लूका 23: 26 – 49
26 जब वे उसे लिए जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गाँव से आ रहा था, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे-पीछे ले चले।
27 और लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सारी स्त्रियाँ भी, जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं।
28 यीशु ने उनकी ओर फिरकर कहा, “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ; परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ।
29 क्योंकि वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बाँझ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’
30 उस समय ‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’
31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?”
32 वे और दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ मार डालने को ले चले।
33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी एक को दाहिनी और दूसरे को बाईं और क्रूसों पर चढ़ाया।
34 तब यीशु ने कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर*, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं?” और उन्होंने चिट्ठियाँ डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। (1 पत. 3:9, प्रका. 7:60, यशा. 53:12, भज. 22:18)
35 लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी उपहास कर-करके कहते थे, “इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।” (भज. 22:7)
36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका उपहास करके कहते थे। (भज. 69:21)
37 “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!”
38 और उसके ऊपर एक दोष पत्र भी लगा था : “यह यहूदियों का राजा है।”
39 जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!”
40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, “क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है,
41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।”
42 तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।”
43 उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक* में होगा।”
44 और लगभग दोपहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधियारा छाया रहा,
45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, (आमो. 8:9, इब्रा. 10:19)
46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।
47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा, “निश्चय यह मनुष्य धर्मी था।”
48 और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई।
49 और उसके सब जान-पहचान, और जो स्त्रियाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं। (भज. 38:11, भज. 88:8)
यदि आप वहाँ होते जहाँ यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था तो आपने यीशु के हाथों और पैरों में कीलें ठोकने की आवाज सुनी होती। आपने उनके दोनों ओर दो अपराधियों को क्रूस पर चढ़ा हुआ देखा होता। और आपने उनके सिर पर दोष–पत्र देखा होता जिसमें लिखा था: “यह यहूदियों का राजा है” (लूका 23:38)। यीशु छह घंटे तक सूली पर लटके रहे और उस दौरान जो कुछ हुआ वह हमें बाइबिल की कहानी के मूल में ले जाता है।
जिस दिन यीशु की मृत्यु हुई वह मानव इतिहास का सबसे काला दिन था, और फिर भी यही वह दिन था जब परमेश्वर की मुक्ति की योजना पूरी हुई थी। हमारा पाप अपनी पूर्ण भयानक सीमा तक पहुँच गया था और क्रूस इसकी सबसे भयंकर अभिव्यक्ति थी। परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करके, अब हम परमेश्वर के पुत्र को क्रूस पर चढ़ा रहे थे।
यदि मानव इतिहास में कभी कोई ऐसा क्षण आया जब परमेश्वर का प्रलय गिरना था, तो वह यही था। परन्तु यीशु ने रोते हुए कहा, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं” (23:34)।
