मरकुस 4: 35 – 5: 20
मरकुस 4
35 उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “आओ, हम पार चलें।”
36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं।
37 तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी।
38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं?”
39 तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया।
40 और उनसे कहा, “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (भज. 107:29)
41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?”
मरकुस 5
1 वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुँचे,
2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी, कब्रों से निकलकर उसे मिला।
3 वह कब्रों में रहा करता था और कोई उसे जंजीरों से भी न बाँध सकता था,
4 क्योंकि वह बार-बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, पर उसने जंजीरों को तोड़ दिया, और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
7 और ऊँचे शब्द से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि मुझे पीड़ा न दे।” (मत्ती 8:29, 1 राजा. 17:18)
8 क्योंकि उसने उससे कहा था, “हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।”
9 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने उससे कहा, “मेरा नाम सेना है*; क्योंकि हम बहुत हैं।”
10 और उसने उससे बहुत विनती की, “हमें इस देश से बाहर न भेज।”
11 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।
12 और उन्होंने उससे विनती करके कहा, “हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उनके भीतर जाएँ।”
13 अतः उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर घुस गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाड़े पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
14 और उनके चरवाहों ने भागकर नगर और गाँवों में समाचार सुनाया, और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए।
15 यीशु के पास आकर, वे उसको जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थी, कपड़े पहने और सचेत बैठे देखकर, डर गए।
16 और देखनेवालों ने उसका जिसमें दुष्टात्माएँ थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उनको कह सुनाया।
17 और वे उससे विनती कर के कहने लगे, कि हमारी सीमा से चला जा।
18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिसमें पहले दुष्टात्माएँ थीं, उससे विनती करने लगा, “मुझे अपने साथ रहने दे।”
19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उससे कहा, “अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।”
20 वह जाकर दिकापुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।
यीशु की परीक्षा के बाद मरकुस हमें बताते हैं कि वें गलील में आए, और परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते हुए कहा, “समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो” ( मरकुस 1:15)। राज्य का मतलब है कि एक राजा है, और सुसमाचार यह है कि यह राजा आ गया है। इस पाठ में हम चार कहानियों को देखेंगे जो यीशु को सर्वश्रेष्ठ राजा के रूप में उजागर करती हैं और दिखाती हैं कि यह आज हमारे लिए सुसमाचार क्यों है।
पादरी कहते हैं की जब वे पाँच साल के थे, तो उनके पिता उन्हें स्कॉटलैंड की राजधानी, एडिनबर्ग के बाहर एक कबाड़खाने में ले गए। वह स्थान रद्दी, टूटी-फूटी कारों और ट्रकों से भरा हुआ था, और यह एक उज्जवल कल्पना करने वाले बच्चे के खेलने के लिए एक अद्भुत जगह थी।
उनके पिताजी अपनी कार के लिए आवश्यक गाड़ी के पुर्जे लेने के लिए वहाँ जाते थे । प्रणाली सरल थी: आप गाड़ियों से उन पुर्जों को हटा सकते थे जिनकी आपको आवश्यकता हो, और फिर बाहर निकलते समय गेट पर उनके लिए भुगतान कर सकते थे। समस्या यह थी कि कुछ लोगों की आदत थी कि वे पुर्जों को बाड़े की परिधि रेखा के बाहर फेक कर, बिना भुगतान किए गेट से निकल कर बाड़े के बाहर ज़मीन से फेका हुआ सामान उठा लेते थे।
इसलिए मालिकों ने परिधि के अंदर “जाना मना है” क्षेत्र को साफ कर दिया और रखवाली करने वाले कुत्तों को रेलिंग से बांध दिया। जब तक आप बाड़े के करीब नहीं जाए, तब तक आप पूरी तरह सुरक्षित थे।
एक दिन जब पादरी जी के पिता एक क्षतिग्रस्त गाड़ी पर काम कर रहे थे, तो पादरी जी को एक ट्रक मिला और वे उसके ऊपर चढ़ गए। वे ट्रक चलाने की एक काल्पनिक दुनिया में खोये हुए थे, तभी अचानक एक कुत्ता अपनी जंजीर से मुक्त होकर उनकी ओर लपकता हुआ आया।
पादरी कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि वे अपने जीवन में कभी भी इससे अधिक भयभीत हुए हों। वे ऐसे चिल्लाए जैसे कोई छोटा बच्चा चिल्लाता। उनके पिता दौड़े, उन्होंने एक छड़ी उठाई और काफी संघर्ष के बाद उन्होंने कुत्ते पर काबू पा लिया। उनके पिता ने कुत्ते को वश में करके उन्हें बचाया। यदि वे कुत्ते को वश में नहीं कर पाते, तो वे अपने बेटे को नहीं बचा पाते।
मसीह हमें हमारे शत्रुओं से बचाने में सक्षम है क्योंकि वे सर्वश्रेष्ठ हैं और उन्हें वश में करने में सक्षम है। यह सत्य है कि वे प्रभु हैं जो उन्हें हमारे उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करने के योग्य बनाता है। इसीलिए पवित्र शास्त्र कहता है, “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा” (रोमियों 10:13)।
तो वे कौन-कौन से शत्रु हैं जिनसे हमें बचाव की आवश्यकता है?
