निर्गमन 12:1–13
1 फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा,
2 “यह महीना तुम लोगों के लिये आरम्भ का ठहरे; अर्थात् वर्ष का पहला महीना यही ठहरे।
3 इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो, कि इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने-अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे एक-एक मेम्ना* ले रखो।
4 और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिये मनुष्य कम हों, तो वह अपने सबसे निकट रहनेवाले पड़ोसी के साथ प्राणियों की गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना।
5 तुम्हारा मेम्ना निर्दोष* और पहले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से।
6 और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन सूर्यास्त के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें।
7 तब वे उसके लहू में से कुछ लेकर जिन घरों में मेम्ने को खाएँगे उनके द्वार के दोनों ओर और चौखट के सिरे पर लगाएँ।
8 और वे उसके माँस को उसी रात आग में भूँजकर अख़मीरी रोटी* और कड़वे सागपात के साथ खाएँ।
9 उसको सिर, पैर, और अंतड़ियाँ समेत आग में भूँजकर खाना, कच्चा या जल में कुछ भी पकाकर न खाना।
10 और उसमें से कुछ सवेरे तक न रहने देना, और यदि कुछ सवेरे तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना।
11 और उसके खाने की यह विधि है; कि कमर बाँधे, पाँव में जूती पहने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का पर्व होगा।
12 क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊँगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहलौठों को मारूँगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूँगा; मैं तो यहोवा हूँ।
13 और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्थात् मैं उस लहू को देखकर तुमको छोड़ जाऊँगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगों को मारूँगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पड़ेगी और तुम नाश न होंगे।
जिस परिवार को परमेश्वर ने आशीष देने का वचन दिया था वह बढ़ रहा था। अब्राहम के पुत्र इसहाक से याकूब उत्पन्न हुआ, और याकूब के बारह पुत्र थे, जो इस्राएल के बारह गोत्रों के पिता बने। अकाल के कारण परमेश्वर के लोग मिस्र चले गए, और अगले चार सौ वर्षों में वे सत्तर के एक विस्तारित परिवार से बढ़कर लगभग बीस लाख लोगों तक पहुंच गए। जैसे-जैसे वे बढ़ते गए, उन पर अत्याचार किए गए, परन्तु परमेश्वर ने उनकी सहायता की दुहाई सुनी और उन्हें बचाया।
जातीय उत्पीड़न मानव इतिहास की सबसे बड़ी बुराइयों में से एक रहा है। शुरुआती उदाहरणों में से एक में परमेश्वर के लोग मिस्र में फंसे हुए थे, जो जबरन मजदूरी के शिकार थे। परन्तु सबसे बड़ी हानि, फिरौन की यह आज्ञा थी कि सब इब्री बालकों को नील नदी में फेंक दिया जाए ( निर्गमन 1:22 ) ।
इसलिए जब मूसा का जन्म हुआ, तो उसकी माता ने उसके प्राण बचाने के लिए उसे नील नदी पर टोकरी में रखकर छिपा दिया। फिरौन की पुत्री ने उसे पाया और, परमेश्वर के अद्भुत विधान में, मूसा की माता को उसकी देखभाल करने के लिए नियुक्त कर लिया।
मूसा महल में पला-बढ़ा, परन्तु जब उस ने मिस्र में जीवन की वास्तविकता को देखा, तो अपने ही लोगों के साथ दुर्व्यवहार किए जाने पर वह क्रोध से भर गया। मामले को अपने हाथों में लेते हुए, उसने एक मिस्री को मार डाला जो इब्रानियों में से एक के साथ दुर्व्यवहार कर रहा था। और जब यह बात बाहर फैली, तब उसे अपने जीवन को बचाने के लिए भागना पड़ा। वह मिद्यान के दूरदराज़ देश में पहुंचा, जहाँ उसने सिप्पोरा से विवाह किया और एक चरवाहे के रूप में जीवन यापन करने के लिए बस गया। एक महल में अपना जीवन शुरू करने के बाद, मूसा अब अंधकार में जी रहा था।
