यूहन्ना 14: 1 – 7
1 “तुम्हारा मन व्याकुल न हो*, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।
2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।
3 और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो।
4 और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।”
5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है; तो मार्ग कैसे जानें?”
6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ*; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।
7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।”
जब यीशु का स्वर्गारोहण हुआ, तो दो स्वर्गदूतों ने शिष्यों से कहा: “हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा” (प्रेरितों 1:11)। ईसाई लोग उस महान दिन का इंतजार कर रहे हैं जब ईसा मसीह दोबारा आएंगे। उस दिन प्रत्येक विश्वासी भाग लेगा। जो लोग मर चुके हैं वे उनके साथ आएंगे, और हम जो अब तक जीवित हैं, बादलों में परमेश्वर से मिलेंगे (1थिस्सलुनीकियों 4:14, 17)।
यीशु ने अपनी वापसी के बारे में बार-बार बात की थी, परन्तु मरने से पहले की रात से अधिक स्पष्ट रूप से कभी नहीं करी। यह एक रात्रिभोज था जिसमें सब कुछ गलत होता दिख रहा था। जैसे ही हम अंतिम भोज की कहानी को देखते हैं, हमें आज हमारे संघर्षों के लिए यीशु की वापसी के महत्व का पता चलता है।
शाम की शुरुआत में, यीशु ने यह कहकर अपने दोस्तों को आश्चर्यचकित कर दिया था कि मेज पर बैठा कोई उन्हें धोखा देगा। वे एक के बाद एक कहने लगे, “हे गुरु, क्या वह मैं हूँ?” (मत्ती 26:22) किसी ने नहीं कहा, “हे प्रभु, क्या यह यहूदा है?” जाहिर है, वह भरोसेमन्द और सम्मानीय था। आख़िरकार, उन्होंने यहूदा को पैसे का प्रभारी बनाया था, और आप किसी आदमी को अपना पैसा तब तक नहीं देते जब तक आप उस पर भरोसा नहीं करते।
यूहन्ना, जो यीशु के बगल में बैठा था, उसने पूछा कि वे किसके बारे में बात कर रहे हैं, और यीशु ने कहा, “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबाकर दूँगा वही है” (यूहन्ना 13:26)। तब उन्होंने यहूदा को रोटी दी।
यहूदा के पास पहले से ही यीशु को धोखा देने की योजना थी, परन्तु अब वह मन मे अंतिम निर्णय ले चुका था। यूहन्ना हमें बताते हैं कि “टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया” (13:27)। घटनाओं के क्रम पर ध्यान दें। शैतान ने उस दिमाग में प्रवेश किया जो उसके कार्य के लिए पूरी तरह से खुला था। फिर, यहूदा बाहर चला गया, और यूहन्ना कहता है, “यह रात थी” (13:30)।
अभी और भी बुरी ख़बरें आनी बाकी थीं। यीशु ने कहा, “हे बालको, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ” (13:33)। शिष्यों ने मसीह का अनुसरण करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया था। उन्होंने उन पर अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, और अब केवल तीन वर्षों के बाद ही, वे उनसे कह रहे थे कि वे केवल कुछ समय और उनके साथ रहेंगे।
यह बताया जाना कि जो व्यक्ति दुनिया में आपके लिए सबसे ज्यादा मायने रखता है, वह केवल कुछ समय के लिए ही आपके साथ रहेगा, यह सबसे कठिन अनुभवों में से एक है जिसे एक इंसान सहन कर सकता है, और अंतिम भोज में शिष्यों को इसी का सामना करना पड़ा।
पतरस यीशु से अलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकता था और उसने घोषणा करी कि वह उनके लिए अपना जीवन देने को भी तैयार है। परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच सच कहता हूँ कि मुर्ग़ बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा” (13:38)।
ऐसा कोई दिन नहीं था जब शिष्यों को इतनी बुरी ख़बरों से जूझना पड़ा हो। एक शाम में, उन्हें पता चला कि एक विश्वसनीय नेता उद्धारकर्ता को धोखा देगा, यीशु स्वयं उनसे छीन लिए जाएंगे, और उनका प्रमुख शिष्य उनके विश्वास से इनकार कर देगा।
जब आप विनाशकारी समाचार सुनते हैं
यीशु ने आगे जो कहा वह बिल्कुल आश्चर्यजनक लग रहा होगा: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो” (यूहन्ना 14:1)। जो कुछ अभी घटित हुआ था, उसके आलोक में यीशु संभवतः यह कैसे कह सकते थे?