मानव अंधकार के आयाम
हमारी दुनिया उन चीज़ों से भरी हुई है जिन्हें हम कभी-कभी “प्राकृतिक आपदाएं” कहते हैं: भूकंप, मिट्टी का खिसकना, ज्वालामुखी, तूफान, आग और बाढ़।
हम मानवीय बुराईयों से भी त्रस्त हैं – विद्यालय में गोलीबारी, सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कृत्य, मानव तस्करी – यह सूची लगातार बढ़ती जा रही है। हर बार जब कोई दूसरा जघन्य अपराध होता है, तो हम पूछते हैं, “हम इसे कैसे रोक सकते थे, और हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह दोबारा कभी न हो?”
फिर चिकित्सा विज्ञान के सभी चमत्कारों के बावजूद, जिसके लिए हम अत्यंत आभारी हैं, हम आज भी कैंसर, स्ट्रोक और हृदय रोग की हानि झेल रहे हैं। जो हमें उस ओर ले आता है जिसे बाइबल हमारे अंतिम शत्रु — मृत्यु —के रूप में वर्णित करती है । जो कोई भी किसी प्रियजन के साथ इसके निकट रहा है वह जानता है यह कितना भयानक शत्रु है।
हमारी खबरे अंधकार के इन चार आयामों पर हावी हैं: प्राकृतिक आपदाएँ, मानवीय बुराई, बीमारी और मृत्यु | इस जीवन की सभी खुशियों के लिए, हम खुद से पूछते हैं, “हमें कौन बचाएगा? ऐसा अंधकार लाने वाली विनाशकारी शक्तियों को वश में करने का अधिकार किसके पास है?”
प्राकृतिक आपदाओं के ऊपर प्रभु!
मरकुस ने चार कहानियाँ दर्ज की हैं जो अंधकार के सभी आयामों पर यीशु की सर्वश्रेष्ठता को दर्शाती हैं। प्रत्येक कहानी हमें दिखाती है कि यीशु प्रभु हैं, और इस कारण से हम उद्धारकर्ता के रूप में उन पर भरोसा कर सकते हैं।
यह सब तब शुरू हुआ जब एक शाम शिष्य नाव में गलील सागर पार कर रहे थे और उन्होंने खुद को तूफान में फंसा हुआ पाया। यीशु कभी तूफान – मुक्त जीवन का वादा नहीं करते: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है” (यूहन्ना 16:33)। “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा” (प्रेरितों 14:22)।
जब मुसीबत आई, तो शिष्यों ने मान लिया कि यीशु को उनकी परवाह नहीं है: “हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं हम नष्ट हुए जाते हैं?” (मरकुस 4:38) परन्तु यीशु ने “आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, “शान्त रह, थम जा!” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया” (4:39)।
मानव आत्मा का तत्वों पर अधिकार नहीं है। बारिश, अंधड़, ज्वालामुखी या सुनामी पर हमारा वश नहीं है। परन्तु जब यीशु बोले, तो उन्होंने तूफ़ान को शांत कर दिया।
राक्षसों के ऊपर प्रभु
जब यीशु और उनके शिष्य झील के दूसरी ओर पहुँचे, तो तुरन्त उनका सामना एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो पागल हो गया था। वह कब्रों के बीच रहता था, और रात-दिन चिल्लाता और अपने आप को पत्थरों से काटता था (5:5)।
यह व्यक्ति जनता का सबसे बड़ा दुश्मन था, और जब स्थानीय अधिकारियों ने उसे जेल में डाल दिया, पर उसने “साँकलों को तोड़ दिया और बेड़ियों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था” (5:4)। इसलिए पूरा समुदाय भय में रहता था। हर रात वे इस व्यक्ति को पहाड़ियों पर चिल्लाते हुए सुनते थे, और वे उसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर पाते थे।
पवित्र शास्त्र से यह स्पष्ट है कि हिंसा के इन बड़े प्रकोपों के पीछे दुष्ट आत्माएँ ( या राक्षस ) थे (5:8, 13 ) । ऐसा हर हिंसक या आत्म-विनाशकारी व्यक्ति के साथ नहीं होता, परन्तु इस व्यक्ति के साथ ऐसा ही था। यीशु ने शैतान को एक चोर के रूप में वर्णित किया जो “चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है” (यूहन्ना 10:10), और जहाँ चोरी, हत्या और नष्ट करना सबसे अधिक प्रचलित है, वहाँ उसकी गतिविधि सबसे स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
जब यीशु इस समुदाय में आए, तो उन्होंने दुष्ट आत्माओं को उस व्यक्ति को छोड़कर सूअरों के झुंड में प्रवेश करने की आज्ञा दी। दुष्ट आत्माओं को यीशु की आज्ञा माननी पड़ी, और जब उन्होंने उस व्यक्ति को छोड़ दिया, तो वह पूरी तरह से बदल गया था। जैसे ही नगर के लोगों ने सुना, वे यह देखने के लिए बाहर आए कि क्या हुआ था, और उन्होंने उस व्यक्ति को पाया जिसमें दुष्टात्माएं थीं, “वह कपड़े पहने और सचेत बैठा था” (मरकुस 5:15)।
रोग के ऊपर प्रभु!
