यिर्मयाह 17: 1 – 13
1 “यहूदा का पाप लोहे की टाँकी और हीरे की नोक से लिखा हुआ है; वह उनके हृदयरूपी पटिया और उनकी वेदियों के सींगों पर भी खुदा हुआ है।
2 उनकी वेदियाँ और अशेरा नामक देवियाँ जो हरे पेड़ों के पास और ऊँचे टीलों के ऊपर हैं, वे उनके लड़कों को भी स्मरण रहती हैं।
3 हे मेरे पर्वत, तू जो मैदान में है, तेरी धन-सम्पत्ति और भण्डार मैं तेरे पाप के कारण लुट जाने दूँगा, और तेरे पूजा के ऊँचे स्थान भी जो तेरे देश में पाए जाते हैं।
4 तू अपने ही दोष के कारण अपने उस भाग का अधिकारी न रहने पाएगा जो मैंने तुझे दिया है, और मैं ऐसा करूँगा कि तू अनजाने देश में अपने शत्रुओं की सेवा करेगा, क्योंकि तूने मेरे क्रोध की आग ऐसी भड़काई है जो सर्वदा जलती रहेगी।”
5 यहोवा यह कहता है, “श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है।
6 वह निर्जल देश के अधमरे पेड़ के समान होगा और कभी भलाई न देखेगा। वह निर्जल और निर्जन तथा लोनछाई भूमि पर बसेगा।
7 “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो।
8 वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के किनारे पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब धूप होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।”
9 मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है*, उसमें असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?
10 “मैं यहोवा मन को खोजता और हृदय को जाँचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात् उसके कामों का फल दूँ।” (1 पत. 1:17, प्रका. 2:23, प्रका. 20:12,13, प्रका. 22:12)
11 जो अन्याय से धन बटोरता है वह उस तीतर के समान होता है जो दूसरी चिड़िया के दिए हुए अण्डों को सेती है, उसकी आधी आयु में ही वह उस धन को छोड़ जाता है, और अन्त में वह मूर्ख ही ठहरता है।
12 हमारा पवित्र आराधनालय आदि से ऊँचे स्थान पर रखे हुए एक तेजोमय सिंहासन के समान है।
13 हे यहोवा, हे इस्राएल के आधार, जितने तुझे छोड़ देते हैं वे सब लज्जित होंगे; जो तुझसे भटक जाते हैं उनके नाम भूमि ही पर लिखे जाएँगे, क्योंकि उन्होंने जीवन के जल के सोते यहोवा को त्याग दिया है।
कुछ लोगों का विचार है कि पुराने नियम में परमेश्वर केवल नियम, कानून और कर्तव्यों में रुचि रखते थे, परन्तु नए नियम में उन्होंने देखा कि यह काम नहीं कर रहा था और इसलिए उन्होंने मन का एक नया धर्म लागू किया। परन्तु शुरू से ही, परमेश्वर कहते हैं, “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन के साथ प्रेम रखना” (व्यवस्थाविवरण 6:5)। आप जो कुछ भी करते हैं, वह कोई अनियंत्रित संयोग की बात नहीं है। जो कुछ भी आपके मन में लिखा है वह आपके व्यक्तित्व को आकार देगा।
सोनू के क्रेडिट कार्ड का कर्ज नियंत्रण से बाहर हो गया था। उसकी पत्नी ने उसे एक परामर्शदाता से मिलने पर ज़ोर दिया, और इसलिए, अनिच्छुक रूप से, वह जाने के लिए तैयार हो गया। परामर्शदाता ने उसकी आय और खर्च का मूल्यांकन किया। यह आसान नहीं होने वाला था। अंततः परामर्शदाता ने एक योजना बनाई। इसमें सोनू के जीवन शैली में एक जटिल परिवर्तन शामिल होगा, और इस समस्या को हल करने में दस साल लगेंगे।
आंकड़ों को देखते ही सोनू को आश्चर्य हुआ। उसने कहा, “मुझे पता है कि मुझे क्या करने की जरूरत है।” “समस्या यह है कि मैं यह नहीं करना चाहता हूँ।” सोनू की दुर्दशा दर्शाती है कि परिवर्तन इतना कठिन क्यों है। यह जानना आसान है कि क्या करना है; इसे करने के लिए मन ढूंढना कठिन है।
परमेश्वर ने हमें अपनी आज्ञाएँ दी हैं, जो हमें बताती हैं कि हमें कैसे जीना है। आज्ञाओं को समझना कठिन नहीं है। समस्या उन्हें पालन करने के लिए मन ढूंढने की है। परन्तु परमेश्वर ने हमसे एक वादा किया है जो हमारे जीवन में वास्तविक, गहरा, और स्थायी परिवर्तन को संभव बनाता है।
परमेश्वर ने भविष्यवक्ता यिर्मयाह को बताया कि वें एक नई वाचा बनाएंगे। और नई वाचा का मूल मन का परिवर्तन है: “जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बाँधूंगा, वह यह है… मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊँगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा” (यिर्मयाह 31:33) |
पादरी कहते है कि हाल ही में किसी ने उनसे कहा: “पादरी, मुझे बचपन में गिरजाघर ले जाया गया था और मुझे इससे कुछ हासिल नहीं हुआ। मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहा गया, और जब मुझे समझ में आया तो मुझे बुरा लगा। यह उबाऊ था, और मैं समझ नहीं पाया कि यह मेरे जीवन से कैसे संबंधित है। यह सब कुछ मुझ पर थोपे गए कर्तव्य का मामला था और जैसे ही मुझे अवसर मिला, मैंने इसे पीछे छोड़ दिया।
यदि यह आपका अनुभव था, तो आप खुद को सोचते हुए पायेंगे, “क्या वास्तव में मन से परमेश्वर से प्रेम करना संभव है?”