एक गिरजा की बैठक की कल्पना करें जहाँ कलीसिया के कुछ कार्यों के लिए एकत्रित होती है। अध्यक्ष प्रार्थना के द्वारा बैठक की शुरुआत करते हैं और कहते हैं कि उनके पास तीन महत्वपूर्ण घोषणाएँ हैं।
“सबसे पहले, मुझे खेद के साथ घोषणा करना पढ़ रहा है कि हमारे वरिष्ठ पादरी कुछ ही दिनों में जा रहे हैं। दूसरा, आपको यह जानना होगा कि गिरजा के खजांची ने इस्तीफा दे दिया है, और इस समय पर हम निश्चित रूप से नहीं जानते हैं कि उन्होंने पैसों के साथ क्या किया है। तीसरा, हमारे अध्यक्ष ने विश्वास से इनकार कर दिया है और अब गिरजा से जुड़े रहना नहीं चाहते हैं।
कलीसिया विनाशकारी समाचार की इस तिहरी घोषणा से सदमे में है, परन्तु अध्यक्ष जारी रहते हैं। “मुझे पता है कि आपमें से कुछ के पास सवाल हो सकते हैं,” वे कहते हैं, “परन्तु पहली बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है की, अपने मन को परेशान मत होने दें!”
यदि यहूदा की तरह कोई आपके विश्वास को धोखा दे तो आप क्या करेंगे? आप क्या करेंगे जब कोई अगुवा जिसका उदाहरण आप देखते हैं, ठीक पतरस की तरह, उसके खुद के पैर डगमगाए हुए हों? और आप इस बात का कैसे सामना करेंगे जब जिस व्यक्ति के इर्द-गिर्द आपने अपना जीवन बसाया हुआ हो वह अब आपके साथ नहीं हो तो? इसका उत्तर यीशु के शब्दों में निहित है।
यीशु ने कमरे के चारों ओर देखा, उनकी भेदी आँखें अपने शिष्यों की आत्माओं में झाँक रही थीं। उन्होंने कहा, ”तुम्हारा मन व्याकुल न हो; परमेश्वर पर विश्वास रखो और मुझ पर भी विश्वास रखो” (14:1)।
यीशु उनसे विश्वास की अंधी छलांग लगाने के लिए नहीं कह रहे थे। वे कह रहे थे, “मैं अभी तुमसे यह चाहता हूँ कि परमेश्वर पर विश्वास रखो! मुझ में विश्वास रखो!” शिष्यों ने उनके चमत्कार देखे थे, उनके शब्द सुने थे और तीन साल तक उनके साथ चले थे। अब उन्हें यीशु के बारे में जो कुछ भी पता था उस पर ध्यान देना था। महान अंधकार के इस क्षण में, मसीह ने उन्हें उस शिक्षा पर भरोसा करने के लिए बुलाया जो उन्होंने उन्हें प्रकाश में सिखाया था।
अनेक कमरों वाला एक घर
फिर, यीशु उन्हें अपने ऊपर विश्वास करने के लिए बुलाकर, उनसे भविष्य के बारे में बात की: “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं” (14:2)। यह दृष्य पिता के घर में एक साथ रहने वाले एक बड़े परिवार का है।
यीशु द्वारा अपने पिता के घर में कई कमरों के बारे में बोलने में एक विशेष वयंग है। जब यीशु का जन्म हुआ तो बेथलहम में उनके लिए कोई कमरा नहीं था। सराय के मालिक के पास एक छोटा सा घर था और हर कमरे पर कब्जा कर लिया गया था। पादरी कहते हैं कि वे यह सोचे बिना नहीं रह सकते कि यीशु के चेहरे पर मुस्कान रही होगी जब वे अपने दोस्तों से कह रहे थे, वास्तव में, “अब चिंता मत करो; जब तुम मेरे घर आओगे, तो यह वैसा नहीं होगा जैसा तब था जब मैं तुम्हारे घर आया था! आपको यह बेथलहम की तरह भीड़भाड़ वाला नहीं लगेगा। मेरे पिता के घर में बहुत से कमरे हैं!”