परमेश्वर अपनी चुप्पी तोड़ते हैं
आज एक धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालय के किसी छात्र की तरह, मूसा उन विश्वासों और तत्त्वज्ञान से जूझ रहा होगा जो उसकी माँ से अब्राहम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर के बारे में मिली शिक्षा से बहुत अलग थे। महल में उसने मिस्र के देवताओं के बारे में सीखा होगा – ओसिरिस, हेकेट, एपिस और रा।
मूसा के लिए यह मान लेना आसान होता कि बाइबल का परमेश्वर कई संभावित विकल्पों में से एक है, और यह कि जिस ईश्वर की आप पूजा करते हैं, वह केवल उस संस्कृति का प्रतिबिंब है जिसमें आप पले-बढ़े हैं। परमेश्वर को अब्राहम को दर्शन दिए हुए पांच सौ वर्ष बीत चुके थे, इसलिए मूसा के लिए बड़ा प्रश्न यह था कि “परमेश्वर कौन है?” उसने कैसे उत्तर की खोज की इसकी कहानी निर्गमन 3 में पाई जाती है।
आत्मनिर्भर अग्नि
“और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उसने दृष्टि उठाकर देखा कि झाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती” (निर्गमन 3: 2 ) | मूसा ने अग्नि को एक झाड़ी पर टीका हुआ देखा, परन्तु उस अग्नि ने झाड़ी को नहीं जलाया जिस पर वह टिकी हुई थी। अग्नि आत्मनिर्भर थी। अग्नि तब बुझती है जब उसका ईंधन समाप्त हो जाता हैं जो उसे जलाए रखने में मदत करता है। एक मोमबत्ती तभी तक जलती है जब तक उसकी मोम समाप्त नहीं हो जाती| परन्तु यह लौ किसी अन्य लौ से विपरीत थी। वह अपने आप जल रही थी। मूसा ने ऐसा कुछ कभी नहीं देखा था।
जैसे-जैसे मूसा उस अग्नि के करीब आता गया, परमेश्वर ने उस्से अग्नि में से बात की: “मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ” (3:6)। तब परमेश्वर ने उस नाम को प्रकट किया जिस नाम से वे चाहते थे कि उन्हें जाना जाये: “मैं जो हूँ सो हूँ” (3:14) ।
परमेश्वर ने स्वयं को अब्राहम, इसहाक और याकूब पर प्रकट किया था, परन्तु वह अपने अस्तित्व के लिए उनके विश्वास पर निर्भर नहीं थे। कारोबार ग्राहकों पर निर्भर करते हैं, स्कूल छात्रों पर निर्भर करते हैं, और कालीसिया सदस्यों पर निर्भर करती है। परन्तु परमेश्वर विश्वासियों पर निर्भर नहीं करते हैं। परमेश्वर है। वह अपने स्वयं के होने की शक्ति से मौजूद है। और क्योंकि वह हैं, वह हमेशा रहेंगे, चाहे हम उन पर विश्वास करें या ना करें।
परमेश्वर को नया आकार देने का व्यक्तिगत अपमान
परमेश्वर वह है जो वह है । वह वो नहीं है जो हम चाहते हैं कि वो हो। जब लोग कहते हैं कि वे उस ईश्वर में विश्वास नहीं करते जो न्याय करेगा, या कि वे एक ऐसे परमेश्वर में विश्वास नहीं कर सकते जो केवल यीशु के माध्यम से लोगों को बचाता है, वे वास्तव में यह कह रहे हैं कि वे बाइबल के परमेश्वर को पसंद नहीं करते हैं और उन्होंने अपनी पसंद के अनुसार किसी दूसरे ईश्वर का आविष्कार करने का चुनाव किया है।
यह कितना आपत्तिजनक है इसका अंदाजा लगाने के लिए, कल्पना कीजिए कि एक आदमी अपनी पत्नी की डिजिटल तस्वीर संपादित कर रहा है, और वह उन सभी नाक नक्श को परिवर्तित कर रहा है जिन्हें वह नापसंद करता हैं। उसकी पत्नी कुछ अधिक वजन लिए हुये है, तो वह उसकी छवि “पुनर्व्यवस्थित” करता है। फिर, जब उसके पास जैसा वह चाहता है वैसा चित्र होता है, तो वह अपनी पत्नी से कहता हैं, “इस प्रकार से मैं चाहता हूं कि तुम दिखो !”
