रोमियों 5:1-11
1 क्योंकि हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें,
2 जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं, हमारी पहुँच* भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
3 केवल यही नहीं, वरन् हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज,
4 और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है;
5 और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा।
7 किसी धर्मी जन* के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है; परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का धैर्य दिखाए।
8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।
9 तो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा परमेश्वर के क्रोध से क्यों न बचेंगे?
10 क्योंकि बैरी होने की दशा में उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ, फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएँगे?
11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, जिसके द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर में आनन्दित होते हैं।
यीशु ने क्रूस पर जो पूरा किया उसके कारण हम विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं। परन्तु हम कैसे आश्वस्त हो सकते हैं कि हम धर्मी ठहराए जा चुके हैं? क्या परमेश्वर चाहते हैं कि हम आश्वस्त रहें? और यदि हाँ, तो यह कैसे संभव है? हमारा आज का सत्र “अत: जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे” (रोमियों 5:1) से शुरू होता है, और यह “इससे भी अधिक परमेश्वर में आनन्दित होते हैं” (रोमियों 5:11) के साथ समाप्त होता है। ये आयतें विश्वास से लेकर आनन्द तक के मार्ग को दर्शाती हैं।
एक व्यावसायिक साझेदारी की कल्पना करें जिसमें आपको लगातार अपने साथी को बुला कर पूछना पड़ता है कि क्या वह अब भी आपके साथ काम करना चाहता है। या एक ऐसी शादी की कल्पना करें जिसमें आपको पूरी तरह से यकीन नहीं हो कि आपका जीवनसाथी आपसे प्रेम करता है या नहीं। दोनों ही रिश्ते चलाये तो जा सकते है; परन्तु दोनों में से किसी का भी आनंद नहीं लिया जा सकता।
परमेश्वर चाहते हैं कि आप उनके साथ अपने रिश्ते का आनन्द लें, और इसका मतलब यह है कि वे चाहते हैं कि आप इसमें आश्वस्त रहें। परन्तु तीन ऐसे सवाल हैं जो अक्सर एक मसीही के मन में आते हैं जो उनके आनन्द को खत्म कर देते हैं। यदि आपको परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते का आनन्द लेना है, तो आपको यह जानना होगा कि उनका जवाब कैसे दिया जाए। और ये सभी जवाब रोमियों 5 में पाए जाते हैं।
1. मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
बाइबल मुझे बताती है कि मैं परमेश्वर के साथ शांति में हूँ, परन्तु यदि यह सच है, तो फिर मेरे जीवन में इतनी परेशानियाँ क्यों है? जब आप किसी स्वास्थ्य समस्या, पारिवारिक समस्या या जीवन में किसी अन्य निराशा का सामना करते हैं, तो आप शायद सोचते होंगे कि परमेश्वर ने आपके साथ ऐसा क्यों होने दिया।
परमेश्वर आपके जीवन की सबसे कठिन चीजों का उपयोग कुछ महान मूल्यवान चीज़ प्राप्त करने के लिए करेंगे: “हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यह जानकर कि क्लेश से धीरज, और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है” (रोमियों 5:3-4)। परमेश्वर आपके जीवन में जो कुछ भी दुःखद है उसका उपयोग आपको यीशु के समान बनाने के लिए कर सकते हैं।
परमेश्वर ने कभी भी परेशानी-मुक्त जीवन का वादा नहीं किया है। यीशु ने कहा, “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33)। आपके जीवन में परेशानी का मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर आपके विरुद्ध है। मसीह में परमेश्वर हमारे लिए है: “जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?” (रोमियों 8:32)
यह जानने से आप अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों में भी दृढ़ बने रह सकेंगे। आप अपने आँसुओं के माध्यम से परमेश्वर की ओर देख सकते हैं, परन्तु आप आशा के साथ ऐसा करने में सक्षम होंगे। और आपकी आशा निराश नहीं होगी।
2. क्या परमेश्वर सचमुच परवाह करता है?
पौलुस हमें बताते हैं कि “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” (रोमियों 5:8)। परन्तु यीशु की मृत्यु परमेश्वर के प्रेम को कैसे दर्शाती है?