जब यीशु झील के दूसरी ओर लौटे, तो एक बड़ी भीड़ उनकी प्रतीक्षा कर रही थी । उनमें से एक महिला थी “जिसको बारह वर्षे से लहू बहने का रोग था” (5:25)। उसने विभिन्न चिकित्सको से परामर्श करने में अपना सब कुछ खर्च कर दिया था, परन्तु उनके प्रयासों के बावजूद, उसकी हालत बेहतर नहीं होती।
इस महिला को लगा कि यदि वह सिर्फ यीशु के पास पहुँच जाए तो वह चंगी हो जाएगी। जब वह यीशु को छूने में सफल हुई, तो उसे तुरन्त अपने शरीर में बदलाव का एहसास हुआ: “लहू बहना बन्द हो गया, और उसने अपनी देह में जान लिया कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ” (5:29)।
देर-सबेर हर व्यक्ति उस स्थान पर पहुँच जाता है जहाँ चिकित्सक और कुछ नहीं कर सकते। और यही वह स्थिति थी जिसमें यह महिला थी । यीशु बीमारी के ऊपर प्रभु हैं।
मृत्यु के ऊपर प्रभु
याईर नामक आराधनालय के सरदारों में से एक यीशु के पास आया, और उनसे बहुत विनती की, “मेरी छोटी बेटी मरने पर है : तू आकर उस पर हाथ रख कि वह चंगी होकर जीवित रहे” (5:23)। यीशु उसके साथ गए, परन्तु असाध्य रोग से पीड़ित स्त्री की सेवा करने में देरी हो गई।
जब वे उससे बात कर रहे थे, तो याईर के घर से कुछ लोग यह दुखद समाचार लेकर आये कि उसकी बेटी मर गयी है। उन्होंने कहा “अब गुरु को क्यों दुःख देता है?” ( 5:35)। आप उनकी बात समझिए : जब तक लड़की जीवित थी तब तक यीशु द्वारा उसै ठीक करने की कुछ संभावना थी, परन्तु जब वह मर गई तो सारी आशा खत्म हो गई।
परन्तु यीशु ने याईर यार से कहा, “मत डर; केवल विश्वास रख” ( 5:36)।
जब यीशु याईर के घर आये, तो विलाप पहले से ही चल रहा था। उन्होंने शोक मनाने वालों को घर से बाहर भेज दिया, केवल लड़की के पिता और माँ, पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ रह गए। यीशु ने लड़की का हाथ पकड़ा और कहा, “”तलीता कूमी!” जिसका अर्थ है, “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ” ( 5:41 ) । कमरे में मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए, “लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी” (5:42)।
जिसने भी किसी प्रियजन को मृत्यु के द्वारा खोया है, उसके लिए इस कहानी का प्रतिरूप सुंदर और गहरा है। याईर की बेटी बीमार थी। यीशु के आने में देरी हुई। देरी के दौरान लड़की की मृत्यु हो गई। परन्तु जब यीशु आये, तो वह मृतकों में से जी उठी।
यीशु हमें पूर्ण आशीष की एक झलक दे रहे हैं जिसका पता हमें तब चलेगा जब उनका राज्य आएगा। इस संसार में मृत्यु होगी और विलंब होगा । पुनरुत्थान तब होगा जब यीशु मसीह शक्ति और महिमा में लौटेंगे।
वे ऐसा क्यों नहीं करते?
यीशु मानव अंधकार के सभी आयामों पर सर्वश्रेष्ठ है। वे विपत्ति, राक्षसों, बीमारी और यहाँ तक कि मृत्यु को भी वश में करने में सक्षम हैं। इन शत्रुओं के ऊपर परमेश्वर के रूप में, वे हमें उनकी विनाशकारी शक्ति से बचाने में सक्षम है।
तो वे ऐसा क्यों नहीं करते?
