विलापगीत 3:1-24
1 उसके रोष की छड़ी से दुःख भोगनेवाला पुरुष मैं ही हूँ;
2 वह मुझे ले जाकर उजियाले में नहीं, अंधियारे ही में चलाता है;
3 उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है।
4 उसने मेरा माँस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है;
5 उसने मुझे रोकने के लिये किला बनाया, और मुझ को कठिन दुःख और श्रम से घेरा है;
6 उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगों के समान अंधेरे स्थानों में बसा दिया है।
7 मेरे चारों ओर उसने बाड़ा बाँधा है कि मैं निकल नहीं सकता; उसने मुझे भारी साँकल से जकड़ा है;
8 मैं चिल्ला-चिल्ला के दुहाई देता हूँ, तो भी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता;
9 मेरे मार्गों को उसने गढ़े हुए पत्थरों से रोक रखा है, मेरी डगरों को उसने टेढ़ी कर दिया है।
10 वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है;
11 उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है।
12 उसने धनुष चढ़ाकर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है।
13 उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है;
14 सब लोग मुझ पर हँसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं,
15 उसने मुझे कठिन दुःख से* भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है।
16 उसने मेरे दाँतों को कंकड़ से तोड़ डाला*, और मुझे राख से ढाँप दिया है;
17 और मुझ को मन से उतारकर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ;
18 इसलिए मैंने कहा, “मेरा बल नष्ट हुआ, और मेरी आशा जो यहोवा पर थी, वह टूट गई है।”
19 मेरा दुःख और मारा-मारा फिरना, मेरा नागदौने और विष का पीना स्मरण कर!
20 मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इससे मेरा प्राण ढला जाता है।
21 परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ*, इसलिए मुझे आशा है:
22 हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है।
23 प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।
24 मेरे मन ने कहा, “यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उसमें आशा रखूँगा।”
विलाप एक लंबी और ऊंची पुकार है जो एक ऐसे व्यक्ति से परमेश्वर तक पहुँचती है जो बर्दाश्त से बाहर दर्द या हानि को सहन करता है। आप अय्यूब की पुस्तक और भजन संहिता में विलाप की भावना को देखते हैं, और परमेश्वर ने हमें बाइबल की एक पूरी पुस्तक दी है जिसे विलापगीत कहा जाता है, जो यरूशलेम के विनाश के परिणामस्वरूप होने वाले दुःख और शोक की अत्यंत विस्तार से वर्णन करती है। विलापगीत टूटे हुए हृदय की पुकार है। यह शोक मनाने वाले सभी लोगों के लिए परमेश्वर का उपहार है।
राख से धुआं अभी भी उठ रहा था, जब यिर्मयाह ने अपना रास्ता मलबे के ढेर के बीच से होते हुए बनाया जो एक समय में महान नगर हुआ करता था, और उसे देखकर उसका दिल टूट गया। वह नगर जो कभी परमेश्वर के आशीर्वाद से फला-फूला था, अब एक भुतहा नगर जैसा लग रहा था: “जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है!” (विलापगीत 1:1)
इस कठिन समय में यिर्मयाह के पास परमेश्वर का मुखपत्र बनने का अविश्वसनीय कार्य था । उसकी सेवकाई युवा राजा योशिय्याह के शासनकाल के दौरान शुरू हुई, जिसने धार्मिक और नैतिक सुधार के अभियान का नेतृत्व किया था। परन्तु योशिय्याह के बेटे यहोयाकीम ने बिल्कुल अलग रास्ता चुना। उसने परमेश्वर का वचन उसे पढ़कर सुनाने के लिए कहा, फिर उसने चाकू से सूचीपत्र को काट दिया, और पवित्र शास्त्र को आग में फेंक दिया। बाइबल जलाने वाले इस राजा के शासनकाल के दौरान ही परमेश्वर का अपने लोगों पर प्रलय शुरू हुआ।
बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को घेर लिया। और जब लोग अपने नगर की रक्षा करने में बहुत कमजोर हो गए, तो उसकी सेना ने सबसे प्रतिभाशाली लोगों को पकड़ लिया, जिनमें दानिय्येल नामक एक युवक भी शामिल था (जिसकी कहानी हम बाद में देखेंगे), और उन्हें बेबीलोन निर्वासित कर दिया।
परमेश्वर के लोगों ने पांच आपदाओं को सहन किया- एक के ऊपर एकः शत्रुओं ने नगर को घेर लिया (यिर्मयाह 52:5), लोग भूख से मर रहे थे (विलापगीत 1:11), नगर गिर गया (1:7), फिर उस पर कब्जा कर लिया गया (1:5), और मंदिर नष्ट कर दिया गया (4:1 )।
जो बच गए उन्होंने अपने घर खो दिए और उनमें से कई लोगों ने अपने बच्चे भी खो दिए। घेराबंदी में भूख के कारण सबसे पहले सबसे कम उम्र वालों की मौत हुई होगी। और जब नगर ढह गया, तो जिन लोगों के बड़े बच्चे थे, उन्हें अपने बेटों और बेटियों को निर्वासन में जाते हुए देखने का बड़ा दर्द सहना पड़ा, यह जानते हुए कि वे उन्हें फिर कभी नहीं देख पाएंगे: “उसके बाल-बच्चों को शत्रु हाँक हाँक कर बँधुआई में ले गए” (1 : 5)। उनका दुःख अत्यधिक रहा होगा।
शोक किसी चीज या किसी प्रिय व्यक्ति के खोने से उबरने की दर्दनाक प्रक्रिया है। यह उस कार्य या पद का खोना हो सकता है जिसने आपको बड़ी संतुष्टि प्रदान करी होगी। यह किसी चीज को पूरा करने की शारीरिक क्षमता या मानसिक चुस्ती को खोने जैसा हो सकता है जिसका आप आनंद लेते थे। या यह किसी प्रिय व्यक्ति को खोने जैसा भी हो सकता है जिसके बिना जीवन कभी भी पहले जैसा नहीं रहेगा।
आंसुओं में डूबा हुआ
विलापगीत आंसुओं से भीगी हुई पुस्तक है। “रात को वह फूट फूटकर रोती है, उसके आँसू गालों पर ढलकते हैं” (1:2); “मेरी आँखों से आँसू की धारा बहती रहती है; क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता था, वह मुझ से दूर हो गया” (1:16); “मेरी आँखें आँसू बहाते बहाते धुँधली पड़ गई हैं… क्योंकि बच्चे वरन् दूध-पीते बच्चे भी नगर के चौकों में मूर्च्छित होते हैं (2:11)। पूरी पुस्तक में आंसुओं का संदर्भ लगातार जारी रहता है।
आँसू आत्मा की पीड़ा पर शरीर की कंपकंपी हैं। ये परमेश्वर की ओर से एक उपहार है क्योंकि ये आपके दर्द को कम करने का काम करते हैं। परमेश्वर ने आपको एक उद्धारकर्ता दिया है जो आंसू बहने का दर्द जानता हैं, इसलिए अपने आंसुओं को बहने दें और उन्हें रोके नहीं ।
विलापगीत दुःख को शब्दों में व्यक्त करता है, और यह दर्शाता है कि कैसे दुखी लोग अपने खोने के हर विवरण को व्यक्त करते हैं। सहायता आपके दुख के अंधेरे कोनों का सामना करने से और उसे आपसे प्रेम करने वाले लोगों की संगति में परमेश्वर की उपचारात्मक उपस्थिति के प्रकाश में लाने से मिलती है।
परमेश्वर का हाथ
विलापगीत में पीड़ित हुए लोग यह मानते थे कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं । जब उन लोगों ने कष्ट झेला, तो उन्होंने यह नहीं कहा, “इसका परमेश्वर से कोई संबंध नहीं है।” उन लोगों ने कहा, “चाहे वह दुख भी दे, तौभी अपनी करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है” (विलापगीत 3:32)।
यह विश्वास करना कि परमेश्वर सभी चीज़ों को नियंत्रित करते हैं, उन कठिन सवालों को उठाता है जिनके हम उत्तर नहीं दे सकते। जब हमारे प्रभु यीशु को क्रूस पर कष्ट सहना पड़ा, तो उन्होंने चिल्लाकर कहा, “क्यों…?” (मत्ती 27:46) और यहाँ तक उनके लिए भी, स्वर्ग मौन था। जब आपकी आत्मा से विलापमय “क्यों?” उठता है, तो याद रखें कि यीशु वहाँ रहे हैं और उन्हें भी उत्तर दिए बिना पिता पर भरोसा करना पड़ा था।
तो आपको परमेश्वर के प्रति जो शिकायत महसूस हो सकती है, उससे आप क्या कर सकते है ?