ऐसी कई चीज़ें हैं जो परमेश्वर हमें दे सकते हैं जो उनके प्रेम की अभिव्यक्ति लग सकती है। यदि बाइबल कहती, “परमेश्वर ने हमारे लिए अपने प्रेम को इस तरह से दिखाया है कि उन्होंने हमें कैंसर का इलाज दिया है,” तो हम इसे उनके प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में पहचानेंगे। परन्तु यीशु का क्रूस पर मरना परमेश्वर के प्रेम का प्रदर्शन कैसे है?
कल्पना कीजिए कि एक जोड़ा चांदनी रात में दुनिया के सबसे खूबसूरत झरने के पास गाड़ी में बैठा है। वह उसके कंधे पर हाथ रखता है और उसके कान में फुसफुसाता है, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”
वह उसे संदेह भरी निगाहों से देखती है। “क्या तुम सच में ऐसा करते हो? कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है।”
“ठीक है,” वह कहता है, “मैं इसे साबित करूँगा।” और ऐसा कहते हुए, वह गाड़ी से बाहर निकलता है, किनारे पर जाता है, और एक बड़ी छलांग के साथ, खुद को किनारे पर फेंक देता है। जैसे ही वह खाई में गिरता है, वह चिल्लाता है, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ…” यह एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकता है, परन्तु यह प्यार का प्रदर्शन नहीं है। पुरुष की मृत्यु से महिला को कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
यीशु की मृत्यु प्रेम की अभिव्यक्ति है क्योंकि यह हमारे लिए अनंत मूल्य की चीज़ हासिल करती है: यीशु की मृत्यु के माध्यम से हमारे पाप का ऋण चुकाया गया और परमेश्वर का क्रोध शान्त हुआ।
परमेश्वर ने हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत के समय सबसे बड़ा उपहार देकर हमारे प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित किया है। इसलिए जब आप यह सोचने पर मजबूर हो जाएं कि क्या परमेश्वर सचमुच आपसे प्रेम करते हैं, तो अपने जीवन की परिस्थितियों को मत देखिए, क्रूस को देखिए और जानिए कि यीशु ने आपके लिए क्या पूरा किया है।
3. मैं कैसे आश्वस्त हो सकता हूँ कि मैं स्वर्ग पहुँच जाऊँगा?
कल्पना कीजिए कि आपने जीवन भर की सबसे यादगार यात्रा की योजना बनाई है। टिकट बुक हो गए हैं, आपका पासपोर्ट तैयार है, और आरक्षण हो गया है। बस आपको हवाई अड्डे पर पहुंचने की देरी है, परन्तु फिर भी कई चीजें गलत हो सकती हैं! आप जाने से एक रात पहले बीमार पड़ सकते हैं। सीढ़ियों से उतरते समय आपका पैर टूट सकता है। ऐसे घटित होने वाले परिदृश्यों को गुणा करने के लिए अधिक कल्पना की आवश्यकता नहीं है।
जब हम धर्मी ठहराए गए हैं, तो हमें परमेश्वर के साथ शांति मिलती है। परन्तु अगर हम गलती कर दें तो क्या होगा? शायद आप जानते हों कि खुद से यह कहना कैसा होता है: “मुझे यकीन नहीं है कि मैं इस मसीही जीवन को जारी रख पाऊँगा या नहीं! क्या होगा यदि मेरे सामने आने वाले प्रलोभन मेरे लिए बहुत ज़्यादा कठिन हों? क्या होगा अगर कोई चीज़ मेरे विश्वास को खत्म कर दे?”
इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि “हम अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे” (रोमियों 5:9)। परमेश्वर हमें क्रूस पर बहाए गए यीशु के लहू के माध्यम से धर्मी ठहराते हैं। परमेश्वर के साथ शांति आपके अंदर की किसी भी चीज़ पर आधारित नहीं है। यह पूरी तरह से आपके बाहर की चीज़ पर आधारित है – यीशु का लहू। यह आपकी सुरक्षा का आधार है, और यदि आप इसका अर्थ समझ सकते हैं, तो यह आपको परमेश्वर में आनन्दित होने में मदद करेगा।
सही जगह पर आत्मविश्वास
यदि आपसे पूछा जाए कि आप कैसे जानते हैं कि आप अंतिम दिन स्वर्ग में होंगे, तो आप क्या उत्तर देंगे? यहाँ तीन सामान्य परन्तु अपर्याप्त उत्तर दिए गए हैं।
सवाल: आप कैसे जानते हैं कि आप अंतिम दिन स्वर्ग में होंगे?