यह वाकई आपत्तिजनक है! उस आदमी की पत्नी उसे सीधे आंखों में देख सकती है और कह सकती है, अवज्ञा के एक स्वर के साथ, “मैं जो हूँ सो हूँ। मैं वह नहीं हूं जो तुम चाहते हो कि मैं बनूं।” उसी तरह, यह परमेश्वर का घोर अपमान है कि हम बाइबल को खोले, उसके बारे में ऐसी चीजें देखें जो हमें पसंद नहीं हैं, और उसे एक ऐसी छवि में बदल दें जो हमें अधिक भाती है। परमेश्वर वह नहीं है जो आप चाहते हैं कि वह हो। वह जो है वह है !
विपत्तियों का स्थल
बाइबल के परमेश्वर के लिए यह कहना बहुत अच्छा है कि, “मैं हूँ,” परन्तु हम कैसे जान सकेंगे कि वह है और यह कि अन्य परमेश्वर नहीं हैं? यही विपत्तियों की बात है (निर्गमन 7-12 ) | फिरौन ने परमेश्वर के लोगों को जाने देने की परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने से इनकार कर दिया। उसने अपने जीवन में परमेश्वर के अधिकार को नहीं पहचाना। शायद उसने यह विचार किया कि उसके अपने देवता हैं और यह कि उसके पास उस परमेश्वर की आज्ञा मानने का कोई कारण नहीं था जिस ने मूसा से बातें की थीं।
जब तक फिरौन यह मानता रहता कि वह अपने देवताओं की पूजा कर सकता है, वह कभी 1भी एक सच्चे परमेश्वर के अधिकार के अधीन नहीं हो सकता था। इसलिए जीवित परमेश्वर ने मिस्र के देवताओं के पीछे की शक्तियों को गिरा कर उसका प्रमाण दिया कि वह कौन है। परमेश्वर ने कहा, “और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूँगा; मैं यहोवा हूँ” (12:12)।
हमने कई मिस्री देवताओं को देखा जिनके बारे में मूसा ने ओसिरिस (नील नदी के देवता) सहित सीखा था, हेकत (जन्म की देवी), और रा (सूर्य देवता) । सामान्य ज्ञान यह था कि इनमें से प्रत्येक देवता मिस्र के लिए विशेष आशीषें लाते थे।
विपत्तियों में, केवल मूसा और फिरौन के बीच संघर्ष से कहीं अधिक दांव पर लगा था। परमेश्वर अनिवार्य रूप से फिरौन से कह रहें थे, “तुम ओसिरिस की पूजा करते हो, यह कहते हुए कि नील नदी तुम्हारा पालन-पोषण करती है, परन्तु मैं नील
नदी को एक निर्जीव दलदल में बदल दूंगा। तुम हेकत की पूजा करते हो, जन्म की देवी जिसे मेंढक के रूप में चित्रित किया गया है, परन्तु मैं इतने सारे मेंढकों को जन्म दूंगा कि तुम इच्छा करोगे कि तुम उसे कभी नहीं जानते थे। तुम रा की पूजा करते हुए कहते हो कि सूरज तुम पर चमकेगा, परन्तु मैं सूरज को अंधकार की ओर मोड़ दूंगा। जो कुछ तू ने मेरे स्थान पर रखा है, वह तेरे लिये विपत्ति के समान हो जाएगा।”
निर्गमन की पुस्तक की शुरुआत में बड़ा सवाल यह था कि क्या परमेश्वर अपने पीड़ित लोगों को बचा सकतें हैं – और यदि वे कर सकतें हैं, तो क्या वह कार्य करने के लिए पर्याप्त परवाह करेंगे? हम आज भी वही सवाल पूछते हैं जब हम आज दुनिया में अपने आस-पास दुख देखते हैं। परमेश्वर ने इन सवालों का उत्तर दिया है: “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं, उनके दुःख को निश्चय देखा है; और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैंने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है। इसलिये अब मैं उतर आया हूँ कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाऊँ” (3:7-8)।