विलापगीत 3 में, परमेश्वर के विरुद्ध उन्नीस शिकायतें या आपत्तियाँ हैं। ध्यान दें कि परमेश्वर का संदर्भ देते हुए, वह शब्द को बार-बार उपयोग किया गया है: “वह मेरे चारों ओर बाड़ा बाँधा है कि मैं निकल नहीं सकता” ( विलापगीत 3:7); “वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता” ( 3:8); “वह मुझे कठिन दुख से भर दिया” ( 3:15)। यह सिर्फ इतना ही नहीं कि “परमेश्वर ने इन चीजों की अनुमति दी है”; बल्कि यहाँ तक की “परमेश्वर ने उन्हें किया है! वह उन्हें लेकर आया है!”
परमेश्वर के प्रति शिकायत, अविश्वास की अभिव्यक्ति नहीं है। एक गहन तरीके से, यह विश्वास की अभिव्यक्ति हो सकती है। जिन लोगों ने विलापगीत में परमेश्वर के विरुद्ध इतनी सारी शिकायतें उठाईं, वे इसमें विश्वास नहीं करते थे कि जो कुछ भी उन्हें सहना पड़ा है, वह संयोग से हुआ है। वे जानते थे कि परमेश्वर सभी चीज़ों में सर्वाधिकारी हैं, जिसमें उन पर आई आपदा भी शामिल है। यह निश्चित रूप से इसलिए था क्योंकि वे इस पर विश्वास करते थे कि वे परमेश्वर के प्रति शिकायत से जूझते थे।
आपके जीवन में कहीं न कहीं आपको भी इसी संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। आप स्वयं को घोर अंधकार में पा सकते हैं। आप फंसा हुआ, बोझिल, भयभीत और थका हुआ महसूस कर सकते हैं। और आपको ऐसा भी महसूस हो सकता है जैसे कि परमेश्वर आपके खिलाफ हो गए हैं।
विलापगीत से पता चलता है कि आपको क्या करना चाहिए। परमेश्वर चाहतें हैं कि आप अपनी शिकायत उनके पास ले कर जाएँ। कोई मित्र या पादरी इसमें आपकी मदद कर सकते हैं, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप परमेश्वर को सच बताएं कि आप क्या महसूस कर रहे हैं। परमेश्वर के पीठ पीछे उनके बारे में शिकायत मत करें! उन्हें अपनी शिकायत आमने-सामने बताएं। अपनी शिकायत व्यक्त करने के लिए परमेश्वर की उपस्थिति से बेहतर कोई जगह नहीं है।
आज के लिए आशा
शोक के बारे में लिखी गयी एक पुस्तक में, आप स्वर्ग की आशा के बारे में बहुत कुछ पाने की उम्मीद कर सकते हैं। परन्तु विलापगीत में स्वर्ग के बारे में बहुत कम जानकारी है। ऐसा क्यों? परमेश्वर के परम उद्देश्य की पूर्ति बहुत अद्भुत है, परन्तु स्वर्ग एक दुःखी व्यक्ति द्वारा सामना की जाने वाली दर्दनाक वास्तविकता से बहुत दूर लग सकता है। जब आप शोक मनाते हैं, तो आपका पहला प्रश्न होता है, “मैं आज का दिन कैसे काटूंगा?” स्वर्ग उस प्रश्न का उत्तर नहीं है; परमेश्वर की दया है।
“परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, और इसी लिये मुझे आशा है: हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर हैं। प्रति भोर वह नई होती रहती है, तेरी सच्चाई महान् है। मेरे मन ने कहा, “यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूँगा” ( विलापगीत 3:21-24)।
परमेश्वर की दया आपको आज के दिन से उबरने के लिए पर्याप्त होगी । और जब आप कल सुबह उठेंगे, तो उनका प्रेम और दया आपका इंतजार कर रही होगी । मसीह आपको शक्ति देंगे जिसकी आपको जरूरत है ताकि आप किसी भी समय उठाए गए भार से मुकाबला कर सकें।
क्या परमेश्वर सचमुच मेरे लिए है?
एक दुखी व्यक्ति के मन में अक्सर एक प्रश्न उठता है कि “मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ कि परमेश्वर मेरे लिए है जब उन्होंने मेरे जीवन में इतना दर्द लाया है?”