उत्तर: मुझे यीशु से प्यार है।
यह बहुत अच्छा है। परन्तु यीशु से प्रेम करने की परीक्षा यह है कि हम उनकी आज्ञाओं का पालन करें (यूहन्ना 14:15), और यह तथ्य कि हम उसकी आज्ञाओं का पूरी तरह से पालन नहीं करते हैं, यह दर्शाता है कि हम उनसे पूरी तरह से प्रेम नहीं करते हैं। मसीह के लिए हमारा प्रेम सच्चा है, परन्तु इसमें खुद के लिए अधिक प्रेम भी शामिल है। हालांकि यह सत्य है कि हम मसीह से प्रेम करते हैं, परन्तु जब हम अन्तिम दिन उनकी उपस्थिति में खड़े होंगे तो उनके प्रति हमारा प्रेम भरोसे का आधार नहीं रह जायेगा!
उत्तर: मैंने प्रतिबद्धता जताई है।
यह तो बहुत ही अच्छी बात है। परन्तु यदि मसीह की सेवा करने के प्रति आपकी प्रतिबद्धता डगमगा जाए तो क्या होगा? यदि दस वर्षों में आपका उत्साह कम हो जाए तो क्या होगा? क्या इसका मतलब यह है कि स्वर्ग में प्रवेश की आपकी संभावनाएँ भी कम हो जाएंगी?
जो लोग सोचते हैं कि मसीह के प्रति उनके कार्य या उत्साह स्वर्ग में प्रवेश करने का आधार है, वे जल्द ही खुद को एक बड़े बोझ के नीचे पाते हैं। आप जो भी करें, आपकी प्रतिबद्धता का स्तर हमेशा ऊंचा हो सकता है, और जो विश्वासी अपनी प्रतिबद्धता पर निर्भर रहते हैं, वे आध्यात्मिक रूप से थकने की राह पर होते हैं।
उत्तर: मुझे विश्वास है।
यह अद्भुत है। परन्तु आपका विश्वास कितना मजबूत है? क्या ऐसे समय नहीं आते जब आप संदेह से जूझते हैं? मसीह पर विश्वास करने के बजाय, अपने स्वयं के विश्वास पर विश्वास करने की गलती में मत पड़िए। किसी का भी विश्वास प्रश्नों, चिंताओं, शंकाओं या भय से मुक्त नहीं है। यदि आप अपने विश्वास पर भरोसा कर रहे हैं, तो आप कभी भी आश्वस्त नहीं होंगे कि आपका विश्वास पर्याप्त है।
क्या आपने इन तीन अपर्याप्त उत्तरों में, एक समान बात पर ध्यान दिया? वे सभी एक घातक छोटे शब्द “मैं” से शुरू होते हैं I मैं यीशु से प्यार करता हूँ। मैं प्रतिबद्ध हूँI मुझे विश्वास हैI और ‘मैं’ से शुरू होने वाली किसी भी चीज़ के साथ समस्या यह है कि वह कभी भी पूर्ण नहीं होती, वह कभी भी वह नहीं हो सकती जो वह हो सकती है, और वह कभी भी वह नहीं हो सकती जो उसे होना चाहिए।
हमारे अंदर परमेश्वर का कार्य शुरू हो चुका है, परन्तु अभी पूरा नहीं हुआ है। इसलिए हालांकि यह आश्चर्यजनक रूप से सत्य है कि हम यीशु से प्रेम करते हैं, यीशु की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और यीशु में विश्वास रखते हैं, इनमें से कोई भी बात वैसी नहीं है जैसी वे हो सकती हैं या जो एक दिन होंगी। मसीह के प्रति हमारा विश्वास, सेवा और प्रेम अभी भी प्रगति पर है।
हममें से कोई भी अभी वह नहीं है जो हम होंगे, और यही कारण है कि हम अपने अन्दर की किसी भी चीज़ के माध्यम से परमेश्वर के सामने कभी भी आत्मविश्वास के साथ नहीं खड़े हो सकते हैं। आश्वासन का केवल एक ही ठोस आधार है: हम “उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे” (रोमियों 5:9)।
