निर्गमर्गन 19:16–25
16जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भारी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब काँप उठे।
17तब मूसा लोगों को परमेश्वर से भेंट करने के लिये छावनी से निकाल ले गया; और वे पर्वत के नीचे खड़े हुए।
18और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा था, इस कारण समस्त पर्वत धुएँ से भर गया; और उसका धुआँ भट्ठे का सा उठ रहा था, और समस्त पर्वत बहुत काँप रहा था।
19फिर जब नरसिंगे का शब्द बढ़ता और बहुत भारी होता गया, तब मूसा बोला, और परमेश्वर ने वाणी सुनाकर उसको उत्तर दिया।
20और यहोवा सीनै पर्वत की चोटी पर उतरा; और मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर चढ़ गया।
21तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतरके लोगों को चेतावनी दे, कहीं ऐसा न हो कि वे बाड़ा तोड़कर यहोवा के पास देखने को घुसें, और उनमें से बहुत नाश हो जाएँ।
22और याजक जो यहोवा के समीप आया करते हैं वे भी अपने को पवित्र करें, कहीं ऐसा न हो कि यहोवा उन पर टूट पड़े।”
23मूसा ने यहोवा से कहा, “वे लोग सीनै पर्वत पर नहीं चढ़ सकते; तूने तो आप हमको यह कहकर चिताया कि पर्वत के चारों और बाड़ा बाँधकर उसे पवित्र रखो।”
24यहोवा ने उससे कहा, “उतर तो जा, और हारून समेत तू ऊपर आ; परन्तु याजक और साधारण लोग कहीं यहोवा के पास बाड़ा तोड़कर न चढ़ आएँ, कहीं ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पड़े।”
25अतः ये बातें मूसा ने लोगों के पास उतरकर उनको सुनाईं।
मूसा के लिए उस स्थान पर लौटना एक अजीब एहसास रहा होगा जहां परमेश्वर ने जलती हुई झाड़ी मे से उससे बात की थी। उसकी पहली यात्रा मे, वह भेड़ों के झुंड से घिरा हुआ था। और अभी वह बीस लाख लोगों से घिरा हुआ था। परमेश्वर विश्वासयोग्य रहें हैं, और पुराने नियम के सबसे बड़े चमत्कारों में से एक में, उन्होंने अपने लोगों को मिस्र से बचाया और उन्हें सीनै पर्वत पर ले कर आएं।
बाधाएं, या “सीमाएं” (निर्गमन 19:12, 23), पर्वत के आधार पर एक प्रकार के निषेध क्षेत्र के रूप में स्थापित की गई थीं “यहोवा जो आग में हो कर सीनै पर्वत पर उतरा था, इस कारण समस्त पर्वत धुएं से भर गया” (19:18)। समस्त पर्वत हिंसक रूप से कांप उठा, और तुरही की आवाज तेज और तेज होती गई। परमेश्वर लोगों को अपनी व्यवस्था देने के लिए नीचे आ रहे थे।
परमेश्वर के अनुग्रह की एक नई अभिव्यक्ति
परमेश्वर की व्यवस्था अभी भी असुरक्षित लोगों के लिए स्वर्ग में चढ़ने की कोई सीढ़ी नहीं थी। यह हमेशा से ही परमेश्वर के लोगों के लिए जीवन का एक प्रतिरूप था, जो मेम्ने के लहू के द्वारा प्रलय से बचाए गए थे। इसलिए दस आज्ञाओं की शुरुआत परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को याद दिलाने से होती हैं, “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात मिस्र देश से निकाल लाया है” (20:2)।
परमेश्वर यह नहीं कह रहे थे कि, “मैं तुम्हें ये आज्ञाएँ दे रहा हूँ ताकि उनका पालन करने से तुम मेरे लोग बन जाओ।” वह यह कह रहे थे कि, “मैं तुम्हें ये आज्ञाएं इसलिए दे रहा हूं क्योंकि तुम पहले से ही मेरे लोग हो”। आज्ञाएँ आपको यह नहीं बताती कि उद्धार पाने के लिए आपको क्या करना चाहिए। वे उस जीवन का मानचित्रण करती हैं जिसमे परमेश्वर अपने अनुग्रह से, प्रभु यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा आपको बचाने के लिए बुलातें हैं।
परमेश्वर की महिमा की एक झलक
दस आज्ञाएँ नियमों का एक मनमाना समूह नहीं हैं। वे परमेश्वर के चरित्र का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब हैं।