मन की समस्या
मन कुटिल है और कभी-कभी काफी उलझने पैदा करने वाला भी है। आप यह अनुमान नहीं लगा सकते कि आपका मन किस दिशा में जाएगा: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?” (यिर्मयाह 17:9)
मन के व्याकुल होने का कारण यह है कि पाप ने उसे विकृत कर दिया है: “पाप… लोहे की टाँकी और हीरे की नोक से लिखा हुआ है; वह उनके हृदय रूपी पटिया और उनकी वेदियों के सींगों पर भी खुदा हुआ है ( 17:1)। जैसे चोर आपके बैठक खाने में घुस आते हैं और दीवारों पर अश्लीलता फैला देते हैं, पाप एक शत्रु है जिसने आपके मन में उपद्रव मचा दिया है!
जब पाप आपके मन पर लिखा जाता है, तो यह आपके चरित्र में छप जाता है। यह आदत की शक्ति को उत्पन्न करता है, और यह आपके भीतर संघर्षों का स्रोत है। संघर्ष की तीव्रता अलग-अलग होगी। कुछ लोगों के लिए, मन एक ऐसी जगह बन गया है जहाँ गंदी और कुरूप बातें गहराई से छप चुकी हैं। दूसरों के लिए, पाप के विनाशकारी प्रभाव कम गंभीर होते हैं, परन्तु बाइबल हमें यह बताने में स्पष्ट है कि, कुछ हद तक, पाप हर मानव के मन पर छपा हुआ है।
यीशु से अधिक किसी भी मनुष्य के मन की समस्या के बारे में ज्यादा शक्तिशाली ढंग से बात नहीं की। उन्होंने कहा, “क्योंकि भीतर से, अर्थात मनुष्य के मन से, बुरे बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निंदा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।” (मरकुस 7:21-23)
जब राजा दाऊद ने अपने व्यभिचार के पाप के लिए पश्चाताप किया, तो उसने परमेश्वर से दो चीजें मांगी। पहले, उसने कहा, “जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊँगा, मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूँगा।” (भजन संहिता 51:7)। दाऊद जानता था कि उसे क्षमा प्राप्त करने, धोए जाने और शुद्ध किये जाने की आवश्यकता है।
परन्तु वो यहीं नहीं रुका। वह जानता था कि उसे क्षमा किये जाने से भी अधिक की आवश्यकता है, और इसलिए उसने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर” (भजन संहिता 51:10)। दाऊद ने परमेश्वर से उसके मन का उपचार करने के लिए कहा, क्योंकि वह जानता था कि यदि उसका मन नहीं बदला गया, तो यह उसे फिर से उसी पापी मार्ग पर ले जाएगा। इसलिए उसने प्रार्थना की, “हे प्रभु, उस मन का उपचार कर जिसने मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया!”
दीवारों पर लिखे अश्लील चित्रों को साफ़ करना
आपका मन आपके जीवन का नियंत्रण केंद्र है। हम कभी-कभी बात करते हैं कि “किस तरह से हम जुड़े हुए हैं। यह उसी से लागू होता है। हमारे भीतर एक झुकाव है जो हमारे विकल्पों को संचालित करता है। इसलिए जब हम मन के बारे में बात करते हैं, तो हम किसी व्यक्ति के अस्तित्व के मूल के बारे में बात कर रहे होते हैं।
जब परमेश्वर ने कहा कि वे अपनी व्यवस्था हमारे मनो पर लिखेंगे, तो वें एक मौलिक परिवर्तन का वर्णन कर रहे जिसकी हम सब को आवश्यकता है। यदि आप उस प्रकार का जीवन जीने जा रहे हैं जिसके लिए परमेश्वर ने आपको बुलाया है, तो उनकी व्यवस्था आपके मन में कार्यान्वित करने की आवश्यकता होगी ताकि बाहरी नियम आंतरिक इच्छाएँ बन जाएँ।
आप एक धार्मिक जीवन केवल इसलिए नहीं जी सकते क्योंकि परमेश्वर कहते हैं, “आपको ऐसा करना होगा ।” यदि आपको वह बनना है जो परमेश्वर आपको बनाना चाहते हैं, तो एक आंतरिक परिवर्तन होना चाहिए जो आपको स्वतंत्र रूप से कहने की स्थिति तक ले आए, “मैं करूँगा।” प्रश्न यह है कि: ऐसा कैसे हो सकता है?