पादरी कहते हैं की इस देश में उनके पहले बड़े दिन के बाद, उनका परिवार विस्कॉन्सिन नाम की एक जगह की यात्रा पर गया। वे फॉन्ड डू नमक झील तक पहुँचे, जहाँ वे झील के किनारे रुके ताकि वहाँ का नज़ारा देख सकें।उन्हें इतनी ठंड पहले कभी नहीं लगी थी।
उनके बेटे, जो उस समय सिर्फ दस और आठ साल के थे, बोले, “पिताजी, क्या हम बर्फ पर चल सकते हैं?” माता-पिता जानते हैं कि जब आप सोचते नहीं हैं तो आप स्वाभाविक उत्तर हाँ में दे देते हैं। लंदन में, ठंड तो पड़ती है परन्तु उतनी नहीं, और इसलिए जहाँ बर्फ होती है, वह अक्सर पतली होती है। तो, उन्होंने कहा, “हाँ, लेकिन ध्यान से जाना।”
कल्पना कीजिए कि हम बर्फ पर आगे बढ़ रहे हैं, अपना रास्ता तलाश करते हुए घबराहट में आगे बढ़ रहे हैं, तभी अचानक इंजन की गर्जना सुनाई देती है, और कम से कम छह हाई स्कूल के छात्रों को ले जा रहा एक वाहन झील के ऊपर से चिल्लाता हुआ निकलता है। पादरी कहते हैं की उन्हें नहीं लगता कि उन्होंने कभी इतना मूर्ख महसूस किया हो।
बर्फ पर आगे बढ़ते हुए, उनमे बहुत कम आत्मविश्वास था, परन्तु वे पूरी तरह से सुरक्षित थे। जिस बर्फ पर वे खड़े थे वह चट्टान की तरह ठोस थी। और उनकी सुरक्षा उनके “विश्वास” की ताकत पर नहीं, बल्कि उस बर्फ की ताकत पर टिकी थी जिस पर वे खड़े थे।
हम अपने विश्वास की शक्ति से नहीं, बल्कि अपने उद्धारकर्ता की शक्ति से बचाये गए हैं।
यदि आप परमेश्वर में आश्वासन और आनन्द उत्पन्न करना चाहते हैं, तो आपको यह प्रश्न नहीं पूछना चाहिए कि “मेरा विश्वास कितना मजबूत है?” बल्कि यह कि “मेरा उद्धारकर्ता कितना मजबूत है?” क्या यीशु मसीह का लहू इतना समृद्ध और शक्तिशाली है कि वह मेरे हर पाप को धो सके और इस समय से लेकर उस दिन तक मेरी हर कमजोरी, असफलता और अपर्याप्तता को ढक सके जब तक मैं परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं पहुँच जाता? इस सवाल का जवाब है, “हाँ। बिल्कुल। बिना किसी सवाल के।”
परमेश्वर के वचन के साथ आगे जुड़ने के लिए इन प्रश्नों का उपयोग करें। उन पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ चर्चा करें या उन्हें व्यक्तिगत प्रतिबिंब प्रश्नों के रूप में उपयोग करें।
1. निम्नलिखित में से कौन सा प्रश्न आपके लिए अभी सबसे कठिन है:
क्या परमेश्वर वास्तव में परवाह करते हैं? मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मैं कैसे सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मैं स्वर्ग जाऊँगा?
2. आपके विचार से परमेश्वर क्यों चाहते हैं कि आप उनके साथ अपने रिश्ते के बारे में आश्वस्त रहें?
3. 1 (कोई नहीं) से 10 (बिल्कुल) के पैमाने पर आप कितने आश्वस्त हैं कि जब आप मरेंगे तो आप स्वर्ग जाएंगे? आपका आत्मविश्वास या आत्मविश्वास की कमी कहाँ से आती है?
4. अपने ही विश्वास पर भरोसा करने का क्या प्रभाव होगा?
5. कथन पर प्रतिक्रिया दें: “आश्वासन का केवल एक ही ठोस आधार है: ‘हम उसके [यीशु’] खून से धर्मी ठहराए गए है’ (रोमियों 5:9)।”