नए नियम में, पाप को परमेश्वर की महिमा से वंचित होने और नियम को तोड़ने के रूप में परिभाषित किया गया है (रोमियों 3:23; 1 यूहन्ना 3:4) । इन दोनों को एक साथ रखकर, हम तर्कसंगत रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि व्यवस्था परमेश्वर की महिमा की अभिव्यक्ति है।
तुम्हें व्यभिचार क्यों नहीं करना चाहिए? क्योंकि परमेश्वर विश्वासयोग्य है। तुम्हें चोरी क्यों नहीं करनी चाहिए? क्योंकि ईश्वर पर भरोसा किया जा सकता है। तुम्हें झूठ क्यों नहीं बोलना चाहिए? क्योंकि परमेश्वर सत्य बोलते हैं। तुम्हें लोभ क्यों नहीं करना चाहिए? क्योंकि परमेश्वर अपने आप में शांतिपूर्ण और संतुष्ट है।
जब परमेश्वर कहते हैं, “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना” (निर्गमन 20:3), तो ऐसा इसलिए है क्योंकि वह एकमात्र परमेश्वर है। उनके जैसा कोई और नहीं है। और जब परमेश्वर आज्ञा देते है कि हम सप्ताह के एक दिन आराम करें, यह इसलिए है क्योंकि उन्होंने सातवें दिन अपने काम से विश्राम किया था।
परमेश्वर की आज्ञाएँ उसके स्वयं के बचाए गए लोगों को दी गई थीं । यदि तुम परमेश्वर के हो, तो यह आज्ञाएँ तुम्हारे लिए हैं। परमेश्वर तुमसे कहते हैं, “तुम मेरे हो, इसलिए अपने जीवन को ऐसा बनाओ, जो ये दर्शाये कि मैं कौन हूँ, और एक ईश्वरीय जीवन किस प्रकार दिखता है। परमेश्वर के प्रेम को दर्शाने वाला दर्पण
परमेश्वर प्रेम है, और दस आज्ञाएँ बताती हैं कि प्रेम का जीवन कैसा दिखता है। हमारे प्रभु यीशु से एक अवसर पर पूछा गया था, “व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है? (मत्ती 22:36)। एक को चुनने के बजाय, यीशु ने सभी आज्ञाओं को एक साथ लपेटा और कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” (मत्ती 22:37-39)।
प्रेम का जीवन व्यवहार में कैसा दिखता है? दस आज्ञाएं इसका उत्तर देती हैं। पहली चार आज्ञाएँ हमें बताती हैं कि परमेश्वर से प्यार करना कैसा दिखता है:
1. तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना ।
2. तू प्रतिमा ना बनाना । तू परमेश्वर से वैसे ही प्रेम करना जैसा कि वह है, न कि जैसा तू चाहता है कि वे हो, या जैसा तू उनके होने की कल्पना करता है।
3. तू परमेश्वर के नाम का सम्मान करना, तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ में न लेना ।
4. तू ईश्वर को समय देना प्रार्थना करने का समय, सेवा करने का समय, और यह याद रखने का समय कि तेरे आगे एक विशाल अनंत काल है जिसके लिए तुझे तैयारी करने कि ज़रूरत है।
अंतिम छह आज्ञाएं हमें बताती हैं कि अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने का क्या अर्थ है:
5. यह घर से शुरू होती है उन पहले लोगों से जिन्हें परमेश्वर आपके जीवन में रखते है: अपने पिता और माता का सम्मान करें।
6. इसका मतलब है कि आप मानव जीवन को परमेश्वर के एक पवित्र उपहार के रूप में मानते हैं।
7. इसका मतलब है कि आप अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार हैं।
8. इसका मतलब है कि आप पर भरोसा किया जा सकता है कि आप दूसरों की कमजोरी और भेद्यता का लाभ नहीं उठाएंगे।
9. इसका मतलब है कि आप अपने कथन के प्रति सच्चे हैं और आपका कथन सत्य है।
10. इसका मतलब यह है कि जो कुछ परमेश्वर ने दूसरों को दिया है, उस पर आनन्दित हो, बजाय इसके कि आप उसकी लालसा करे कि उन्होंने दूसरों को अपने बजाए क्या दिया है।
दस आज्ञाएँ एक दर्पण हैं जो परमेश्वर की महिमा को दर्शाती हैं। परमेश्वर प्रेम है, और वह हमें यह प्रतिबिंबित करने के लिए बुलाता है कि वह कौन है। यह कैसा दिखता है, यह दस आज्ञाओं में लिखा गया है।
आत्मा का एक्स-रे
एक पादरी कहते है, उन्हे अपने दंत चिकित्सक की एक यात्रा याद है जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे, मुख्य रूप से इसलिए कि उन्हे कोई दर्द नहीं था। अनुभव उत्साहजनक नहीं था ।