मसीह जानते थे कि उस दिन परमेश्वर की प्रलय आएगी, परन्तु वे कह रहे थे, “इसे उन पर मत पड़ने दो। इसे मुझ पर पड़ने दो। और अकेले मुझ पर। उनके पापों के न्याय का कहर मुझ पर गिरने दीजिए।” जैसे परमेश्वर ने आदम को तब बचाया था जब श्राप ज़मीन पर गिर गया था, उसी प्रकार अब परमेश्वर ने उन लोगों को भी बचा लिया जो क्रूस के चारों ओर खड़े थे, क्योंकि उनके पापों और हमारे पापों के लिए उनका न्याय यीशु पर गिर पड़ा था।
यह सुसमाचार का सार है। यीशु हमारे पापों के लिए परमेश्वर के न्याय के अधीन खड़े हुए। उन्होंने पिता परमेश्वर से सजा को हमसे दूर करने का आह्वान किया और उन्होंने इसे अपने में समाहित कर लिया। इसी प्रकार क्षमा की प्राप्ति हुयी।
जब यीशु ने प्रार्थना की, “पिता, उन्हें माफ कर दें,” उनकी प्रार्थना में वे पुरोहित शामिल थे जिन्होंने उनकी निंदा की, वे भीड़ जिन्होंने उनका मजाक उड़ाया, और वे सैनिक जिन्होंने उन्हें सूली पर चढ़ाया। इसमें वे शिष्य भी शामिल थे जिन्होंने उन्हें छोड़ दिया था और पुराने नियम के विश्वासी भी शामिल थे जो उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
यीशु की प्रार्थना ने उनके पास आने वाले हर व्यक्ति के पाप को ढक दिया। और यदि उनकी प्रार्थना उन लोगों के पापों को ढक सकती है जिन्होंने उन्हें सूली पर चढ़ाया था, तो यह आपके सभी पापों को ढकने के लिए भी काफी है।
स्वर्ग खुल गया
यीशु से कुछ फीट की दूरी पर एक ऐसा व्यक्ति था जिसने अपने जीवन को एक दुखद बर्बादी में बिता दिया था। अपराध का जीवन जीने के बाद, उसे मानवीय न्याय का सामना करना पड़ा और अब वह इसकी कीमत चुका रहा था। जल्द ही मृत्यु उसकी पीड़ा से राहत देगी, परन्तु फिर वह परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करेगा जहाँ उसे दिव्य न्याय का सामना करना पड़ेगा। उसकी स्थिति निराशाजनक लग रही थी।
यह व्यक्ति यीशु के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था। कुछ समय पहले, वह यीशु के दावों का उपहास करने में दूसरे अपराधी के साथ शामिल हो गया था। परन्तु जैसे मृत्यु निकट आई, कुछ बदल गया। ऐसा प्रतीत हुआ कि उसे इस बात की एक नई जागरूकता हुयी कि एक पापी के लिए परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करने का क्या अर्थ होगा। यीशु का उपहास करना अब उचित नहीं लग रहा था।
जब यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, तो उन्होंने प्रार्थना करी कि जिन लोगों ने उन्हें सूली पर चढ़ाया, उन्हें माफ कर दिया जाए। शायद, उस व्यक्ति ने सोचा होगा कि, यदि यीशु इन सैनिकों को माफ कर सकते हैं, तो वे मुझे भी माफ कर सकते हैं। इसलिए वह यीशु की ओर मुड़ा और कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना” (23:42)। और यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा” (23:43)।
स्वर्ग! इस व्यक्ति का जीवन विनाशकारी चुनावों की एक श्रृंखला रहा था, परन्तु यीशु ने उसे मृत्यु के माध्यम से, कभी न खत्म होने वाले आनंद के जीवन में तत्काल प्रवेश का वादा किया था। दिन ख़त्म होने से पहले, यीशु उसे परमेश्वर की उपस्थिति में ले जायेंगे। अचानक इस व्यक्ति ने, जिसके लिए दुनिया में कुछ भी नहीं था, पाया कि यीशु के कारण वह उस सबसे बड़े आनंद में प्रवेश करने वाला था जिसे एक इंसान कभी नहीं जान सकता।
इस व्यक्ति की कहानी इस बात का आश्चर्यजनक उदाहरण है कि यीशु मसीह किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए क्या करने में सक्षम है जो विश्वास और पश्चाताप के साथ उनकी ओर मुड़ता है, चाहे जीवन में कितनी भी देरी क्यों न हो। स्वर्ग मसीह का घर है। और इसकी चाबियाँ उनके पास हैं, और वें इसे उन सभी के लिए खोलते हैं जो पश्चाताप और विश्वास के साथ उनकी ओर आते हैं, चाहे उन्होंने कुछ भी किया हो।
जो यीशु ने सहा
यीशु को सुबह नौ बजे क्रूस पर चढ़ाया गया था, और अपनी पीड़ा के पहले तीन घंटों के दौरान, उन्होंने अपने दुश्मनों के लिए प्रार्थना की और एक अपराधी की प्रार्थना का उत्तर दिया जो विश्वास में उनके पास पहुँचा था। फिर, दोपहर के समय, “सारे देश में अन्धियारा छाया रहा” (23:44), और अगले तीन घंटों के लिए मसीह ने अपने कष्टों के मुख्य में प्रवेश किया।