इस प्रश्न का उत्तर “उस पुरुष” में निहित है, जिसका परिचय हमें विलापगीत 3:1 में दिया गया है: “उसके रोष की छड़ी से दुःख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूँ।” यह व्यक्ति कौन है?
विलापगीत में यह पुरुष स्पष्ट रूप से हमारे प्रभु यीशु मसीह की आशा करता है।
उस पुरुष ने कहा, “और मुझ को मन से उतारकर कुशल से रहित किया है” (3:17) | और गतसमनी के बगीचे में, यीशु ने कहा, “मेरा मन बहुत उदास है, यहाँ तक कि मैं मरने पर हूँ” (मरकुस 14:34)।
उस पुरुष ने कहा, “सब लोग मुझ पर हँसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं” (विलापगीत 3:14)। और यीशु के बारे में, हम पढ़ते हैं: “उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठों में उड़ाने लगे और कहा, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” (मत्ती 27:29)।
उस पुरुष ने कहा, “वह मुझे ले जाकर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है” (विलापगीत 3:2)। और जब यीशु क्रूस पर लटकाये गये, उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। (मत्ती 27:45)।
उस पुरुष ने कहा, “मैं चिल्ला चिल्ला के दोहाई देता हूँ, तौभी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता” (विलापगीत 3:8)। और क्रूस पर यीशु ने चिल्लाकर कहा, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती 27:46)।
यह कितना असाधारण है कि जब पोंटियस पीलातुस ने यीशु को कांटों के मुकुट के साथ भीड़ के सामने प्रदर्शित किया, तो उसने कहा, “देखो, यह पुरुष!” (यूहन्ना 19:5)। उन्हें इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि वें ऐसा कहकर विलापगीत 3: 1 को पूरा कर रहे थे।
वह आदर्शित पुरुष है जिसकी प्रतीक्षा विलापगीत में की गई थी। परमेश्वर का पुत्र दुःख का मनुष्य बन गया, और “रोग से उसकी जान पहिचान थी (यशायाह 53:3)। क्योंकि यीशु ने कष्ट सहा है, इसलिए जब हम कष्ट उठाते हैं तो हमारी सहायता करने में सक्षम होते हैं।
एक पीड़ित दुनिया को एक पीड़ित उद्धारकर्ता की आवश्यकता है, परन्तु हमें एक ऐसे उद्धारकर्ता की भी आवश्यकता है जिसने पीड़ा पर विजय प्राप्त की हो। यीशु के लिए पीड़ा अंत नहीं थी। वे इससे गुज़रे और अपने पुनरुत्थान के द्वारा इस पर विजय प्राप्त की। और यह उद्धारकर्ता स्वयं को आपके सामने प्रस्तुत करता है: “कदाचित रात को रोना पड़े, परन्तु सबेरे आनन्द पहुँचेगा ” (भजन संहिता 30:5), और एक दिन परमेश्वर आपकी आँखों से सारे आँसू पोंछ देंगे।
जब आप दुःख और हानि की घाटी से गुजरते हैं, तो आप एक ऐसे स्थान पर होते हैं जहाँ मसीह को पाया जा सकता है। उद्धारकर्ता जानता है कि दुःख के मार्ग पर चलना क्या होता है, और वे दुख से अच्छी तरह अवगत है। कोई भी मार्ग जिस पर आप यीशु के करीब आते हैं, उसे आशीषित किया जाएगा, भले ही यह एक ऐसा रास्ता हो जिस पर चलना आपने कभी नहीं चुना होगा ।
इन प्रश्नों का उपयोग परमेश्वर के वचन के साथ आगे जुड़ने के लिए करें। किसी अन्य व्यक्ति के साथ उनकी चर्चा करें या व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उनका उपयोग करें।
1 – किसी चीज या किसी को खोने का वर्णन करें और आपके लिए वह कैसा रहा।
2 – आपके हिसाब से सही तरीके से शोक मनाना कैसा लगता है?
3 – जिस तरह से विलापगीत ने दुःख की प्रक्रिया को दर्शाया है उसमें आपको सबसे अधिक मददगार क्या लगा?
4 – क्या आपने परमेश्वर के प्रति शिकायत महसूस की है? और यदि हां, तो आपने उसे कैसे संभाला ?
5 – आप कैसे जान सकते हैं कि परमेश्वर आपके पक्ष में है या आपके विरुद्ध?