उनके दंत चिकित्सक ने कुछ एक्स-रे लिए और फिर वे एक्स-रे को रोशनी में लेकर गए और देखा । “मम्म्म्म… ओह प्यारे!।।। बहुत बुरा । इन दांतों के नीचे काफी सड़न हो गयी है, “उन्होंने कहा। “लेकिन मुझे कोई दर्द नहीं है,” पादरी ने जोर देकर कहा । दंत चिकित्सक प्रभावित नहीं लग रहे थे। “आपको आगे चल कर कुछ बहुत बड़े काम की आवश्यकता होगी,” उन्होंने कहा, “और जितनी जल्दी, उतना ही बेहतर होगा।
अपनी आध्यात्मिक स्थिति पर बहुत से लोग बिना किसी दर्द की भावना के अपना जीवन गुजरते हैं। वे झूठी धारणा बनाते हैं कि उनके साथ सब ठीक हैं और यह कि, आम तौर पर चूंकि वे एक सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं, इसलिए वे अच्छे आध्यात्मिक आकार में हैं। परन्तु ईश्वर का व्यवस्थान आत्मा के एक्स-रे की तरह है। यह हमें दिखाता है कि हम ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर को परमेश्वर होने देना मुश्किल लगता है, और यह कि हमारे लिए अन्य लोगों की तुलना में खुद से अधिक प्रेम करना स्वाभाविक है।
यीशु मसीह की आवश्यकता का पहला कारण आपका यह नहीं है कि आपके पास एक समृद्ध, पूर्ण और अधिक संतोषजनक जीवन होगा। बल्कि यह है कि आप स्वभाव से और कर्म से पापी हैं। परमेश्वर की व्यवस्था का एक्स-रे इसे दर्शाता है।
व्यवस्था एक अच्छी चीज है, जैसे एक्स-रे अच्छे होते हैं, भले ही वे हमारे लिए बुरी खबर लाएं। पादरी कहते हैं, उन्हे दंत चिकित्सक की खबर पसंद नहीं आई, परन्तु वे इस समस्या के बत्तर होने से पहले इसके बारे में जानने के लिए आभारी थे। यदि आप समस्या के बारे में नहीं जानेंगे, तो आप उपाय की भी खोज नहीं करेंगे।
यीशु ने स्पष्ट किया कि आज्ञाएँ हमारे कार्यों से कहीं अधिक गहरी होती हैं। वे हमारे दिल के विचारों और इरादों की खोज करतीं हैं। “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:27-28)|
दस आज्ञाओं की उचित समझ आपको यीशु मसीह में विश्वास करने के लिए प्रेरित करेगी (गलतियों 3:24)। यदि व्यवस्था अभी तक आपको मसीह के पास नहीं ला पाई है, तो आप इसके सबसे बड़े उद्देश्य से चूक गए हैं। फरीसियों के लिए यीशु के कथन का यही सार था: “तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो…. फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते” (यूहन्ना 5:39-40)। वे व्यवस्था का अध्ययन करने में व्यस्त थे, परन्तु वे असल मुद्दे से चूक गए, जो उन्हें मसीह के लिए उनकी आवश्यकता को दर्शाने के लिए था।
रेलगाड़ी के लिए पटरी बिछाना
पुराने नियम की कहानी यह स्पष्ट करती है कि परमेश्वर के लोग उनकी व्यवस्था का पालन करने में सक्षम नहीं थे। व्यवस्था हमे बताती है कि क्या करना है, परन्तु यह हमें ऐसा करने की शक्ति नहीं देती है।
आगे चल कर बाइबल की कहानी में, परमेश्वर ने एक नई वाचा का वचन दिया, जिसमें वह न केवल हमें बताएँगे कि हमें क्या करना है, बल्कि हमें उस दिशा में आगे बढ़ने की भी शक्ति देंगे: “मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूँगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे” (यहेजकेल 36:27 ) ।
ईश्वर कि व्यवस्था रेल की पटरी के समान है। पटरी दिशा देती है, परन्तु जब तक इंजन में शक्ति नहीं होगी तब तक रेल गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी। और यह पवित्र आत्मा का विशेष कार्य है कि वह परमेश्वर के लोगों को उस दिशा में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करे जो हमारे लिए परमेश्वर की व्यवस्था में निर्धारित की गई है।
आदेशों को वचन में बदलना
