1 शमूएल 8: 1-22
1 जब शमूएल बूढ़ा हुआ, तब उसने अपने पुत्रों को इस्राएलियों पर न्यायी ठहराया।
2 उसके जेठे पुत्र का नाम योएल, और दूसरे का नाम अबिय्याह था; ये बेर्शेबा में न्याय करते थे।
3 परन्तु उसके पुत्र उसकी राह पर न चले, अर्थात् लालच में आकर घूस लेते और न्याय बिगाड़ते थे।
4 तब सब इस्राएली वृद्ध लोग इकट्ठे होकर रामाह में शमूएल के पास जाकर
5 उससे कहने लगे, “सुन, तू तो अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते; अब हम पर न्याय करने के लिये सब जातियों की रीति के अनुसार हमारे लिये एक राजा नियुक्त कर दे।” (प्रेरि. 13:21)
6 परन्तु जो बात उन्होंने कही, ‘हम पर न्याय करने के लिये हमारे ऊपर राजा नियुक्त कर दे,’ यह बात शमूएल को बुरी लगी। और शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की।
7 और यहोवा ने शमूएल से कहा, “वे लोग जो कुछ तुझ से कहें उसे मान ले; क्योंकि उन्होंने तुझको नहीं* परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है, कि मैं उनका राजा न रहूँ।
8 जैसे-जैसे काम वे उस दिन से, जब से मैं उन्हें मिस्र से निकाल लाया, आज के दिन तक करते आए हैं, कि मुझ को त्याग कर पराए, देवताओं की उपासना करते आए हैं, वैसे ही वे तुझ से भी करते हैं।
9 इसलिए अब तू उनकी बात मान; तो भी तू गम्भीरता से उनको भली भाँति समझा दे, और उनको बता भी दे कि जो राजा उन पर राज्य करेगा उसका व्यवहार किस प्रकार होगा।”
10 शमूएल ने उन लोगों को जो उससे राजा चाहते थे यहोवा की सब बातें कह सुनाईं।
11 उसने कहा, “जो राजा तुम पर राज्य करेगा उसकी यह चाल होगी, अर्थात् वह तुम्हारे पुत्रों को लेकर अपने रथों और घोड़ों के काम पर नौकर रखेगा, और वे उसके रथों के आगे-आगे दौड़ा करेंगे;
12 फिर वह उनको हजार-हजार और पचास-पचास के ऊपर प्रधान बनाएगा, और कितनों से वह अपने हल जुतवाएगा, और अपने खेत कटवाएगा, और अपने लिये युद्ध के हथियार और रथों के साज बनवाएगा।
13 फिर वह तुम्हारी बेटियों को लेकर उनसे सुगन्ध-द्रव्य और रसोई और रोटियाँ बनवाएगा।
14 फिर वह तुम्हारे खेतों और दाख और जैतून की बारियों में से जो अच्छी से अच्छी होंगी उन्हें ले लेकर अपने कर्मचारियों को देगा।
15 फिर वह तुम्हारे बीज और दाख की बारियों का दसवाँ अंश ले लेकर अपने हाकिमों और कर्मचारियों को देगा।
16 फिर वह तुम्हारे दास-दासियों को, और तुम्हारे अच्छे से अच्छे जवानों को, और तुम्हारे गदहों को भी लेकर अपने काम में लगाएगा।
17 वह तुम्हारी भेड़-बकरियों का भी दसवाँ अंश लेगा; इस प्रकार तुम लोग उसके दास बन जाओगे।
18 और उस दिन तुम अपने उस चुने हुए राजा के कारण दुहाई दोगे, परन्तु यहोवा उस समय तुम्हारी न सुनेगा।”
19 तो भी उन लोगों ने शमूएल की बात न सुनी; और कहने लगे, “नहीं! हम निश्चय अपने लिये राजा चाहते हैं, (प्रेरि. 13:21)
20 जिससे हम भी और सब जातियों के समान हो जाएँ, और हमारा राजा हमारा न्याय करे, और हमारे आगे-आगे चलकर हमारी ओर से युद्ध किया करे।”
21 लोगों की ये सब बातें सुनकर शमूएल ने यहोवा के कानों तक पहुँचाया।
22 यहोवा ने शमूएल से कहा, “उनकी बात मानकर* उनके लिये राजा ठहरा दे।” तब शमूएल ने इस्राएली मनुष्यों से कहा, “तुम अब अपने-अपने नगर को चले जाओ।”
न्यायाधीशों के साथ प्रत्यक्ष कमजोरी यह थी कि उनमें निरंतरता की कमी थी। अन्य राष्ट्रों के पास राजा और स्थायी सेनाएँ थीं। और जब एक राजा की मृत्यु हो जाती थी, तो उसके उत्तराधिकारी को तुरन्त ताज पहनाया जाता था। परन्तु परमेश्वर ने न्यायियों को संकट के समय में ही खड़ा किया जब उनके लोगों ने उन्हें पुकारा, और इसका मतलब यह था कि लोग हर समय परमेश्वर पर निर्भर थे। इस्राएल में बाकी सभी देशों की तरह स्थिरता और निरंतरता क्यों नहीं हो सकती थी?