जीवित परमेश्वर की अवहेलना
परमेश्वर के लोगों को उत्पीड़न से केवल तभी बचाया जा सकता था जब फिरौन अपनी बुराई से पश्चाताप करे, या अगर बुराई का नाश हो जाय। परमेश्वर ने फिरौन को आदेश दिया कि वह लोगों को जाने दे, परन्तु उसने मना कर दिया। इसलिए परमेश्वर ने पहली विपत्ति भेजी, परन्तु फिरौन एक इंच भी न हिला। और अधिक विपत्तियाँ आईं, और हर बार जब फिरौन ने विरोध किया, तो उसकी अवज्ञा की कीमत अधिक होती गई।
हमारा धर्मनिरपेक्ष समाज भी ईश्वर की अवहेलना करने के लिए स्वतंत्र महसूस करता है क्योंकि कोई यह विश्वास नहीं करता कि परमेश्वर प्रलय लाएँगे। परन्तु विपत्तियों से संकेत मिलता है कि परमेश्वर बुराई को नष्ट कर देंगे, और जब आप इसे समझ लेंगे, तो आप यह देखना शुरू कर देंगे कि हमें उद्धारकर्ता की आवश्यकता क्यों है।
मिस्र में एक रक्त बलिदान
जब मिस्र पर अंतिम विपत्ति आई, तो परमेश्वर ने अपने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए एक रास्ता बनाया। हर परिवार को एक मेमने का चयन करना था। उन्हें इसे चार दिन तक रखना था और फिर मार डालना था। मेमने के खून को हर घर की
चौखट पर रंगना था। परमेश्वर ने कहा, “मैं उस लहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा” ( 12:13)।
मूसा ने परमेश्वर की आवाज सुनी थी। वह जानता था कि ईश्वर ने एक रास्ता प्रदान किया है जिसके माध्यम से इस आतंक की रात में परिवारों को सुरक्षित रखा जा सकता है। उद्धार का मार्ग एक बलि किए गए जानवर के लहू के द्वारा था।
कल्पना कीजिए की मूसा घर-घर जाकर पूछ रहा है, “क्या आप मेमने के लहू से ढके हुए हैं? क्या यह आपके दरवाजे के ऊपर है? क़यामत का दिन आ रहा है, और परमेश्वर ने कहा है, ‘कि जब मैं लहू देखूंगा, तब तुम्हारे ऊपर से होकर निकलूंगा।’ परमेश्वर को उसके वचन पर ले लो और उनकी आज्ञा का पालन करो। अपने घर की चौखट पर लहू से रंगे। आपने ऐसा क्यों नहीं किया?”
ध्यान दें कि परमेश्वर ने ऐसा कभी नहीं कहा, “यदि आप एक निश्चित संख्या में प्रार्थनाएं करते हैं, तो मैं आपके ऊपर से गुजरूंगा”। उन्होंने यह नहीं कहा, “अगर तुम सच्चे हो, तो मैं तुम्हारे ऊपर से गुजरूंगा”।उन्होंने कहा, “जब मैं लहू देखूंगा तो मैं तुम्हारे ऊपर से गुजरूंगा।”
जब अंतिम विपत्ति आयी, तो मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ लोगों ने अपने दरवाजों की ओर देखा होगा और सोचा होगा कि जब परमेश्वर की प्रलय का तूफान टूटेगा तो क्या होगा। उन्हें केवल परमेश्वर के वचन पर जाना था। बीस लाख लोगों ने विश्वास किया और पालन किया, और उनमें से हर एक को परमेश्वर के न्याय के माध्यम से सुरक्षित रखा गया था।
परमेश्वर का मेमना
पूरी बाइबल की कहानी में लहू का विषय घूमता है। जब आदम और हव्वा ने बगीचे में पाप किया, “और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अंगरखे बना कर … ।” (उत्पत्ति 3:21)। इसका मतलब है कि परमेश्वर ने एक जानवर को उसी दिन मार डाला था जिस दिन पहला पाप किया गया था।
परमेश्वर ने आदम से कहा कि अवज्ञा मृत्यु का कारण बनेगी, और उस दिन बगीचे में एक मृत्यु हुई। आदम की जान बच गई। इसके बदले एक जानवर की मृत्यु हो गई। हम अब्राहम और इसहाक की कहानी में समान उधारण पाते हैं। परमेश्वर ने