यीशु ने उस शाम को फिर से घर के बारे में बात की, जब उन्होंने कहा, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे और उसके साथ वास करेंगे” (14:23)। वास्तव में यीशु ने कहा, “हम उनके साथ वास करेंगे।” यीशु हमें बता रहे हैं कि परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे साथ तब तक रहेंगे जब तक वे फिर से वापस नहीं आ जाते, और फिर हम उनके साथ वास करेंगे । परमेश्वर आपके साथ तब तक रहेंगे जब तक एक दिन आप उनके साथ नहीं चले जाते!
यीशु के शिष्यों के लिए उनके भविष्य का घर निश्चित है। यीशु की स्पष्टवादिता को सुनें: “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते तो मैं तुम से कह देता; क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ?” (यूहन्ना 14:2) यदि शिष्यों का भविष्य किसी भी संदेह में होता, तो यीशु ने ऐसा कहा होता। परन्तु स्वर्ग में उनका भविष्य सुनिश्चित था, और इस कारण से उन्हें परेशान नहीं होना पड़ा।
पिता के घर का रास्ता
पिता के घर का वर्णन करने के बाद, यीशु ने बताया कि उनके शिष्य वहाँ कैसे पहुंचेंगे: “मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ” (14:2)।
हमें यह कल्पना नहीं करनी चाहिए कि यीशु हमारे आगमन के लिए स्वर्ग को तैयार करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं। मसीह ने एक शब्द द्वारा शून्य से ब्रह्माण्ड की रचना की; वह एक ही आदेश में विश्वासियों के लिए स्वर्ग तैयार कर सकते हैं।
जब यीशु ने कहा कि वह “एक जगह तैयार करने” जा रहे हैं, तो उनका मतलब था कि उनके जाने के द्वारा से ही जगह तैयार हो जाएगी। अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के माध्यम से, मसीह ने उन सभी विश्वासियों के लिए पिता के घर की महिमा में प्रवेश करने का मार्ग खोल दिया। उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने जगह तैयार कर दी है और उन सभी के लिए एक नियुक्त जगह आरक्षित कर दी है जो विश्वास करेंगे। और इसी कारण से, यीशु कहते हैं, “तुम्हारे मन व्याकुल न हों।”
“मैं फिर आ जाऊँगा”
“यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो” (14:3)। यीशु कह रहे थे, “यदि मैं मृत्यु की पीड़ा से गुज़रूं और फिर तीसरे दिन जी उठ कर तुम्हारे लिए जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग पर चढ़ूं, तो मैं निश्चित रूप से तुम्हें वहाँ लाऊंगा।”
यदि आपको अपनी जीवन भर की बचत एक अमूल्य अंगूठी पर खर्च करनी पड़े, तो यह समझ से परे है कि, पैसे देकर खरीदारी करने के बाद, आप अंगूठी को वही पर छोड़ दें। कीमत चुकाने के बाद, अंगूठी आपकी क़ीमती संपत्ति बन जाएगी, और आप उसे घर ले आएंगे।
यही कारण से यीशु ने शिष्यों से कहा कि उन्हें परेशान नहीं होना है, बल्कि उन पर भरोसा करना है। उन्होंने यहूदा को जाते हुए देखा था, उन्होंने सुना था कि पतरस असफल हो जाएगा, और उन्हें बताया गया था कि यीशु को उनसे छीन लिया जाएगा। ऐसा लग रहा था कि उनकी दुनिया बिखर रही है, परन्तु ऐसा नहीं था। यीशु उनके लिए जगह तैयार करने जा रहे थे, और वे निश्चित थे कि वे उन्हें घर लेजायेंगे।
एक अधूरी परियोजना