यदि आप चार सितारा सेनापति से इस्राएली सेना द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों का विश्लेषण करने के लिए कहेंगे, तो वह कहेगा, “इनमें से किसी भी लड़ाई का कोई सैन्य अर्थ नहीं है।” परमेश्वर ने अपने लोगों को विजय प्रदान की, तब भी जब वे निराशाजनक रूप से असुसज्जित थे और संख्या में कम थे।
उदाहरण के तौर पर, यरीहो के गढ़वाले शहर में पहुँचने पर, परमेश्वर ने यहोशू से कहा कि वह तुरही बजाते हुए सात बार नगर के चारों ओर घूमे। जब परमेश्वर के लोगों ने ऐसा किया, तो शहर की दीवारें गिर गईं- निश्चित रूप से सैन्य इतिहास में सबसे असामान्य जीत में से एक!
फिर न्यायियों की पुस्तक में, परमेश्वर हमें गिदोन के बारे में बताते हैं, जिसने मिद्यानियों से लड़ने के लिए 32,000 लोगों की सेना खड़ी की। परमेश्वर ने कहा कि वे बहुत अधिक थे, और इसलिए गिदोन ने सेना की संख्या को घटाकर तीन सौ कर दिया। वे केवल मशालों, घड़े और तुरहियों से सशस्त्र होकर शत्रु की छावनी में दाखिल हुए, और परमेश्वर ने मिद्यानियों के बीच भ्रम फैलाया, जो घबराकर भाग गए।
इस्राएल की विजय उनके पराक्रम या शक्ति से नहीं, बल्कि परमेश्वर की आत्मा के हस्तक्षेप से हुई थी। यहोवा ने हर दफा यह स्पष्ट किया कि वे ही उन्हें जीत की ओर ले गए। परन्तु परमेश्वर के लोग संतुष्ट नहीं थे।
विश्वास से जीने की निराशा
परमेश्वर इस्राएल के राजा थे। उन्होने वह सब कुछ किया जो एक राजा अपने लोगों के लिए करता है और उससे कहीं ज्यादा। परन्तु परमेश्वर के लोग केवल उन पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे, या अपने अगुवों को खड़ा करने के लिए उनकी प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे। वे उत्तराधिकार की एक प्रणाली चाहते थे, एक जीता जागता व्यक्ति उनका नेतृत्व करने के लिए।
आखिरकार समुदाय के बुजुर्ग, एक न्यायी और भविष्यवक्ता शमूएल के पास आए, और उसे एक राजा नियुक्त करने के लिए कहा (1 शमूएल 8:5 ) । यह अनुरोध परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा नहीं था। यहोवा ने शमूएल से कहा, “उन्होंने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है कि मैं उनका राजा न रहूँ” ( 8:7)। जब लोगों ने एक राजा की मांग की, तो वे विश्वास के जीवन से दूर हो रहे थे जिसमें वे सीधे प्रभु पर निर्भर थे। परन्तु परमेश्वर ने उन्हें अपना मार्ग अपनाने दिया।
विकल्पों का महत्व
परमेश्वर के लोगों ने एक बुरा चुनाव किया। वे जानते थे कि राजा के लिए उनकी इच्छा परमेश्वर को अप्रसन्न कर रही थी, और शमूएल ने उन्हें इसके परिणामों के बारे में चेतावनी दी: राजा उनके बेटों को युद्ध के लिए भेजेगा। वह उन्हें अपने खेतों और अपने घर में सेवा करने के लिए कहेगा। वह उनकी बेटियों को अपनी रसोई में सेवा करने के लिए बुलाएगा। वह उनकी जमीन पर कब्जा कर लेगा। वह उनकी फसलों और उनके भेड़-बकरियों पर कर वसूल करेगा। “और उस दिन तुम अपने उस चुने हुए राजा के कारण दोहाई दोगे, परन्तु यहोवा उस समय तुम्हारी न सुनेगा ” ( 8:18)।
शमूएल इससे कड़ी चेतावनी नहीं दे सकता था, परन्तु परमेश्वर के लोग नहीं सुन रहे थे। उन लोगों ने शमूएल की बात न सुनी; और कहने लगे, “नहीं! हम निश्चय अपने लिये राजा चाहते हैं, जिससे हम भी और सब जातियों के समान हो जाएँ ( 8:19-20)। वे अपना मन बना चुके थे, और इसलिए परमेश्वर ने उन्हें वह दे दिया जो उन्होंने मांगा।
बुरे चुनाव हमेशा पीड़ामय परिणामों की ओर ले जाते हैं। परन्तु परमेश्वर परमधन्य हैं, और इसका अर्थ यह है कि कोई भी चुनाव, चाहे वह कितना ही बुरा क्यों न हो, हमें उनकी कृपा से परे नहीं रख सकता। हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी गलत निर्णय लेते हैं, और कभी-कभी तो हम निरंतर पछतावे के साथ जीते हैं। यह आपका अनुभव हो सकता है एक निराशाजनक पेशा, एक निराशाजनक विवाह या एक आवेगपूर्ण निर्णय जो आपको पीछे मुड़कर यह कहने के लिए मजबूर कर देता है कि, “काश … “