एक जानवर प्रदान किया जो इसहाक के स्थान पर मारा गया था। अब, मिस्र में हर परिवार के लिए एक मेमना मारा जाएगा।
परमेश्वर नई पीढ़ी को यही संदेश पढ़ा रहे थे। वह कह रहे थे, “तुम्हें दूसरे की मृत्यु के माध्यम से न्याय से बचाया जाएगा, और इसमें लहू बहना शामिल होगा। यह आदम के लिए और अब्राहम के लिए ऐसा ही था, और यह तुम्हारे लिए भी ऐसा ही होगा ।” “बिना लहू बहाए क्षमा नहीं होती” (इब्रानियों 9:22)।
पुराने नियम में पशु बलि ने यीशु के आने की ओर इशारा किया। जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने यीशु को देखा, उसने कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है!” (यूहन्ना 1:29)। यीशु परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया मेमना है जिसके माध्यम से हमें अंतिम प्रलय से सुरक्षित रखा जाएगा जब परमेश्वर सभी बुराई को नष्ट कर देंगे।
मिस्र से निर्गमन के पन्द्रह सौ वर्ष बाद, यीशु ने अपने शिष्यों के साथ फसह मनाया। भोजन के दौरान, उन्होंने कटोरा लिया और कहा, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है ” (लूका 22:20)। यीशु अपने शिष्यों से कह रहे थे कि जैसे मेम्ने के लहू ने मिस्र में परमेश्वर के लोगों को छुड़ाया था, उसी प्रकार उनका अपना लहू उन्हें अंतिम दिन की प्रलय से बचाएगा।
बाइबल की कहानी के अंत में, हम लोगों की एक बड़ी भीड़ को परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े हुए देखते हैं, जो खुशी से भरी हुई है। ये लोग कौन हैं? ये वे हैं, “जो उस बड़े क्लेश में से निकल कर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धो कर श्वेत किए हैं” (प्रकाशितवाक्य 7:14)।
पुराने नियम में पशु बलिदान के माध्यम से, परमेश्वर अपने लोगों को यीशु मसीह के बलिदान की आवश्यकता और उसके महत्व को समझने के लिए तैयार कर रहे थे।
“मसीह, हमारा फसह का मेमना, बलिदान किया गया है” (1 कुरिंथियों 5:7)। उन्होंने परमेश्वर का न्याय वहन किया, कि वह तुम पर न पड़े। परन्तु फसह के पर्व में, लहू न केवल बहाया जाना चाहिए, बल्कि उसे लगाया भी जाना चाहिए । विश्वास और आज्ञाकारिता का एक कार्य होना चाहिए जिसमें परमेश्वर के लोगों ने लहू को अपने घरों की चौखटों पर लगाया, और इसी प्रकार विश्वास के द्वारा यीशु के लहू से बचाने की शक्ति आप पर लागू होती है।
- आपने ऐसी शिक्षाओं या दर्शन का सामना कहाँ किया जो परमेश्वर के बारे में उस शिक्षा से भिन्न थे, जिसके साथ आप बड़े हुए हैं? इन शिक्षाओं ने आपको कैसे प्रभावित किया?
- क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि परमेश्वर के बारे में आपने जो कहानियां सुनी हैं, वे केवल परंपराएं हैं? क्या आपको लगता है कि अगर आपने परमेश्वर को बोलते हुये सुना तो यह बदल जाएगा?
- क्या आपने परमेश्वर / धर्म के बारे में गंभीरता से सोचने से परहेज किया है? क्यों या क्यों नहीं?
- फसह की रात को, परमेश्वर का न्याय कुछ घरों को “क्यों पारित” किया? उस दिन परमेश्वर आज्ञाकारी होने में क्या शामिल था?
- यीशु क्रूस पर क्यों मर गए? आज एक व्यक्ति के जीवन में “मसीह का लहू” कैसे लागू होता है?