मरकुस हमें उत्तर देते हैं। जब यीशु ने दुष्टात्मा से ग्रस्त व्यक्ति को बचाया, “तब वे उससे विनती कर के कहने लगे कि हमारी सीमा से चला जा ” ( 5:17)। आप सोच रहे होंगे कि उन्होंने कहा होगा, “आपने इस समुदाय की हमारी सबसे बड़ी सामाजिक समस्या का समाधान कर दिया है। क्या आप कृपया रुक सकते हैं, क्योंकि हमारी अन्य समस्याएँ भी हैं? और यदि आप इसे हल कर सकते हैं, तो आप उन्हें भी हल कर सकते हैं।” परन्तु वह उनकी प्रतिक्रिया नहीं थी। उन्होंने यीशु से चले जाने को कहा।
इसलिए यीशु चले गए।
और जो कुत्ते को वश में कर सकता है अगर वह कबाड़खाना छोड़ दे तो लड़के का क्या होगा?
शासन करना और प्रतीक्षा करना
हम मसीह को अस्वीकार करने वाली दुनिया में रहते हैं: “वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया”। (यूहन्ना 1:11)
यीशु की अस्वीकृति उन्हें क्रूस पर ले गई, जो हमारी दुनिया का परमेश्वर के प्रति अपमान की अंतिम अभिव्यक्ति थी। हमने महिमामय प्रभु को अस्वीकार कर दिया। हमने उनका मज़ाक उड़ाया, उन पर थूका और उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। जो दुनिया यीशु को अस्वीकार करती है वह एक ऐसी दुनिया है जो आपदाओं, राक्षसों, बीमारी और मृत्यु अभिशाप के तहत दर्द सहती रहती है ।
परन्तु यह बाइबल की कहानी का अंत नहीं है। तीसरे दिन, यीशु मृतकों में से जी उठे । जब वे स्वर्ग पर चढ़ गए, तो पिता ने उनसे कहा, “तू मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे की पीढ़ी न कर दूँ” (इब्रानियों 1:13)।
यीशु शासन कर रहे हैं, परन्तु वे प्रतीक्षा भी कर रहे हैं। शासन करना और प्रतीक्षा करना एक दूसरे के खिलाफ नहीं हैं। “जब तक वह अपने बैरियों को अपने पाँवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है। सबसे अन्तिम बैरी जो नष्ट किया जाएगा, वह मृत्यु है” (1 कुरिन्थियों 15:25-26)।
इसलिए हम एक खतरनाक दुनिया में रह रहे हैं जो आपदाओं, राक्षसों, बीमारी और मृत्यु के अभिशाप से ग्रस्त है। परन्तु जो यीशु मसीह के राज्य के हैं वे उस दिन की प्रतीक्षा करते हैं जब वे इन सभी शत्रुओं को अपने अधीन कर लेंगे। हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रभु के धन्य शासन के तहत, अब कोई आपदाएँ नहीं होंगी, कोई राक्षस नहीं होंगे, कोई बीमारियाँ नहीं होंगी, और कोई मृत्यु नहीं होगी।
पादरी कहते हैं कि कभी-कभी वे लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि उन्होंने यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया परन्तु उन्हें प्रभु नहीं बनाया । धारणा यह है कि हम किसी तरह उद्धारकर्ता को प्रभु से अलग कर सकते हैं – कि हम पश्चाताप के बिना विश्वास, आदेशों के बिना आशीर्वाद और पवित्रता की खोज के बिना पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते हैं।
यह सुसमाचार की एक बुनियादी ग़लतफ़हमी है। एक ही समय में हम यीशु के आदेशों का विरोध करते हुए वह कभी नहीं प्राप्त कर सकते जो वे प्रदान करते हैं। परमेश्वर हमें मसीह के आधिपत्य के प्रति अपना प्रतिरोध छोड़ने और उनका उद्धार प्राप्त करने के लिए बुलाते हैं: “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा” | (रोमियों 10:13)। अपने आप को मसीह को प्रभु के रूप में समर्पित करें और आप पाएंगे कि वें एक शक्तिशाली उद्धारकर्ता है।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. आप इस समय चार शत्रुओं (आपदा, राक्षस, बीमारी, मृत्यु) में से किसको लेकर सबसे अधिक चिंतित हैं? क्यों?
2. आपको यह जान कर कैसे मदद मिलती है कि यीशु इस शत्रु के ऊपर प्रभु है?
3. यीशु को आपका उद्धारकर्ता बनने के लिए क्या योग्य बनाता है?
4. आपके अपने शब्दों में बताएं, यीशु अब हमारे सभी शत्रुओं को क्यों नहीं हरा देते ?
5. आपकी इस प्रतिज्ञा पर क्या प्रतिक्रिया है कि “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा” (रोमियों 10:13)?