अच्छी खबर यह है कि परमेश्वर बुरे निर्णयों से मुक्ति दिला सकते हैं। ऐसा कोई पाप नहीं है जो आपको परमेश्वर के अनुग्रह से परे रखता है और ऐसा कोई निर्णय नहीं है जो आपको परमेश्वर की सहायता से परे रखता हो।
अगुआई की योग्यता
परमेश्वर जानते थे कि उसके लोग एक राजा की मांग करेंगे, और व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में, उन्होंने पहले से ही उस व्यक्ति की योग्यता दी थी जो उनके लोगों का नेतृत्व करेगा ।
सबसे पहला, राजा को परमेश्वर के द्वारा अभिषिक्त किया जाना चाहिए। “तब जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना” (व्यवस्थाविवरण 17:15)। इसके समानांतर नया नियम प्रेरितों के काम 6 में है, जहां पहले डीकन नियुक्त किए गए, और कलीसिया को उन मनुष्यों को चुनने के लिए कहा गया जो पवित्र आत्मा से भरे हुए हैं (प्रेरितों के काम 6:3) | मसीही अगुवों के जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति का चिह्न अवश्य होना चाहिए। यह प्राथमिक योग्यता है।
दूसरा, राजा परमेश्वर के लोगों से संबंधित होना चाहिए। “अपने भाइयों ही में से किसी को अपने ऊपर राजा ठहराना; किसी परदेशी को जो तेरा भाई न हो तू अपने ऊपर अधिकारी नहीं ठहरा सकता” (व्यवस्थाविवरण 17:15)। फिर से प्रेरितों के काम 6 में, प्रेरितों ने विश्वासियों से कहा कि वे अपने स्वयं की संख्या से नेता चुनें ( 6:3)। परमेश्वर के लोगों को ऐसे अगुवों की तलाश करनी चाहिए जिन्होंने स्थानीय गिर्जाघर में खुद को साबित किया हो ।
तीसरा, राजा को विश्वास का प्रयोग करना चाहिए। “वह बहुत घोड़े न रखे, और न इस मनसा से अपनी प्रजा के लोगों को मिस्र में भेजे कि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएँ” (व्यवस्थाविवरण 17:16 ) । राजा को विश्वास का आदर्श बनाना था। अन्य राष्ट्रों को रथों और घोड़ों पर भरोसा था, परन्तु परमेश्वर के लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा के नाम पर भरोसा करना था (भजन संहिता 20:7)। फिर से हम इसको नए नियम में प्रतिबिंबित करते हुए देखते हैं। जब कलीसिया ने पहले उपयाजक को नियुक्त किया, तो उन्होंने स्तिफनुस को चुना क्योंकि वह “विश्वास से भरा हुआ मनुष्य” था (प्रेरितों के काम 6:5 ) । परमेश्वर के लोगों के बीच अगुवाई हमेशा उन लोगों के हाथों में होना चाहिए जो जीवित परमेश्वर पर भरोसा करते हैं।
चौथा, राजा को वफादार होना चाहिए। “और वह बहुत स्त्रियाँ भी न रखें, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए” (व्यवस्थाविवरण 17:17 ) । यही सिद्धांत नए नियम में प्रतिबिंबित होता है: अध्यक्ष को “एक पत्नी का पति होना चाहिए” (1 तीमुथियुस 3:2) | एक मसीही अगुवे की परमेश्वर के प्रति निष्ठा उसकी पत्नी के प्रति उसकी निष्ठा में व्यक्त की जाएगी।
पांचवां, राजा को लालची नहीं होना चाहिए। “न ही वह अपने लिए अत्यधिक चाँदी और सोना बढ़ाए” (व्यवस्थाविवरण 17:17)। परमेश्वर के लोगों के बीच अगुवे को अपने पद का उपयोग अपने खुद के फायदे के लिए नहीं करना चाहिए। वह परमेश्वर का और लोगों का सेवक है। नए नियम में, पतरस ने पादरियों और अगुवों को लिखा, उन्हें निर्देश दिया कि वे पैसे के लिए लालची न हों, परन्तु सेवा करने के लिए उत्सुक हों, झुंड पर हावी न हों (1 पतरस 5:2-3)।
छठा राजा पवित्र शास्त्र का छात्र होना चाहिए। “और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक की एक नकल अपने लिये कर ले…. और वह उसे अपने पास रखें, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिससे वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे “
( व्यवस्थाविवरण 17:18-19 ) । इसका मतलब यह था कि राजा का पहला कर्तव्य व्यवस्थाविवरण की पूरी पुस्तक की अपनी प्रतिलिपि लिखना था, और फिर इसे हर दिन पढ़ना था ! उसी प्रकार, उपयजक “पर विश्वास के भेद को शुद्ध विवेक से सुरक्षित रखें” (1 तीमुथियुस 3:9)। परमेश्वर के लोगों के बीच अगुवों को परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना, आदर करना और उसक पालन करना है।
सातवां, राजा को विनम्र होना चाहिए। राजा “अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने” (व्यवस्थाविवरण 17:20) । इसी तरह, पादरियों और अगुवों को सेवा करनी है, “जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, वरन् झुंड के लिये आदर्श बनो” (1 पतरस 5:3)।
इस अगुवाई का रेखा-चित्र पादरियों, अध्यक्षों, आम नेताओं और उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो उन्हें नियुक्त करने में भाग लेते हैं। यह सेवकाई की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए एक लेखा चित्र है और उन सभी के लिए जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा होते हुए देखना चाहते हैं।
यदि आप परमेश्वर के द्वारा उपयोग किया जाना चाहते हैं, तो उनकी आत्मा के अभिषेक की तलाश करें। परमेश्वर के लोगों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और सभी बातों में परमेश्वर पर भरोसा करना सीखें। अपनी सभी प्रतिबद्धताओं में निष्ठा पैदा करें खासकर अपने विवाह में। पैसे की खोज को वेदी पर रखें, और जो कुछ भी परमेश्वर आपको खुशी से देते हैं उसे प्राप्त करने का निश्चय करें। सुसमाचार की ठोस सच्चाइयों के बारे में अपने विश्वासों में स्पष्ट रहें, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चलते हुए प्रतिदिन पर्मेश्वारिए वचन से खुद को तृप्त करें।
योग्यता के कौन उपयुक्त है?
क्या आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पुराने नियम का कोई भी राजा परमेश्वर की योग्यता के अनुरूप नहीं था?
शाऊल, पहला राजा, मनमौजी और अवज्ञाकारी था। तीसरा राजा, सुलैमान की सात सौ पत्नियां थीं। और जब वह बूढ़ा हो गया, तो उसकी पत्नियों ने उसके मन को अन्य देवताओं की ओर मोड़ दिया (1 राजा 11:4)। इस्राएल के राजाओं में से सबसे उत्तम दाऊद था, परन्तु यहाँ तक कि वह भी व्यभिचार और हत्या का दोषी था ! इस्राएल का कोई भी राजा परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के करीब नहीं आया।
परमेश्वर के लोगों ने उस राजा के लिए हज़ारो वर्षों तक प्रतीक्षा की, जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करेगा, और फिर परमेश्वर ने एक मांस-और- रक्त वाले अगुर्वे के लिए उनकी लालसा का उत्तर दिया जो उन्हें उनके दुश्मनों से बचाएगा। एक राजा का जन्म हुआ, और बुद्धिमान लोगों ने “यहूदियों के राजा” की आराधना करने के लिए एक तारे का अनुसरण किया (मत्ती 2:2 ) |
यीशु ने राजा के लिए परमेश्वर की योग्यता को पूरी तरह से पूरा किया।
1. वें परमेश्वर के द्वारा अभिषिक्त किए गए थे। उनके बपतिस्मा के समय परमेश्वर ने घोषणा की, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ” (मती 3:17)।
2. वें परमेश्वर के लोगों से संबंधित थे, और दाऊद की वंशज में पैदा हुए थे।
3. उन्होंने विश्वास का प्रयोग किया। गेथशेमाने के बगीचे में यीशु ने कहा, “तेरी इच्छा पूरी हो” (मत्ती 26:42), और अपनी पीड़ा में उन्होने अपने आप को पिता को सौंप दिया “जो न्याय करता है” (1 पतरस 2:23) ।