स्वर्ग की गौरवशाली आशा शायद कोसों दूर लग सकती है, परन्तु यह वादा हमारे दैनिक जीवन की गड़बड़ी में हमें सहारा देने के लिए दिया गया है।
पादरी कहते हैं कि जब उन्होंने अपने गुसलखाने को दोबारा तैयार किया, तो नट-बोल्ड और पाइप बाहर दिख रहे थे, और वहाँ नयी बत्ती लगाने के लिए छत में एक छेद था। जगह कार्यात्मक थी, परन्तु कुछ भी वैसा नहीं था जैसा होना चाहिए था। जब पादरी की पत्नी ने वहाँ की स्थिति देखी, तो पादरी उनको याद दिलाया कि वे एक अधूरी परियोजना पर ध्यान दे रही थी और यह हमेशा ऐसा नहीं रहेगा। पादरी ने उनसे कहा, “तुम्हारा मन व्याकुल न हो।”
दुनिया को मुक्ति दिलाने की परमेश्वर की योजना प्रक्रिया में है, परन्तु यह अभी तक पूरी नहीं हुई है, और इस दुनिया में हमारा जीवन अक्सर अस्त-व्यस्त दिखता है। परन्तु यीशु कहते हैं, “तुम्हारा मन व्याकुल न हो।” याद रखें कि आप एक अधूरी परियोजना को देख रहे हैं। जो अभी आप देख रहे हैं वह वैसा नहीं है जैसा होगा।
जब आप आईने में देखते हैं, तो आप एक अधूरी परियोजना को देख रहे होते हैं। आपके अंदर नया जीवन पहले ही शुरू हो चुका है, परन्तु आप अभी भी शरीर के खिंचाव से जूझ रहे हैं और आप अभी भी वह नहीं बन पाए हैं जो आप होंगे। पतरस की तरह, आपकी असफलताओं के साथ-साथ आपकी सफलताएँ भी हैं, परन्तु यह हमेशा ऐसा नहीं होगा। मसीह आ रहे हैं, और जब वह प्रकट होंगे, तो आप वह सब कुछ होंगे जो परमेश्वर ने आपको बनाया है। इसलिये अपने मन को व्याकुल न होने दे।
यीशु की वापसी एक महत्वपूर्ण और व्यावहारिक सत्य है जिसे हमें आज ईसाई जीवन जीने के लिए समझने की आवश्यकता है। कई बार ऐसा भी हो सकता है जब आपको विनाशकारी समाचारों का सामना करना पड़े। आपको आश्चर्य हो सकता है कि परमेश्वर क्या कर रहे हैं और भविष्य में क्या होगा। परन्तु यीशु आपसे कहते हैं कि अपने मन को व्याकुल ना होने दें। वे आपको उन पर विश्वास करने और जो कुछ उन्होंने अपने बारे में प्रकट किया है उस पर भरोसा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। आप में और दुनिया में परमेश्वर का कार्य एक अधूरी परियोजना है, जो तब पूरा होगा जब यीशु मसीह महिमा के साथ लौटेंगे।
परमेश्वर के वचन के साथ आगे जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1- अंतिम भोज के समय स्वयं को शिष्यों के स्थान पर रखने का प्रयास करें। कौन सी बुरी खबर आपके लिए सबसे अधिक परेशान करने वाली रही होगी? क्यों?
2- क्या आप ऐसे समय के बारे में सोच सकते हैं जब आपको ऐसा महसूस हुआ हो कि आप अंधेरे में थे और आपको यीशु के बारे में आपके पूर्व ज्ञान की ओर झुकना पड़ा?
3- यीशु के शब्दों पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है, “मेरे पिता के घर में बहुत से कमरे हैं। यदि ऐसा न होता, तो क्या मैं तुम से कहता कि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।”?
4- 1 (बिलकुल आश्वस्त नहीं) से 10 (पूरी तरह से आश्वस्त) के पैमाने पर, आप कितने आश्वस्त हैं कि यीशु विश्वासियों को स्वर्ग में लाने के लिए वापस आएंगे? क्यों?
5- आप परमेश्वर के अधूरे कार्य को कहाँ देखते हैं, और आपको यीशु के इन शब्दों, “तुम्हारा मन व्याकुल न हो” को लागू करने की सबसे अधिक आवश्यकता कहाँ है?