भय आपका मन नहीं बदलेगा
कुछ लोग सोचते हैं कि सख्त अनुशासन और परिणामों का भय अच्छा चरित्र प्रदान करेगा। भय की अपनी जगह हैं। यह व्यवहार को बदल सकता है, परन्तु यह मन को नहीं बदल सकता। जब परमेश्वर ने सिनाई पर्वत पर व्यवस्था दी, तो लोग बिल्कुल भयभीत हो गए। परन्तु कुछ ही हफ्तों में, वे सुनहरे बछड़े के चारों ओर नृत्य कर रहे थे (निर्गमन 32 ) | भय ने उनके मन को बदलने में कोई मदद नहीं की ।
समृद्धि आपका मन नहीं बदलेगी
कुछ अन्य लोग भी हैं जो सोचते हैं कि मानवीय स्थिति का उत्तर मुख्य रूप से सामाजिक और आर्थिक है। तर्क यह है कि यदि लोगों के पास पर्याप्त धन नहीं है या वे कम आत्मसम्मान से ग्रस्त हैं, तो उन्हें कोई उम्मीद नहीं होगी, और इसे बदलने का रास्ता आर्थिक सहायता और सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से है।
देखा जाये तो, इसमें कुछ सच्चाई भी है। परन्तु जब परमेश्वर अपने लोगों को दूध और शहद से बहने वाली भूमि में लाए और उन्हें स्वतंत्रता, समृद्धि और अवसर से आशीषित किया, तो उनके मन में कोई बदलाव नहीं आया और उनका मन वैसा ही था जब वे रेगिस्तान में थे। आप किसी व्यक्ति की परिस्थितियाँ बदलकर मनुष्य के मन पर पाप की छाप नहीं मिटा सकते।
धर्म आपका मन नहीं बदलेगा
क्या गिरजाघर आने, प्रार्थना करने या बाइबल पढ़ने से मन परिवर्तन हो सकता है? हालांकि, ये अच्छी और सही बातें हैं, परन्तु इनमें मन परिवर्तन की शक्ति नहीं है।
अपने रूपांतरण से पहले, प्रेरित पौलुस धार्मिक जीवन के प्रति समर्पित थे। वो परमेश्वर के नियम का पालन करना चाहते थे, परन्तु उन्होंने पाया कि उनका मन उन्हें एक अलग दिशा में खींच रहा था: “जो मैं करता हूँ उस को नहीं जानता” उन्होंने कहा। “क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है वही करता हूँ।” (रोमियों 7:15)। व्यवस्था उन्हें बदलने में असमर्थ थी । यह उनके मन के प्रचलित स्वभाव से अभिभूत था।
माता-पिता अक्सर यह समझते हैं कि यदि वे उचित अनुशासन का पालन करेंगे, आत्म-सम्मान को प्रोत्साहित करेंगे और अपने बच्चों को गिरजाघर लाएंगे, तो उनका मन अच्छा होगा। परन्तु अक्सर वे यह देखकर चिंतित हो जाते हैं कि उनके बच्चों के मन में एक प्रवृत्ति है जो उन्हें गलत दिशा में ले जाती है।
शायद आप अपने अंदर भी उसी संघर्ष को देखते हैं। आपको लगता है कि आपको बदलने और बेहतर जीवन जीने की आवश्यकता है। परन्तु जब आप प्रयास करते हैं, तो आप यह देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि स्वार्थ, अहंकार, वासना और लालच के प्रति आपके मन की गति उतनी ही प्रबल है जितनी पहले थी। तो आपका मन कैसे बदला जा सकता है?