4. वें वफादार थे। जब शैतान ने उनकी परीक्षा ली, तो मसीह ने दुश्मन के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से इनकार कर दिया (मत्ती 4:1-11 ) ।
5. वें लालची नहीं थे। मसीह ने अपने चेलों से कहा कि “मनुष्य का पुत्र इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे” ( मरकुस 10:45)।
6. वें पवित्र शास्त्र के छात्र थे। परमेश्वर के वचन ने उनके मन को भर दिया, और जिन लोगों ने उन्हें सुना, वे उनकी समझ से चकित थे।
7. वें विनम्र थे। “और मनुष्य के रूप में प्रकट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8)।
यीशु ने राजा के लिए परमेश्वर की योग्यता को पूरा किया, परन्तु वें वह राजा नहीं थे जिसे लोग चाहते थे।
उपहासित और विनम्र राजा
जब यीशु पर मुकदमा चलाया गया, तो पीलातुस ने उनसे पूछा: “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है” (मत्ती 27:11)। तब पीलातुस ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया, और उसने लोगों से कहा, “देखो तुम्हारा राजा! (यूहन्ना 19:14)।
तब हाकिम के सिपाहियों ने “यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चारों ओर इकट्ठी की, और उसके कपड़े उतारकर उसे लाल रंग का बागा पहिनाया, और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे और कहा, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” (मत्ती 27:28-29)।
राजा यीशु का मजाक उड़ाना जारी रहा। उनके सिर के ऊपर के दोष-पत्र में लिखा था: “यीशु नासरी, यहूदियों का राजा” (यूहन्ना 19:19)। कुछ लोग चिल्लाए, “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!” (लूका 23:37 ) । दूसरों ने चिल्लाया, “यह तो ‘इस्राएल का राजा’ है। अब क्रूस पर से उतर आए तो हम उस पर विश्वास करें” (मत्ती 27:42)।
इस चोटिल, विकृत और सूली पर चढ़ाए गए राजा के माध्यम से अंततः परमेश्वर की इच्छा पूरी हुई। परमेश्वर ने उसे जीवित किया और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, (फिलिप्पियों 2:9)। यीशु “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” है (प्रकाशितवाक्य 19:16 ) ।
यदि आपका विश्वास एक ऐसे नेता द्वारा तोड़ा गया है जिसने आपको विफल कर दिया है, तो एक राजा है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं और उसका नाम यीशु है। ईसाई धर्म ईसाई नेताओं पर भरोसा करने के बारे में नहीं है। यह प्रभु यीशु मसीह पर भरोसा करने के बारे में है, और जो लोग उन पर भरोसा करते हैं वे कभी निराश नहीं होंगे (रोमियों 10:11)।
यीशु वह राजा है जो परमेश्वर के किसी भी अगुवे से अपेक्षा की जाने वाली हर चीज को पूरा करते हैं। यह हमारे राजा के माध्यम से है कि परमेश्वर की इच्छा हमारे जीवन में और दुनिया में पूरी होगी। परमेश्वर उन सभी को बुलाते हैं जो नेतृत्व की इच्छा रखते हैं, वे राजा मसीह के प्रति स्वयं को समर्पित करें और उनके उदाहरण का अनुसरण करें।
परमेश्वर के वचन के साथ आगे जुड़ने के लिए इन सवालों का इस्तेमाल कीजिए। उन्हें किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. परमेश्वर के लोग एक राजा क्यों चाहते थे? आपको क्यों लगता है कि यह परमेश्वर के लिए अप्रिय था?
2. क्या आपने कभी खराब विकल्प / बुरा निर्णय लिया है और आप कभी-कभी सोचते हैं कि क्या इसने आपको परमेश्वर की कृपा / मदद से परे रख दिया है?
3. जब आप परमेश्वर के लोगों के बीच नेतृत्व की योग्यताओं को देखते हैं, तो प्रभु की
सेवा करने में अधिक प्रभावी होने के लिए आपको किस में बढ़ने की आवश्यकता होगी ?
4. आपको क्या लगता है कि यीशु के समय के लोगों ने उन्हें अपने नेता के रूप में क्यों अस्वीकार कर दिया?
5. क्या आपको लगता है कि आप यीशु को अपना नेता बनाना चाहते हैं? क्यों या क्यों नहीं?