अंधेरे में जो हुआ वह हमारी समझ से परे है, परन्तु कुछ चीजें हैं जो हम जानते हैं क्योंकि परमेश्वर ने हमें बताया है।
जब यीशु क्रूस पर मरे तो उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया। “वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया” (1 पतरस 2:24)। “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया” (2 कुरिन्थियों 5:21)। “यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया” (यशायाह 53:6)। यीशु ने आपके पापों को अपनी मृत्यु के द्वारा ले लिया, ताकि आप उन्हें अपनी मृत्यु के द्वारा न उठाएँ।
हमारे पापों को सहन करने का अर्थ था कि यीशु ने उस दंड को सहन किया जो हमें मिलना था: “हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी” (यशायाह 53:5)। यीशु ने क्रूस पर वह सब सहन किया जो नरक है। वें सचेतन पीड़ा में थें, घोर अंधकार में थे, वे राक्षसी शक्तियों से घिरे हुए थे। उन्होंने पाप का अपराध झेला, उन्होंने दैवीय क्रोध को झेला, और उन्होंने पिता के प्यार के आनंद से अलग होकर, अकेले ही यह सब सहन किया।
लोग अक्सर इस बारे में बात करते हैं कि नर्क वास्तविक है या नहीं। नर्क उतना ही वास्तविक है जितना कि क्रूस। मसीह ने अंधेरे में नरक के सभी आयामों में प्रवेश किया, और उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि आप कभी ना जान सकें कि नरक कैसा होता है।
अपनी पीड़ा की गहराई में, यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46) कोई भी शब्द इस पीड़ा की गहराई को व्यक्त नहीं कर सकता। पिता परमेश्वर और पुत्र परमेश्वर ने हमेशा एक ही जीवन, एक प्रेम, एक उद्देश्य और एक इच्छा साझा की है। परन्तु जब परमेश्वर के पुत्र हमारे पापों को ढ़ोने वाले बन गए, तो पिता के प्रेम का आनंद उनकी पहुँच से परे हो गया था। वे पूरी तरह से अकेले थे, स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटके हुए थे – और दोनों ने ही उन्हें अस्वीकार कर दिया था।
यीशु की मृत्यु कैसे हुई
तीन घंटे के बाद, यीशु पर न्याय सुनाया गया। न्याय संतुष्ट हुआ, और यीशु विजयी होकर चिल्लाये, “पूरा हुआ” (यूहन्ना 19:30) हमारे पापों के लिए परमेश्वर का धर्मी न्याय यीशु पर गिरा। उन्होंने इसे आत्मसात किया। उन्होंने इसे बहा दिया। उन्होंने इसे ख़त्म कर दिया। यीशु पर विश्वास करने वाले सभी लोगों के लिए नरक स्वयं ही जल उठा।
हमारे पापों के लिए स्वयं को बलिदान के रूप में अर्पित करके क्षमा दिलाने और स्वर्ग खोलने के बाद, यीशु ने वह सब पूरा किया जो पिता ने उन्हें करने के लिए दिया था। युद्ध समाप्त हुआ और विजय हासिल हुई। अब बस यही रह गया था की यीशु अपना प्राण त्याग दे। यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ!” (लूका 23:46)
जब कोई मरता है तो उसकी ताकत कम हो जाती है और उसकी आवाज कमजोर हो जाती है। मृत्यु के समय कोई भी ऊंची आवाज में नहीं बोलता। परन्तु यीशु ने ऐसा किया।
यीशु मृत्यु से अभिभूत नहीं थे। उन्होंने कहा, “कोई उसे [मेरा जीवन] मुझ से छीनता नहीं, … मुझे उसके देने का भी अधिकार है, और उसे फिर ले लेने का भी अधिकार है” (यूहन्ना 10:18)। ईसा मसीह का जीवन लिया नहीं गया, दिया गया था। उन्होंने स्वयं को हमारे लिए दे दिया (गलातियों 2:20)।
बाइबल मृत्यु को एक अंधेरी घाटी के रूप में बताती है जिससे हम सभी को गुजरना पड़ता है। अँधेरी घाटियाँ डरावनी जगहें होती हैं, खासकर यदि दुश्मन वहाँ छिपे हों। परन्तु मसीह मृत्यु की घाटी से गुजरे और उन्होंने शत्रुओं का सफाया कर दिया। मृत्यु आज भी एक अंधेरी जगह है, परन्तु यह उन सभी के लिए एक सुरक्षित जगह है जो यीशु के हैं।
यदि आप मसीह में हैं, तो जब आपकी मृत्यु का क्षण आएगा, तो आप यीशु के साथ कह सकेंगे: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” और आप पिता के हाथों में सुरक्षित रहेंगे । मृत्यु बेहोशी ओर नहीं ले जाएगी न ही लंबे समय तक की तैयारी है। यदि आप मसीह में हैं, तो शरीर से दूर रहना प्रभु के साथ घर में रहना है (2 कुरिन्थियों 5:8)।
यीशु क्रूस पर क्यों मरे?