नया जीवन कैसे शुरू होता है
परमेश्वर कहते है, “मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊँगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे” (यिर्मयाह 31:33 )। केवल परमेश्वर ही आपका मन परिवर्तन कर सकते हैं। चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें, आप अपने मन को परमेश्वर की व्यवस्था के अनुरूप नहीं बना सकते। यह नामुमकिन है। इसलिए परमेश्वर कहते हैं, “मैं वह करूँगा जो तुम करने में असमर्थ हो। मैं तेरे हृदय पर अपना व्यवस्था लिखूंगा।”
बाइबल इस मन परिवर्तन को “नए जन्म” कहती है (तीतुस 3:5)। परमेश्वर का यह कार्य आपको उनके लिए एक नया प्रेम उनके वचन के लिए एक नई भूख और उनके मार्गों पर चलने की एक नई इच्छा देता है।
पादरी कहते है कि उनकी जानकारी में नए जन्म का सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि मानव जीवन की शुरुआत कैसे होती है। एक जीवित बीज आता है, और एक गुप्त, रहस्यमय और अद्भुत तरीके से, एक नए जीवन की शुरुआत होती है। यह तात्कालिक है। यह एक ही क्षण में घटित होता है! एक स्त्री के शरीर के भीतर एक नया जीवन शुरू हो होता है और आश्चर्य की बात तो यह है कि उस क्षण में उसे शायद इसका आभास भी नहीं होता!!
अगले दिन वह काम पर जाती है और ऐसा लगता है कि सब कुछ वैसा ही है, परन्तु कुछ हफ्ते बाद, उसे महसूस होने लगता है कि उसके अंदर कुछ बदल रहा है। उसे कुछ अलग महसूस होता है, और वह सोचती है, क्या मैं गर्भवती तो नहीं हूँ?
शायद आप पीछे मुड़कर देख सकते हैं कि परमेश्वर ने आपके मन को कैसे बदल दिया है। एक समय था जब आप परमेश्वर के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। परन्तु फिर चीजें बदलने लगी। आपको परमेश्वर के प्रति एक नई भूख महसूस हुई, अपनी खुद की आवश्यकता की एक नई अनुभूति हुई, और स्वच्छ होने की नई इच्छा जागृत हुई।
यह स्पष्टीकरण है: आपको नया जन्म दे दिया गया है। पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा आपके भीतर नया जीवन प्रत्यारोपित किया गया है। हो सकता है आपके साथ भी ऐसा हुआ हो और आपको पता भी न चला हो। परन्तु हर गर्भावस्था की तरह, यह अंततः दिखाई देगा! पश्चाताप और प्रभु यीशु मसीह में विश्वास, परमेश्वर से आने वाले नए जीवन का पहला दृश्य प्रमाण है।
एक नया मन
एक अवसर पर, नीकुदेमुस नाम का एक अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति यीशु से बात करने आया। यीशु ने कहा, “तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है” (यूहन्ना 3:7 )। इस नैतिक और धार्मिक व्यक्ति के लिए मूलभूत समस्या यह थी कि उसे एक नए मन की आवश्यकता थी ।
नीकुदेमुस आश्चर्य में पड़ गया था। एक अधेड़ उम्र का पुरुष अपनी माँ के गर्भ में कैसे लौट सकता है और दोबारा जन्म कैसे ले सकता है? यीशु ने समझाया कि वह शारीरिक जन्म के बारे में नहीं बल्कि आध्यात्मिक जन्म के बारे में बात कर रहे थे: “क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है ।” (3:6)। नीकुदेमुस को अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य की आवश्यकता थी जो उसे एक नया मन देगा।
जब आप स्वर्ग में होंगे, तो जो आपके मन में है वह आपका संपूर्णता बन जाएगा। यदि परमेश्वर ने आपके मन में नया जीवन प्रत्यारोपित किया है, तो आपकी सबसे गहरी इच्छा संतुष्ट हो जाएगी। परमेश्वर की उपस्थिति में, आप वह व्यक्ति बन जाएंगे जो आप हमेशा से बनना चाहते हैं ।
मनुष्य के मन की समस्या यह है कि वह पाप की अश्लील तस्वीर से विकृत हो गया है। हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि परमेश्वर की व्यवस्था हमारे हृदयों पर लिखी जाए ताकि वे जो आदेश दे वही हमारे दिल की इच्छा बन जाये। केवल परमेश्वर ही हमारे हृदयों पर अपनी व्यवस्था लिख सकते हैं, और वे इसे संभव बनाने के लिए यीशु मसीह के रूप में हमारे पास आए । यीशु ने कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए । जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी” (यूहन्ना 7:37-38)।
परमेश्वर के वचन के साथ और जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. क्या आप ऐसे समय के बारे में सोच सकते हैं जब आप जानते थे कि क्या करना है, परन्तु आप ऐसा नहीं करना चाहते थे?
2. बाइबल मानव हृदय की अप्रत्याशित प्रकृति को कैसे समझाती है?
3. जब हम पाप करते हैं तो हमें क्षमा से अधिक (भजन संहिता 51 के अनुसार) की आवश्यकता क्यों होती है?
4. आपने भय, समृद्धि या धर्म के माध्यम से मानव हृदय को बदलने का प्रयास कहाँ देखा है ?
5. आपको कैसे पता चलेगा कि आपके पास नया जीवन है जो परमेश्वर से आता है? इनके कुछ संकेत क्या हैं?