एक आदमी के बारे में एक महान कहानी है जो जेल में अपनी सज़ा काट रहा था क्योंकि वह एक चोर था । चोरी करना उसके जीवन का तरीका था, जब तक कि कानून की लंबी बांह ने उसे पकड़ नहीं लिया। जेल में अपने सज़ा के दौरान, उसने यीशु मसीह के सुसमाचार को सुना और अद्भुत रूप से परिवर्तित हो गया।
जब उसकी रिहाई का समय आया, तो वह आदमी जानता था कि उसे एक महान संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। उसके अधिकांश पुराने दोस्त चोर थे, और उसके लिए अपने पुराने जीवन के तरीके को छोड़ना आसान नहीं होगा।
अपनी नई आज़ादी के पहले रविवार को, वह एक गिरजाघर की इमारत में गया। प्रवेश में दस आज्ञाएँ एक तख़्ती पर लिखी हुई थी, और तुरंत उसकी नज़र उस आज्ञा के शब्दों की ओर आकर्षित हुयी जो उसे दोषी ठहराने के लिए लग रही थी: “तू चोरी न करना” ।
यह आखिरी चीज है जिसकी मुझे जरूरत है, उसने मन ही मन सोचा । मैं अपनी कमजोरी जानता हूं। मैं अपनी असफलता को जानता हूं, और मुझे पता है कि मैं कौन सी लड़ाई करने जा रहा हूं।
जैसे-जैसे गरिजाघर की आराधना आगे बढ़ती रही, वह उसी तख़्ती को देखता रहा । और जब उसने शब्दों को फिर से पढ़ा, तो ऐसा लगा कि वे एक नया अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। इससे पहले उसने इन शब्दों को निंदा करने वाले आदेश के स्वर में पढ़ा थाः “तू चोरी न करना “! परन्तु अब ऐसा लग रहा था कि परमेश्वर उन्हीं वचनों को
एक मुक्ति देने वाली प्रतिज्ञा के रूप में उससे कह रहे थेः “तू चोरी न करना!” वह व्यक्ति मसीह में एक नया व्यक्ति था, और परमेश्वर यह वादा कर रहे थे कि पवित्र आत्मा उसके लिए अपने पुराने जीवन के तरीके पर विजय प्राप्त करना संभव करेंगे।
जब आप प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर आपको अपनी पवित्र आत्मा देते हैं ताकि आप एक ऐसा जीवन जी सकें जो उन्हे भाता है। उनकी शक्ति उस संघर्ष के बीच अंतर करेगी जिसमें आपकी किस्मत में हार निश्चित है और एक ऐसी लड़ाई जिसमें आपको अंतिम जीत मिलेगी। व्यवस्था आपको बताती है कि परमेश्वर किस
प्रकार से चाहते है की आप अपना जीवन जीए। यीशु मसीह इस जीवन को संभव बनाते हैं।
व्यवस्था एक दर्पण है जो हमारे जीवन के छिपे हुए पापों को उजागर करता है। यदि ठीक से समझा तो, यह हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता के लिए दोषी ठहराएगा और हमें मसीह के पास लाएगा। और जब पवित्र आत्मा हम में वास करती है, तब व्यवस्था असंभव मांगों की सूची नहीं रह जाती, बल्कि नई संभावनाओं का विवरण बन जाती है।
नोट्स:
पादरी कहते है की उन्होंने अपने मित्र चार्ल्स प्राइस से कहानी सुनी, और इसका उपयोग करने की अनुमति के लिए वे आभारी हैं। देखे: चार्ल्स प्राइस, मैथ्यू : कैन एनिथिंग गुड कम आउट ऑफ नजरेथ? (फ़र्न, स्कॉटलैंड: क्रिश्चियन फोकस, 1998), 88.
परमेश्वर के वचन के साथ और अधिक जुड़ नें के लिए इन प्रश्नों का प्रयोग करें। किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन प्रश्नों पर विचार विमर्श करें या इन प्रश्नों को आत्म विश्लेषण के लिए प्रयोग करें।
1. दस आज्ञाएं कैसे शुरू होती हैं? उन्हें क्यों दिया गया है? आज हमारे लिए व्यवस्था का क्या संदेश है?
2. क्या दस आज्ञाएं समयबद्ध हैं? क्या हमें आज के लिए नई आज्ञाओं की आवश्यकता है? क्यों या क्यों नहीं?
3. यदि चीजें आपके लिए अच्छी तरह से चल रही हैं, और आपको लगता है कि आप आम तौर पर आप सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं, तो क्या इन दस आज्ञाओं को अनदेखा करना सुरक्षित है? क्यों या क्यों नहीं?
4. एक व्यक्ति को कैसे पता चलेगा कि उसने परमेश्वर की व्यवस्था के उद्देश्य को खो दिया है या नहीं?
5. व्यवस्था किस प्रकार से रेल की पटरी की तरह है? उस कार्य को पूरा करने के लिए व्यवस्था की और क्या आवश्यकता है जो परमेश्वर एक व्यक्ति के जीवन में करने का इरादा रखते है?