बहुत से लोग जीवन में इस भावना के साथ चलते हैं कि परमेश्वर उनके विरुद्ध है। परन्तु यहाँ आपको यह जानना आवश्यक है: यीशु दुनिया में इसलिए नहीं आये और क्रूस पर इसलिए नहीं मरे ताकि वे पिता को आपसे प्रेम करवा सके। वह जगत में आए और क्रूस पर मरे क्योंकि पिता आपसे प्रेम करते हैं।
आपके प्रति परमेश्वर के प्रेम को मापने का एक तरीका आपके जीवन की खुशियों और आशीषों को सूचीबद्ध करना होगा। इसलिए यदि आपका स्वास्थ्य अच्छा है, आप ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो आपसे प्रेम करते हैं, और आपके पास वह काम है जिसका आप आनंद लेते हैं, तो आप परमेश्वर के प्यार के संकेत के रूप में इन उपहारों का आनंद ले सकते हैं।
परन्तु यदि आप वह बढ़िया नौकरी खो दें तो क्या होगा? या यदि आपके परिवार में कोई बीमार हो जाए तो क्या होगा? या यदि कोई व्यक्ति जिससे आप प्रेम करते हैं वह आप में रुचि खो दे तो क्या होगा? तो फिर आप कैसे जानेंगे कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते है?
यदि आप अपने अनुभव से परमेश्वर के प्रेम को समझने की कोशिश करेंगे, तो आप हमेशा भ्रम में रहेंगे। जब आशीषें आएँगी, तो आपको लगेगा कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं। जब कठिनाई आएगी, तो आपको लगेगा कि वे अवश्य ही आपके विरुद्ध होंगे, और जब आपको इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होगी तब आप उनके प्रेम का एहसास खो देंगे!
इस पतित संसार में जीवन का आपका अनुभव हमेशा भ्रमित करने वाला रहेगा। इसलिए हमें दृष्टि से नहीं, विश्वास से चलना चाहिए। यदि आप परमेश्वर के प्रेम को इस संसार में अपने जीवन के अनुभव से मापते हैं, तो आप कभी भी इस निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएंगे कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं।
यहाँ बताया गया है कि आप कैसे निश्चित रूप से जान सकते हैं कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं: उन्होंने आपके लिए अपना पुत्र दे दिया। “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा” (रोमियों 5:8)। “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएँ” (1 यूहन्ना 4:9)।
समय की शुरुआत से ही परमेश्वर ने जो कुछ भी करने की योजना बनाई थी वह क्रूस पर पूरा हुआ। यीशु ने हमारे पापों को सहन किया, हमारे नरक को सहन किया, और पिता द्वारा त्यागे गए। अपनी पीड़ा के माध्यम से, उन्होंने हमारे लिए क्षमा खरीदी, हमें परमेश्वर से वापस मिलाया, और स्वर्ग में हमारा प्रवेश सुरक्षित किया।
यदि आप कभी भी स्वयं को आपके प्रति परमेश्वर के प्रेम पर संदेह करते हुए पाते हैं, तो क्रूस की ओर देखें: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16)।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. यदि आप उस दिन वहाँ होते, जिस दिन यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, तो आपने कौन सी चीज़ें देखी होतीं?
2. जब यीशु ने प्रार्थना की, “हे पिता, उन्हें क्षमा कर दे” तो उस प्रार्थना में कौन शामिल था?
3. क्या आपको लगता है कि यीशु किसी के लिए भी वही कर सकते हैं जो उन्होंने क्रूस पर चढ़े चोर के लिए किया था? क्यों या क्यों नहीं?
4. जब यीशु क्रूस पर थे तब अंधकार के तीन घंटों के दौरान क्या हो रहा था? हम इसके बारे में कैसे जानते हैं?
5. क्या आपको लगता है परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं? क्यों या क्यों नहीं?