारिक निर्णयों में केवल एक ही प्रश्न का उत्तर देना हो। हम पूछते हैं, “क्या यह सही है या गलत ? ” और जब तक यह गैरकानूनी या अनैतिक न हो, हम उत्सुकता से आनंद लेने की अपनी स्वतंत्रता की पुष्टि करते हैं। परन्तु हमारी स्वतंत्रता के क्षेत्र में आने वाली चीज़ों के बारे में पूछने के लिए एक और सवाल है: “क्या यह समझदारी है?”
आपको कौन सा मनोरंजन चुनना चाहिए? आपको किन दावतों में जाना चाहिए? आपको किस प्रकार के लोगों के साथ उठना-बैठना चाहिए? आपको अपना पैसा किस पर खर्च करना चाहिए? दानिय्येल का उदाहरण हमें याद दिलाता है कि जब भी हम ये निर्णय ले, तो हमें दुनिया के मूल्यों और जीवनशैली में शामिल होने की दीर्घकालिक क्षमता पर विचार करने की आवश्यकता है।
दानिय्येल को विद्यालय में जो सिखाया गया था वह उसे बदल नहीं सकता था, परन्तु वह अपने जीवन में एक ऐसी जगह बना सकता था जो उसे प्रतिदिन याद दिलाता रहे कि वह परमेश्वर का सेवक है।
वफादार और सफल
परमेश्वर ने दानिय्येल और उसके दोस्तों को उनकी पढ़ाई में बड़ी सफलता प्रदान करी । परमेश्वर ने “उन्हें सब शास्त्रों और सब प्रकार की विद्याओं में बुद्धिमानी और प्रवीणता दी” (दानिय्येल 1:17)।
वफादारी और सफलता को एक दूसरे का विकल्प होना जरूरी नहीं है; वे स्वाभाविक भागीदार हैं। दानिय्येल छोटी चीजों में वफादार साबित हुआ, और परमेश्वर ने बड़ी चीजों में उस पर भरोसा किया । उसे अपने समय की सबसे शक्तिशाली सरकार में एक प्रमुख पद पर नियुक्त किया गया।
यह कभी न सोचें कि मसीह के प्रति वफादारी का अर्थ छोटी-छोटी चीज़ों के लिए समझौता करना है। दानिय्येल ने साबित किया कि उस पर भरोसा किया जा सकता है। वह परमेश्वर के प्रति वफादार था और परमेश्वर ने उसके लिए अवसर का द्वार खोल दिया । वह बेबीलोन के राजा का द्वितीय – प्रमुख बन गया, और उसे इतना प्रभाव दिया गया जितना उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
दानिय्येल की तरह, जब यीशु की परीक्षा हुई तो उन्होंने भी संसार के मोहक प्रलोभनों का सामना किया, और क्रूस पर उन्होंने संसार के खुले विद्रोह का सामना किया। उन्होंने दोनों पर विजय प्राप्त की और अपने शिष्यों से यह कहने में सक्षम हुए, “ढाढ़स बाँधो; मैं ने संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33)।
दानिय्येल ने स्वैच्छिक संयम का पालन करके एक समृद्ध और अधर्मी संस्कृति में एक ईश्वरीय और सफल जीवन व्यतीत किया। परमेश्वर ने हमें तपस्या के जीवन के लिए नहीं बुलाया हैं, परन्तु अनुशासनहीन लालच, भक्ति को नष्ट कर देता है।
धन, सत्ता और सुख का आकर्षण प्रबल होता है और यह आसानी से आपके हृदय पर कब्ज़ा कर सकता है।
आपको परमेश्वर के प्रति ऐसे प्रेम की आवश्यकता है जो अधिक मजबूत हो। जैसे-जैसे मसीह के लिए प्रेम आपके हृदय में भरता है, यह तेजी से उन कम प्रेमों को बाहर निकालता जाएगा जो अन्यथा आपको बंदी बना लेती है।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. व्यक्तिगत तौर पर आप पर संस्कृति का दबाव सबसे ज़्यादा कहाँ है? इसका आप पर क्या असर हो रहा है? विशिष्टताओं के बारे में सोचें
2. पिछले महीने आपके द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में सोचें। क्या आपने बस इतना पूछा “क्या यह सही है या यह गलत है?” क्या यह पूछने से मदद मिलती कि “क्या यह समझदारी है?”
3. आप जानबूझकर अपने आस-पास की दुनिया के दबावों का विरोध कैसे कर रहे हैं? आप कहाँ से शुरू कर सकते हैं?
4.क्या वफ़ादारी और सफलता विकल्प की तरह प्रतीत होते हैं? या क्या आपने उन्हें स्वाभाविक भागीदार माना है ? क्यों या क्यों नहीं?
5. आने वाले जीवन की तैयारी के लिए आप पृथ्वी पर मौजूद समय का सर्वोत्तम उपयोग कैसे कर सकते हैं?